Sunday 21 June 2015

जन्नत

फीके पड जाते हैं दुनिया भर के तमाम नजारे उस वक्त... दर पे तेरे झुकता हूँ तो मुझे जन्नत नजर आती हैं....
~ अनामिका

Friday 19 June 2015

तनहाई

इस तनहाई में महफिलों की कमी जरूर खलती हैं
शुक्र हैं मेरा हाथ थामे कलम और स्याही चलती हैं।
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उजालों में छुप जाती हैं दिल की तमाम विरानीयाँ
अंधेरों में अक्सर मेरी असलियत मुझसे मिलती हैं।
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दुनिया भर की बद्दुआएँ तब बेअसर होने लगती हैं
जब मेरे माँ के सजदे में मेरे नाम से दुआएँ पलती हैं
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बुरा हो या अच्छा, तुझसे यकीन नहीं उठता मालिक
तेरे नाम से जहर भी लूँ तो सारी बलाएँ टलती हैं।
~ अनामिका

Thursday 18 June 2015

खुद्दारी

बगावत में दिल की बाजी खेली नहीं गईं मुझसे... जो मेरी खुद्दारी को समझते तो हुकूमत करते....
~ अनामिका

Wednesday 17 June 2015

जुदाई

किसी और के नाम से जब मेरी विदाई होगी
लगता हैं तब जा के तेरी यादों से रिहाई होगी।
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नाम मेरे नाम से किसी और का जब जुड़ेगा
सही मायने में अपनी मुकम्मल जुदाई होगी।
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तुझसे दूर होकर, अब मैं भी यही सोचती हूँ
मेरे बिना एक घड़ी भी तूने कैसे बिताई होगी।
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दस्तूर हैं इस दुनिया का, निभाना ही पड़ता हैं
किसी और की तूने भी अब माँग सजाई होगी।
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ये साथ तेरा मेरा तो कुछ पल के लिए ही था
इन हाथों की ये लकीरें उसने कैसी बनाई होगी।
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कीस्मत में जो लिखा था, वो तूने कर दिया मालिक
ऐसा कर के तेरी भी जरूर आँख भर आई होगी।
~ अनामिका

कीस्मत

हारने वाले को कोई जुर्म इस तरह सहना पड़ता हैं
किस्मत की कुछ गलतियों को अपना कहना पड़ता हैं
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राजा हो या रंक हो कोई, किस्मत सब पें भारी हैं
राजमहल को त्याग, किसी को वन में रहना पड़ता हैं।
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कुर्बानी का जज्बा कोई नदीयों से ही सीख ले
अपना वजूद खो कर उन्हें समुंदर में बहना पड़ता हैं।
~ अनामिका

Sunday 14 June 2015

यादें

जब तक मेरे सीने में ये धड़कन धड़कती रहेंगी
तब तक तेरे यादों की इक आग भड़कती रहेंगी।
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जुदाई का वो मौसम जब ख्यालो में जाग उठेगा
बरसने लगेगी बरखा और बिजली कडकती रहेंगी।
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निशानी तेरी आखिरी, कभी दि थी तूने तोहफे में
आखिरी दम तक वो चूँडी, मेरे हाथ में खडकती रहेंगी।
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तेरी ही खैरीयत का खयाल मेरे दिल को चीर देगा
जब जब बेचैनी में मेरी आँख फडकती रहेंगी।
~ अनामिका

Saturday 13 June 2015

माँ

बहुत मीन्नते करता रहा ऐ मालिक तुझसे लेकिन सारी फिजूल हो गई
कल माँ के चेहरे पर एक मुस्कान क्या लाई, मेरी दुआ कुबूल हो गई।
~ अनामिका

Tuesday 9 June 2015

सूखे फूल...

फूल ही सूखे हुए थे शायद... वर्ना धागा पक्का होकर भी यूँ माला से ना निकल पड़ते....
~ अनामिका

Sunday 7 June 2015

मत अकड ऐ बारिश तेरे इंतजार में कौन रुकता हैं? जहाँ प्यास बूझ जाएँ, वहीं प्यासा झुकता हैं।

मत अकड ऐ बारिश तेरे इंतजार में कौन रुकता हैं?
जहाँ प्यास बूझ जाएँ, वहीं प्यासा झुकता हैं।
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चंद लम्हो की चमक से चौकन्ना रहे तो बेहतर हैं
गफलत में तो पीतल भी सोने जैसा दिखता हैं।
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कीमत और वक्त तो जैसे सिक्के के दो पहलू हैं
कभी कल का सस्ता आज में दुगुने दाम बिकता हैं।
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सोच और सच्चाई को जैसे देखो वैसी दिखती हैं
पानी में तो चाँद भी अपने पास लगता हैं।
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सुकून कोई अमीर किसी फकीर से ही सीख ले
जो जमीन के बिछौने पर आसमान से सर ढकता हैं।
~ अनामिका

Wednesday 27 May 2015

दुआ

बहुत इतरा रहा हैं चीराग कहीं हवा ना लग जाएँ
मेरी जख्मी किस्मत को कोई दवा ना लग जाएँ
मैं बँधा हूँ इस तरह ए मालिक तेरी बंदगी में
मेरी दुआ हैं उसे मेरी बद्दुआ ना लग जाएँ।
~ अनामिका

Monday 25 May 2015

इम्तिहान की घड़ी में अक्सर नमाजी ही काफीर निकलता हैं।

दिलजलों की बस्ती मे कोई गालिब तो कोई मीर निकलता हैं
टूटे हुए दिलों सें जब शेर-ओ-शायरी का तीर निकलता हैं।

ऊपर वाले की बंदगी में सबार के मायने समझने चाहिए
इम्तिहान की घड़ी में अक्सर नमाजी ही काफीर निकलता हैं।

शक्ल और अकल का वैसे कोई रिश्ता ही कब रहा हैं यारो
भोली सूरत के पीछे क्या पता कब दिमाग शातिर निकलता हैं।

