बड़े ही सलीक़े से गुमराह करते हैं
कई बार जो हमें, आगाह करते हैं।
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ख़ैरियत पूँछकर के, दिन गीनते हैं
जताते हैं अपनी, परवाह करते हैं।
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होते नहीं हैं वैसे जैसे नजर आते हैं
लोग तो सादगी से तबाह करते हैं।
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बैचैनी भी अक़्सर, वही पनपती हैं
जो हर तरफ अपनी निगाह करते हैं।
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निकल आते हैं वो लोग भी काफीर
जो सजदा शाम-ओ-सुबह करते हैं।
~ श्रद्धा
कई बार जो हमें, आगाह करते हैं।
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ख़ैरियत पूँछकर के, दिन गीनते हैं
जताते हैं अपनी, परवाह करते हैं।
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होते नहीं हैं वैसे जैसे नजर आते हैं
लोग तो सादगी से तबाह करते हैं।
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बैचैनी भी अक़्सर, वही पनपती हैं
जो हर तरफ अपनी निगाह करते हैं।
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निकल आते हैं वो लोग भी काफीर
जो सजदा शाम-ओ-सुबह करते हैं।
~ श्रद्धा