जलजला कभी जो आएगा जहाँ अपनी  मर्जी दफन हो जाएंगे
क्या फर्क पड़ता हैं फीर वो किस की जागीर निकलता हैं।
~ अनामिका

Saturday 23 May 2015

गरमी का मौसम

बच्चों को छुट्टियाँ लगती हैं
गरमी का मौसम आता हैं
साथ में गुजरे बचपन की
मीठी यादें लाता हैं।

याद आता हैं मुझे
अब वो नाना-नानी का गाँव
तपती गरमी के मौसम में
वो पीपल की ठंडी छाँव।

सारे मिल के सुनते थे
नानी की परियों की कहानी
दोपहर में नहाने जाते थे
वो नदियों का ठंडा पानी।

गुजरे बचपन की ठंडक
न जाने कहाँ खो गई हैं?
अब तो लगता हैं प्रकृती भी
अपना नियम भूल गईं हैं।

इसी गरमी के मौसम में कभी
सारी जमीने जल जाती हैं
तो कभी अचानक बारिश से
किसान की उम्मीदे धूल जाती हैं।

गरमी से बेहाल आदमी
बस इल्जाम देने को तैयार हैं
जरा सोचो इस अवस्था पर
सब बराबर जिम्मेदार हैं।

शहर पर शहर बढेंगे
पर रौनक कहाँ से मिलेगी?
पेड़ पौधे कट जाएंगे
तो ठंडक कहाँ से मिलेगी?

कहर होते ही सवरने की
किसे मोहलत मिलती हैं?
जब जब कुदरत खुद अपनी
बगावत पर उतर आती हैं।

सुनना, सूनाना छोड़ कर
अब सब को सोचना चाहिए।
कुदरत के इस विनाश को
मिल के रोकना चाहिए।
~ अनेमिका

Thursday 21 May 2015

जिंदगी के रंगो में मेरे जीने का रंग फीका हैं आँसूओंको छुपाकर मैंने मुस्कूराना सीखा हैं।

जिंदगी के रंगो में मेरे जीने का रंग फीका हैं
आँसूओंको छुपाकर मैंने मुस्कूराना सीखा हैं।

गुजरती नहीं मजबूरी मे, गुजारी जाती हैं अक्सर
न जीने का कोई बहाना हैं न मरने का तरीका हैं।

हुनर खामोश होकर जब तकदीर बोलने लगती हैं
तब अना और जमीर मेरा कौडी कें दाम बिका है।

हवाओं की रफ्तार सें भागने में लगे हैं सब यहाँ
राह पे रुके पत्थर को तो सबने पैरों सें फेंका हैं

शिकायत करने से अच्छा उसकी इबादत कर लिया करो
आने वाला जाएगा ही, कौन यहाँ पर टीका हैं।
~ अनामिका

Wednesday 20 May 2015

चंद शेर....

चंद शेर....

खुशबू के लिए खुद का किरदार भी साफ रखना पड़ता हैं
सिर्फ लोबान के जलने से तो भीतर मे महक नहीं आती।

पढ़ें लिखे शायर को भी दर्द की तालीम लेनी पड़ती हैं
ऐसे वैसे तो कलम में किसी के भी चमक नहीं आती।

महज चूडीयों से क्या होगा? पहनाने वाला भी तो हो
यूँ ही अपने आप तो चूडीयों में खनक नहीं आती।

शहर की इन गलियों से कभी कभार मुड़ भी जाया करो
तरक्की के सफर में चलते हुए गाँवो की सड़क नही आती।
~ अनामिका

Monday 18 May 2015

बस खुद्दारी ही मेरी दौलत हैं जो मेरी हस्ती में रहती है

बस खुद्दारी ही मेरी दौलत हैं जो मेरी हस्ती में रहती है
बाकी जिंदगी तो फकीरी हैं वो अपनी मस्ती मे रहती हैं।

कल की परवाह छोड़ो जनाब कभी आज में जी कर देखो
खानाबदोशी उम्र हैं, वो तो दरिया-ए-कष्ती में रहती हैं।

मुसीबत में जो काम आए ऐसे हकीम और ताबीज तो नहीं
बस इंसानों की इंसानियत हैं, जो मेरी बस्ती में रहती हैं।

बेचैनी जब जब जहन में हो वहम पनपने लग जाता हैं
ऐसे हालात में सोच भी अपनी फीरकापरस्ती में रहती हैं।
~ अनामिका

Saturday 16 May 2015

रह रह के दिल भी अब यहीं सोचता रहता हैं...

रह रह के दिल भी अब यहीं सोचता रहता हैं
क्या हैं जो दिन रात इसे बस नोचता रहता हैं।

खाली कुआ भी हैरानी से प्यासे को देखता हैं
जब उम्मीद लिए बाल्टी वो खींचता रहता हैं।

जुबान झूठी होकर भी आँखे जवाब दे देती हैं
अपने बारे में कोई, जब हाल पुंछता रहता हैं।

मुकद्दर जैसे हैवानियत का दूसरा नाम हैं
जो जख्मों को बार बार खरोचता रहता हैं।
~ अनामिका

Tuesday 12 May 2015

जो खुशियाँ बचपन के सायकल की सवारी में नजर आईं।

ना सफारी में नजर आईं ना फरारी में नजर आईं
जो खुशियाँ बचपन के सायकल की सवारी में नजर आईं।

बारिशों से बचकर कभी जो मोहब्बत खफा सी रहती थी
वो दो सर को ढकने वाली एक छत्री में नजर आईं।

महलों में और बंगलों में वो इंसानियत नहीं दिखी
जो नुक्कड़ वाली चाय की एक टपरी में नजर आईं।

मन के तार छेड़ सकें ऐसी धुन अब कहाँ मिलती हैं?
जो बरसों पहले उस किशन की बाँसुरी में नजर आईं।
~ अनामिका

Monday 11 May 2015

माथे की ये शिकन कभी मिटने नहीं देता।

गमों का ये खजाना किसी को लूटने नहीं देता
मैं शायर हूँ, अपने फन को छूटने नहीं देता।

मुकद्दर की रेखाएँ बिखरी हैं तो बिखरने दो
ऊपरवाले पर यकीन मेरा उठने नहीं देता।

सुकून मेरे चेहरे पर अक्सर खलता हैं लोगों को
तो माथे की ये शिकन कभी मिटने नहीं देता।

दोहरी शक्लों की दुनिया में जज्बात परदे में रखता हूँ
बड़ा शातिर हूँ, लफ्जों मे इनको बँटने नहीं देता।
~ अनामिका

Sunday 10 May 2015

जीनत

माना तू माहताब हैं... फलक पर चमकता हैं.... कभी इस शम्मे फरोजाँ को छूकर देख... तेरे नूर की जीनत बढेगी।
~ अनामिका

माहताब- चाँद
फलक- आसमान
शमा- candle, lamp
फरोजा- चमकीला
नूर- चमक
जीनत- खूबसूरती

Tuesday 5 May 2015

electricity problem.... just for fun....



#electricity_problem

ना बारिश हैं ना तूफान
फिर भी बिजली ये गुल हैं।
ऊपर से ये गरमी
ना कुछ ठंडा ना कूल हैं। :(

middle class वाली salary हैं
ना budget मे हैं inverter.
मैं हूँ बस इक common man
क्या यही मेरी भूल हैं? :(

एकाध दिन तो मजा हैं
पर सारे दिन ये सजा हैं।
हर रोज हमें बिजली रानी
करती april fool हैं। :(

गरमी तो हैं गरमी
और ऊपर से ये मच्छर
हाथ में तो आते नहीं
आँखो में झोंकते धूल हैं।

ना अब तक आई free बिजली
ना ही आया अच्छा दिन
काहे के ये कसमें वादे
और कैसे ये उसूल हैं? :\
~ अनामिका

Sunday 3 May 2015

पंख निकलने से पहले ही चिड़ियों के हाथ पीले रहते हैं।

जहाँ रिश्तों में हो दरारें और मुँह पर ताले रहते हैं
वहाँ संगेमरमर के महलों में भी अक्सर जाले रहते हैं।

जरासा क्या अँधेरा हुआ, जुगनू भी तेवर दिखाएँगे
मजबूरी जब आन पड़े तो छुपकर उजाले रहते हैं।

पैसों में इतनी ताकत हैं की वर्दी के रंग भी बदलेंगे
आज के दौर में साँपो ने ही सपेरे पाले रहते हैं।

माशुका का हुक्म होते ही जो नंगे पाँव दौड़ने लगे
माँ ने जरासा पुकारते ही इनके पाँव में छाले रहते हैं।

हया और इज्जत तो वैसे तवायफों में भी होती हैं
जो मजबूरी और लाचारी के साँचे में ढाले रहते हैं।

जाहीलियत के नाम पर न जाने कब तक जुर्म होते रहेंगे
पंख निकलने से पहले ही चिड़ियों के हाथ पीले रहते हैं।
~ अनामिका

Thursday 30 April 2015

जिसकी यारी हैं मौत से, उसे तकदीर क्या डराएँगी।

बिखरती इन हवाओं को कोई जंजीर क्या डराएँगी
जिसकी यारी हैं मौत से, उसे तकदीर क्या डराएँगी।

जलजला जो आएगा, जहाँ मर्जी दफन हो जाएंगे
होंगी किसी के भी बाप की वो जागीर क्या डराएँगी।

वाकीफ हूँ मैं वक्त की इस बदलती फितरत से
ये धूप-छाँव सी जिंदगी की तस्वीर क्या डराएँगी।

लाख कहाँ हकीकत सें मेरे ख्वाबों को डराएँ
जो मेरे ही खिलाफ थी, मेरे खातिर क्या डराएँगी।
~ अनामिका

जलजला- earthquake
जागीर- property, estate

Monday 27 April 2015

लगता हैं अब फिर वो रंगीन जमाना नहीं आएगा....


बेखौफ होकर जीने का दौर पुराना नहीं आएगा
लगता हैं अब फिर वो रंगीन जमाना नहीं आएगा।

बचपन की उन चोरीयों में भी गजब की अमिरी थी
जवानी में वो मजा अब कभी कमाना नहीं आएगा।

उम्र की यें रफ्तार भी इस कदर तेज हो चुकी हैं
माँ का आँचल पकड़ कर अब वो रोना नहीं आएगा।

मोहब्बत को खोकर ही मोहब्बत समझ आईं हैं
लगता हैं अब किसी सें दिल लगाना नहीं आएगा।

जब था, तब तूने उसकी कद्र हीं नहीं की ऐ दिल
लौटकर अब कभी वो तेरा दीवाना नहीं आएगा।

छोटे-मोटे झूठ से बहुत परेशान किया करता था उसे
आज फिर से मिल ए जान, अब कोई बहाना नहीं आएगा।
~ अनामिका

Saturday 25 April 2015

मजबूरी का नाम जिंदगी।

ए जिंदगी मुझपे तेरी चंद साँसें क्या उधार हो गईं
तू इम्तिहान लेने के लिए तो मेरे सर पें सवार हो गईं।

जिंदगी जीने का नाम हैं या जीने को जंग कहते हैं?
अब तक तजुर्बे इतने दिए की मेरी उम्र शर्मसार हो गईं।
~ अनामिका

Tuesday 21 April 2015

इक चाँदनी क्या जरासी चमक गईं, सूरज भी शब में खिला हैं।


वो जो आवारा हुआ करता था, आज किसी से अदब से मिला हैं
इक चाँदनी क्या जरासी चमक गईं, सूरज भी शब में खिला हैं।

ऊपर वाले के रहम-ओ-करम की जो मिसाले  दिए घूमता था
जरा सी वक्त ने क्या करवट ली, अब उसे ही रब से गीला हैं।

ना नियत सें  ना सिरत सें ना ईमान सें और ना ही सुरत सें
यहाँ कदम कदम पर सब इंसानों को बस मजहब से तोला हैं।

मसरूफ सी इस दुनिया में अब फुरसत के पल किस के पास हैं
यहाँ मिलने वाला तो अक्सर किसी ना किसी सबब से मिला हैं।
~ अनामिका

Monday 20 April 2015

यहाँ दुनिया वालों ने जिसको पहले आम समझा हैं थोड़ा वक्त बदलते ही उसका सही दाम समझा हैं।

यहाँ दुनिया वालों ने जिसको पहले आम समझा हैं
थोड़ा वक्त बदलते ही उसका सही दाम समझा हैं।

मुफलिसी मेरी किस्मत हैं तो खुद्दारी मेरी फितरत
मुझे खैरात में जो भी मिला उसे हराम समझा हैं।

रफिकों का रंग हैं ऐसा कि रकीब फिके पड़ जाएँ
आँखो में रंज लेकर भी मिले, तो दुआ सलाम समझा हैं।

खुशियों कि मेहमान नवाजी जब तनहाई से होती हैं
तब भीड़ भरी दुनिया में खुद को नाकाम समझा हैं।

जिंदगी के सफर में मंजिल गुमशूदा सी लगती हैं
जहाँ चैन-ओ-सुकून मिले वो आखिरी मुकाम समझा हैं।
~ अनामिका

सर्वाधिकार सुरक्षित।

Saturday 18 April 2015

सत्य परिस्थिति।

एक घर में रहती हैं एक सुंदर सी परी
दिखने में नाजुक, और रंग से गोरी।

8 साल कि वो गुड़िया रहती है बहुत हि होशियार
नन्ही गुड़िया से करते हैं सब जी भर के प्यार।

बुखार होकर परी को  जब जब आती हैं खाँसी
निराश होते हैं मम्मी-पापा, साथ में सारे पड़ोसी।

जो परी को प्यार से कहता हैं, मेरी रानी मेरा बच्चा
वो होता हैं पडोस वाला एक चंदू चाचा।

चंदू चाचा जब घर में अकेला ही रहता हैं
तब परी को लेने वो अक्सर उसके घर पे आता हैं।

परी के लिए लाता हैं वो चाॅकलेट और मिठाई
पापा उसे मानते हैं सगे जैसा भाई।

चंदू चाचा परी को इक दिन घर ले जाता हैं
bed पर उसे बिठाकर दरवाजा लगा लेता हैं।

परी गईं चंदू के घर, ये पापा जब सुनते हैं
वो तो अपने घर का है सोचकर वो भी बिंदास रहते हैं।

चाचा कहकर चंदू के यहाँ खेलने आती हैं वो गुड़िया
दरवाजा लगते ही चंदू के अंदर का जाग जाता हैं भेडीयाँ।

एकदम से ही परी को कुछ समझ में नहीं आता
हाथ-पैर झटक कर कहती हैं मुझे घर जाने दो चाचा।

मुँह बंद होते ही परी का आवाज बंद हो जाता हैं
चाचा जैसे पवित्र रिश्ते का मतलब कहीं खो जाता हैं।

परी को घर लेजाने जब मम्मी bell बजाती हैं
तब हँसकर चंदू कहता हैं परी तो बिलकुल नहीं सताती हैं।

घर जाते ही परी का बोलना कम हो जाता है
उसके साथ क्या हुआ ये उसे भी समझ नहीं आता हैं।

हमारे यहाँ भी अक्सर ऐसी गुड़िया होती हैं प्यारी सी
प्यार जिस्से करते हैं सब रिश्तेदार और पड़ोसी।

हँसती खेलती परी, पापा को गुमसूम नजर आती हैं
उसने homework नहीं किया होगा ये मम्मी हँस के कहती हैं।

हमारा हरेक पड़ोसी जानवर तो नही होता।
पर दरवाजे के पिछे क्या होता हैं हमें पता भी नहीं होता।

अपनी नाजुक परी को हम जान से ज्यादा चाहते है
उसी परी के साथ ऐसे कुछ जानवर खेल सकते हैं।

ऐसे जानवरों से सबको सावधान होना चाहिए
भरोसा करने से पहले सब को परख लेना चाहिए।
~ अनामिका

Friday 17 April 2015

माना सबकी नजरों में मैं खलता रहता हूँ। फिर भी झुकता नहीं हूँ मै, चलता रहता हूँ।

माना सबकी नजरों में मैं खलता रहता हूँ।
फिर भी झुकता नहीं हूँ मै, चलता रहता हूँ।

बुरा हो या अच्छा,कुछ  कहता नहीं रब को
उसकी बंदगी में लौ सा जलता रहता हूँ।

भूखा रह लेता हूँ, गद्दारी नहीं करता
खुद्दारी पे कई दिन तक पल ता रहता हूँ।

घाव हैं कुछ पुराने जो कभी भरते ही नहीं है
उन जख्मो पर अश्कों को मलता रहता हूँ।

चाहे तोड़ दो डाली से या खुशबू लूट लो
मेरी फितरत हैं फूल सी, मैं खिलता रहता हूँ।
~ अनामिका

Saturday 11 April 2015

वो नहीं पास मेरे, पर मैं तो उसके पास हूँ यही सोचकर मैं अपना बुरा हश्र नही करता।

बस चुपके से देखता है कभी जिक्र नहीं करता
तो मैं ये कैसे कहदू कि वो मेरी फिक्र नहीं करता।

अनदेखा कर देता है सरेआम इस अंदाज से
दिखाता है कि जैसे मेरी कद्र नहीं करता।

कोई मजबूरी हि होगी जो कभी जुबान तक ना आई
वर्ना कौन हैं जो मोहब्बत पर फक्र नहीं करता।

वो नहीं पास मेरे, पर मैं तो उसके पास हूँ
यही सोचकर मैं अपना बुरा हश्र नही करता।
~ आनामिका

Thursday 9 April 2015

छह कमरों का 'मकान' देकर दो कमरों का "घर" छुडाती है आखिर यही रिवायत होती है इन अमीरों के शहरों की।


छह कमरों का 'मकान' देकर दो कमरों का "घर" छुडाती है
आखिर यही रिवायत होती है इन अमीरों के शहरों की।

हाथ पैर सलामत होकर भी ये मुकद्दर के अपाहीज बनते हैं
कुछ ऐसी ही फितरत होती है इन लकीरों के फकीरों की।

मिट्टी का घरौंदा तोड़कर मुझे सपनों से बखूबी जगाती है
बस ऐसी नजाकत होती है इन समुंदरों के लहरों की।

जोश और जज्बा होकर भी वो वजीर-ए-आलम नहीं बन सकते
अब यही किस्मत होती है इन बादशाहों के वजीरों की।

अगर सच्चाई खून में मिला दे, और खुद्दारी जिगर से लगादे
तो फिर किसे जरूरत होती है इन जोहरी के जेवरों की।
~ अनामिका

Monday 6 April 2015

बरगद और पीपल जैसे विशाल तो हम नही पर गमलों में उगने वाली तुलसी भी किसी से कम नही।

बरगद और पीपल जैसे विशाल तो हम नही
पर गमलों में उगने वाली तुलसी भी किसी से कम नही।

छुपेरुस्तम होते है ये मोहब्बतों के काफिर
अक्सर हसके कहते है, मेरी आँखे नम नही।

मैंने मेरे खुदा को भी झूठ बोलते देखा है
जब माँ मुझे कहती है उसके दिल में गम नहीं।

भरी बस्ती में भी लूट जाती है किसी बेचारी कि इज्जत
और वो दरवाजे बंद करके छिपते है, जिनके जिगर में दम नहीं।

धर्म के नाम पर कभी-कभी इंसान जानवर हो जाते है
और भूल जाते है कि जानवरों का तो कोई धर्म नही।
~ अनामिका

Saturday 4 April 2015

एक गजल.... यारों के... और उनकी यारी के नाम....

वो यारी फकत नाम कि है, जिसमें शर्म है या लिहाज है
किस्मत वालों को होती है ये बीमारी, इसका ना कोई इलाज है।

झगड़ा हो तो गाली देंगे, पर मुसीबत आएं तो जान दे देंगे
यारी में ऐसे कमीने यार तो होते ही जाँबाज है।

इश्क-मोहब्बत में जो लाख रोए, यार जो दिखे तो खुलके हसदे
यही ताकत है यारी कि, यही यारो के मिजाज है।

खून, मजहब अलग होकर भी रूह एक हो जाती है
यारी कि इस अलग दुनिया का यही एक रिवाज है।

एक नाजुक मोड़ है यारी का, जब अहम स्वयम पे हावी ना हो
यारी कि इस खुबसूरती का यही एक राज है।
~ अनामिका

Thursday 2 April 2015

ना जीने कि कोई ख्वाहिश है, ना मरने का कोई बहाना है पनाह दी है सबको मैंने, पर ना मेरा कोई ठिकाना है।


ना जीने कि कोई ख्वाहिश है, ना मरने का कोई बहाना है
पनाह दी है सबको मैंने, पर ना मेरा कोई ठिकाना है।

दुनिया वालों के हिसाब-किताब मे कच्ची पड गईं गिनती मेरी
मैं जिनका अपना नहीं, उन सबको अपना बताना है।

मोहब्बत जिससे उधार ली थी,मिजाज से वो  साओकार निकला
सुकून रख दिया गिरवी अपना, अब किश्तो में कर्ज चुकाना है।

जिंदगी के इन गर्म अंगारों का एक हि इलाज आता है नजर
ठंडक देनी है दिल के छालो को, तो खुद हि अश्कों को बहाना है।
~ अनामिका

Sunday 29 March 2015

मेरी हैसियत से ज्यादा मेरे थाली में तूने परोसा है तु लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक, मुझे तुझपे भरोसा है।

मेरी हैसियत से ज्यादा मेरे थाली में तूने परोसा है

 तु लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक, मुझे तुझपे भरोसा है।
 ~ अनामिका

Thursday 26 March 2015

रिफ्यूजी

जो दिल कि बस्ती कोई एक बार लूटले... तो फिर कहीं ठिकाना नहीं मिलता.... के अपने हि जीस्म में अपना दिल अब रिफ्यूजी कि तरह लगने लगा है।
~ अनामिका

Tuesday 24 March 2015

जान गईं है कलियाँ भी अब भँवरो कि फितरत मोहब्बत में कोई खुशबू अब बिमार नजर नही आती।

शहद होकर भी चींटीयों कि कतार नजर नहीं आती
मिलावट के जमाने मे असलियत कि बहार नजर नहीं आती।

खानदानी लोग होकर भी काँच कि चमक रखते है
रिश्तों में भी प्यार भरी तकरार नजर नहीं आती।

सीख गए है दरख्त-ए-शाख भी खुद्दारी से जीना
परिंदा अगर उड़ भी जाएँ तो पुकार नजर नहीं आती।

जान गईं है कलियाँ भी अब भँवरो कि फितरत
मोहब्बत में कोई खुशबू अब बिमार नजर नही आती।

जब बीक जाता है चंद पैसों में ईमान और जमीर यहाँ
तो शेर कि गुर्राहट भी पिंजरे मे खुंखार नजर नहीं आती।

इस कदर दहशत फैलाई है कुछ इंसानी दरिंदो ने
अब सरे आम पायलों कि झंकार नजर नहीं आती।
~ अनामिका

Saturday 21 March 2015

अक्सर जो हँसकर कहता है जिंदगी कितनी खूबसूरत है उसकी आँखो में देखा है, उसे पल पल मरते हुए।

अक्सर जो हँसकर कहता है जिंदगी कितनी खूबसूरत है
उसकी आँखो में देखा है, उसे पल पल मरते हुए।

उजालों कि चकाचौंध में जो नीडर होकर घूमता है
उसे अंधेरों में देखा है अपनी तनहाई से डरते हुए।

शोहरत, रुत्बा, हैसियत जिसे मुकद्दर से  मिलगई
उसे दरबदर भटकते देखा है सुकून ढूढते हुए।

यारों, दोस्तों कि महफिल में जो जिंदादिल कहलाता है
अक्सर उसे देखा है खुद हि खुद से लड़ते हुए।
~ अनामिका

Friday 20 March 2015

वो इक गुलाब से नजरें फेर लेता है अक्सर इस विरानी में आखिर ऐसी क्या बात है उस रात भर कि रातरानी मै?


वो इक गुलाब से नजरें फेर लेता है अक्सर इस विरानी में
आखिर ऐसी क्या बात है उस रात भर कि रातरानी मै?

जो बरसों पहले घायल हुआ था कुछ तेवर और अदावतों से
आज दरिया बनकर बह रहा है किसी नादान कि नादानी में।

अंगारों पर चलने वाला जो जाँबाज हुआ करता था कभी
नजाने क्यों अब डूबना चाहता है उन *चश्म-ए-तर के पानी में।

जो एक मुकम्मल किताब हुआ करती थी जहन के किसी कोने में
आज सिलावटे उसकी उधेड रही है, कैसा मोड़ आ रहा है कहानी में।

धीमी धीमी धड़कनो में कब *खलल पड़ जाएँ किसे पता?
यही हाल होता हैं इस चार दिन कि जवानी में।
~ अनामिका

चश्म-ए-तर= wet eyes
खलल= disturbance

Thursday 19 March 2015

तेज धूप या आँधी में उड़ने वाले पतंग से रहते है इस दुनिया में कुछ सरफीरे है जो मलंग से रहते है।

तेज धूप या आँधी में उडने वाले पतंग से रहते है
इस दुनिया में कुछ सरफीरे है जो मलंग से रहते है।

ढोंगी दुनिया कि चकाचौंध में इनकी चमक नजर नहीं आती
झूठे रंगोके झूठे लोगों में ये बेरंग से रहते है।

ये रास्ते और ये हवाएँ क्या इन्हे खाक मंजिल दिखाएँगे
अपने दम पे ठिकाना ढूँढकर ये सुरंग से रहते है।
~ अनामिका

वो बाप कहलाता है....

दुनियादारी मे वफादारी वो कुछ इस तरह निभाया करता है
अपनी आँगन का फूल किसी और बगीचे में सजाया करता है।

उचाईयों कि ख्वाहिश लिए जब जिद करता है परिंदा उसका
तीनका तीनका गिरवी रखकर खुदकी भुख दबाया करता है।

हालात चाहे हरादे उसे पर लड़ना नहीं छोडता हैं
वो मेहनत हथेली पर रखकर अपना नसीब आजमाया करता है।

जरूरतों और जिम्मेदारीयों के नाम पर कतल करता है अरमान अपने
झूठी मुस्कान के आड़े अपना गम छुपाया करता है।
~ अनामिका

Wednesday 18 March 2015

लहरों कि जुंबिश देखकर तूफान कि गहराई नांपनेसे क्या फायदा? खुदा को मानते है तो नाखुदा बनकर दरिया में उतरना होगा।

लहरों कि जुंबिश देखकर तूफान कि गहराई नांपनेसे क्या फायदा? खुदा को
मानते है तो नाखुदा बनकर दरिया में उतरना होगा।
~ अनामिका

दौलत से मै कंगाल हूँ, पर ऊसुलों का सोनार हूँ लोहे, पितल के सिक्के फेंक कर यु ना समझ मै बदल जाऊँगा।

और गिरा मुझे जिंदगी, मै गिरते गिरते संभल हि जाऊँगा
कोई गली का शराबी नहीं, जो फीसला तो फिसल हि जाऊँगा।

कोई समझाए इन दुखो को, मुझे रीहा करे अपने *आगोश से
मै कोई छुट्टी वाला इतवार नहीं, जो हाथ से निकल जाऊँगा।

मैं पत्थर हूँ, पर घाव सहकर हीरे कि तरह चमकुंगा
कोई *मग्रिब का *आफताब नही, जो धीरे धीरे ढल जाऊँगा।

दौलत से मै कंगाल हूँ, पर ऊसुलों का सोनार हूँ
लोहे, पितल के सिक्के फेंक कर यु ना समझ मै बदल जाऊँगा।

कट हि रहीं है जिंदगी, तो हसते हसते गुजारी जाए
मौत तो वैसे खड़ी है सामने, फिर आज नहीं तो कल जाऊँगा।
~ अनामिका

आगोश से- बाहो से
मग्रिब- सुर्यास्त का समय
आफताब- सुरज

Friday 13 March 2015

दिल के अंदर जरा झांककर देखू, कोई तनाव है क्या?

दिल के अंदर जरा झांककर देखू, कोई तनाव है क्या?
दिमाग से सलाह-मश्वरा करूँ, इस पर सुझाव है क्या?

सच बोलने पर अक्सर जुबान लडखडाने लगी है
अपनी खुद्दारी से पुछू कोई दबाव है क्या?

नींद मे भी ख्वाब आनेसे पहले इजाजत माँगने लगे है
अपने अतीत से जरा पुंछू, कोई घाव है क्या?

तनहाइयों कि बारिश से भीड़ कि धूप अच्छी है
खुद को जरा खो कर देखू, कोई छाँव है क्या?

एक जगह रुकने से सबसे पैरों तले कूचला जाऊँगा
अपनी मजबूरीयों से पुंछू, कोई बहाव है क्या?

आम इंसान हूँ, कहीं तो गिना जाऊँगा
अखबारो, इश्तिहारों मे देखू, कोई चुनाव है क्या?
~ अनामिका

जिसको जो कहना है कहने दो, अपना क्या जाता है?

जिसको जो कहना है कहने दो, अपना क्या जाता है?
ये वक्त वक्त कि बात है साहब, सबका वक्त आता है।

उचाईयों का शौक रखो तो जमीन का भी खौफ रखो
जो फल जीतना ज्यादा पके उतनी हि जल्दी पेड़ से गिर जाता है।

तजुर्बा कहता है, किस्मत वफादार नहीं होती
जिस पर महादेव कि क्रिपा थी, वो राम के हाथों मारा जाता है।

औकात या हैसियत कि बात कभी किसी से ना करना
पानी कि एक बुंद जो ठानले तो सिपी में मोती बन जाता है।

उजालो से याराना रखो तो अंधेरो से भी यारी रखो
वहीं सच्चा दोस्त है जिंदगी का, जो बिन बुलाए चले आता है।
~ अनामिका

Monday 9 March 2015

खोटा सिक्का

जरूरत के दिनों में काम आएगा ये सोचकर दिल से
लगाया हुआ सिक्का जब खोटा निकले तब तकलीफ बहुत
होती है।
~ अनामिका

आँस्तिन का साँप

रफीकों मे रकीबों वाली अपनी जात ना कर
जो बात नहीं करनी तो बात ना कर
वाबस्ता हैं जिंदगी भर का, कोई तमाशा नही
किसी और को दिखानेके लिए मुझे याद ना कर।
~ अनामिका

रफीक- दोस्त
रकीब- दुश्मन

फितरत में फरेब और चेहरे पर संजिदगी रहती है दोहरी नकाब में छिपने वालों कि नियत मे गंदगी रहती है।

फितरत में फरेब और चेहरे पर संजिदगी रहती है
दोहरी नकाब में छिपने वालों कि नियत मे गंदगी रहती है।

जो हुक्म हो उस *ईलाही का तो सारे जुर्म हसके सहले
ऐसे कुछ फरीश्तों के खून में *बंदगी रहती है।

ताउम्र गुरूर और अहम में जो जीते रहें
आखिरी कुछ घड़ीयो में उन नजरों मे शर्मिंदगी रहती है।

मोहब्बत में दिल हि नही, जान भी जिन्होने हारी हो
मोहब्बत के उन मसिहों की रूहों मे वाबस्तगी रहती है।

क्या गीला-शिकवा, क्या शोहरत-रूत्बा
आखिर कुछ वक्त की ही अपनी जिंदगी रहती है।
~ अनामिका

ईलाही- ईश्वर
बंदगी- सेवा
वाबस्तगी- attachment

Sunday 8 March 2015

इश्क

जबसे इस इश्क मे वफा कर बैठे है
लगता है मस्जिद में जफा कर बैठे है।
एक मुद्दत से खुदकी खबर हि नहीं ली
एक मुद्दत से खुदको खफा कर बैठे है।
~ अनामिका ( जफा- जुर्म)

Saturday 7 March 2015

दिल

अक्सर लोग कहते है
तेरी जुबान बहुत गरम है
कोई लफ्जो को पलट कर तो देखे
दिल अंदर से बहुत नर्म है।
~ अनामिका

Thursday 5 March 2015

बारिश...♡♡♡

बड़ा गुरूर था उस गुलाब को अपनी खुशबू पर... की जबसे बरस गईं है कुछ बारिश की बुंदे, ये सुखी मिट्टी भी  फिरसे महक उठी है....
- अनामिका

Tuesday 3 March 2015

जो नफरत उसको दिखाई थी कुछ यु बेकार होगई जबान मेरे बस में रहीं और आँखे गद्दार होगई।

जो नफरत उसको दिखाई थी कुछ यु बेकार होगई
जबान मेरे बस में रहीं और आँखे गद्दार होगई।

बद्दुआओसे नवाजा होगा शायद किसीने मुझे
इश्क होगया मुझसे और उसकी मन्नत साकार होगई।

मशहूर करदीया मुझे इस कदर तेरे इश्क ने
मेरी बर्बादी की सुर्खियाँ मेरे गली का अखबार होगई।

मोहताज नही है ये किसी ताबिज या हकीम की
इस दिल पर लगी चोट भी मेरी तरह खुद्दार होगई।

जहाँ अलविदा वो कहगया कुछ फूलोंको थमाकर
वो मिट्टी होंठो से चूमकर मेरे लिए मजार होगई।

सर पर खून सवार था इन सन्नाटो को चीरनेका
इसी जद्दोजहद मे मेरी कलम तलवार होगई।
~ अनामिका

Sunday 1 March 2015

तेव्हा आपल्या जवळ रडण्या पलीकडे काहीच उरलेलं नसतं.....

             असं वाटतं... की कधी एके
काळी या विशाल आकाशा ला खूप गर्व असेल स्वतः वर.
स्वतः च्या विशालतेवर. कदाचित तो विसरला असेल
की त्याच्या या विशालतेला सुंदर बनवण्याचं खरं कारण
म्हणजे त्या लुकलुकत्या चांदण्या आहेत. जर आकाशात
ह्या चांदण्या आणि तारे नसतील तर
त्या आकाशाची सुंदरता ही नसेल.
कदाचित तो आपल्या गर्वामध्ये इतका बुडाला असेल
की या चांदण्यांचा विचारही त्याचा मनात
आला नसेल. आणि कदाचित हेच कारण असेल,
की तेव्हा पासून रोज
कुठली ना कुठली चांदणी,
कुठला ना कुठला तारा त्याला सोडून चाल्ला जातो. कदाचित त्या तार्यांमध्ये खरं
प्रेम लपलं आहे, म्हणूनच जेव्हा एखादा तारा त्या आकाशाला सोडून जातो,
तेव्हा तो स्वतः ही तुटतो.
असंच रोज तार्यांचं आकाशाला सोडून जाणं
कधीतरी त्या आकाशाच्या लक्षात आलं
असेल.
उशिरा का होईना, पण तार्यांचा विरह
त्याला ही जाणवला असेल.
आणि कदाचित हेच कारण असेल,
की जेव्हा जेव्हा या तार्यांचा विरह त्याला सहन होत
नाही तेव्हा तो जोरात किंचाळतो. ओरडून ओरडून रडतो.
कदाचित
या पावसाच्या थेंबांमध्ये ही त्याचेच अश्रु
असतील.
             आपले खरे मित्र ही या तार्यांप्रमाणे
असतात. यांच्या असण्याने आपलंही जग सुंदर होतं. पण
कधी यशाच्या उंच शिखरावर
पोहोचलो की आपण
ही त्या आकाशाप्रमाणे होतो....
या तार्यांसारख्या मित्रांचा विचार
ही मनात येत नाही. आणि या तार्यांप्रमाणेच
हळू हळू सगळे आपल्या पासून दूर व्हायला लागतात. दूर होऊन ते
ही कुठे ना कुठे तुटतातच. आणि जेव्हा आपल्या लक्षात
येतं
तोपर्यंत सगळे तारे हळूहळू दूर होऊन तुटलेले असतात.
आणि तेव्हा आपल्या जवळ रडण्या पलीकडे
काहीच उरलेलं नसतं.....
~ अनामिका

Thursday 26 February 2015

ये खुदगर्जी नही,मेरी मर्जी है।

अपने मन की करता हूँ तो कहते है ये खुदगर्जी है
अपने उसुलों का बादशाह हूँ, ये खुदगर्जी नही मेरी मर्जी है।

सब को खुश रख सकूँ ये तो मेरे बस में नहीं
झूठी तारीफ, झूठा दिखावा ये सब तो आखिर फर्जी है।

जब जब जख्म मिलते है तो बखूबी सिल लेता हूँ
कारागिरी मेरी गौर से देखना, मुझमें भी इक दर्जी है।

इस खुद्दारी और जमीर के वास्ते, कितनोसे रिश्ते तोड़े है
रिश्ते कम हो पर सच्चे हो, खुदा से यही अर्जी है।
~ अनामिका

जिंदादिली

खामोश सी जिंदगी है, अरमान बोहोत है
भीड़ सी बस्ती मे चलते है, अंजान बोहोत है।

इम्तिहानोका चलताहे सिलसिला मंजीलोका निशान मिलता नही
ख्वाहिशोका घुटताहे गला न जाने उस खुदा को कैसे
दिखता नही।

ए खुदा मत कर गुरुर अपनी हस्ती पर, एक दिन
मेरा भी आएगा
खुदकी हस्ती पर नाज करने वाले, तु खुद इस
बंदी को दुनियासे मिलाएगा।

किस्मत भी झुकेगी मेरे आगे, माथे की लकीर
भी बदलेगी
कल जे हसते थे मुझपे, आज उनकी नीयत बदलेगी।

रंगीन सी दुनिया है, फीरभी बेरंग लगती है
चांदनी तो चांद का हीस्सा है,
फीरभी अलग सी लगती है।

दिखावे की मुस्कान है
तनहाई मे डूबी हर एक शाम है
बीखरा है कई टुकडो मे ये दील,
मगर "जिंदादिली" इस दिल की पहचान है।
~ अनामिका

3 JULY 2012

Tuesday 24 February 2015

अनामिका

हर सुबह इन आँखोमे इक पहेली सी रहती है
थोड़ी ही सही, पर आँखो में लाली सी रहती है।

पुंछता है कोई जब इन लाल आँखो का सबब
नजाने क्यु ये जबान खाली सी रहती है।

ढूँढती हूँ ख्वाबोमें जब जिंदगी के रंगोको
सपनों की दुनिया भी बस काली सी रहती है।

झूकती है अक्सर पर टूटती नही है
मेरी जिंदगी भी किसी पेड़ की डाली सी रहती है।

फीसल जाते है हाथो से रेत की तरह लम्हे
किनारे पर ये मुट्ठी सिर्फ गीली सी रहती है।

मोहताज नही है वो किसी चाँद, सूरज की चमक के
इन जुगनूओ में भी 'अनामिका' के सहेली सी रहती है।
~ अनामिका

Monday 23 February 2015

A Question to d God.... _/\_

A Question to d God... _/\_

मेरे मालिक मुझे रह रहकर एक ही बात सताती है
मेरे ही सपने मुझे ना हासिल हो, ये तो सरासर ज्यादति है।

तू जो करेगा ठीक ही करेगा, माँ ये अक्सर बताती है
अब तू दिमाग से शातिर है या माँ मेरी जज्बाति है?

मेरे कर्मो का हिसाब-किताब फिरसे एक बार देखले
मै ही कही गलत हूँ या तकदिर मेरी देहाती है?

साए की तरह चिपके है ये इम्तिहानों के सिलसिले
इकदूजे बिन अधूरे हम, जैसे दिया और बाती है।

ना मैं लडकर थका हूँ ना तू आजमाकर थका है
अब आगे तेरी मर्जी मालिक, बस तू ही मेरा साथी है।
~ अनामिका

Saturday 21 February 2015

लक्ष

अक्सर जिसकी कोशिशों में थकान होती है
वहीं हस्ती आगे जाकर महान होती है।

फरेब और मक्कारी से दुश्मनी हो जिसकी
सच्ची अक्सर उसीकी जबान होती है।

अपने नाम का सिक्का बाजार में जब चलने लगे
धीरे धीरे शख्सियत अपनी बदनाम होती है।

जिंदगी का मक्सद जो पूरा करने की ठानले
बढ़ते बढ़ते उम्र उसकी कुर्बान होती है।

मुकद्दर को हराकर जो जीत की और कदम बढ़ाए
बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी फीर आसान होती है।
~ अनामिका

Friday 20 February 2015

इक गुमनाम शायर...

इक गुमनाम शायर  <3

मेरे मालिक तूने मुझे ये कैसी बिमारी दे दी
राज-ए-दिल जो बयान करूँ कुछ ऐसी फनकारी दे दी।

सपनों की इस दुनिया का इक गुमनाम सा शायर हूँ
खानाबदोशी जस्बातों को इक सच्ची शायरी दे दी।

गमों का ये खजाना खुशनसिबी से हासिल होता है
शिद्दत से हिफाजत कर सकूँ कुछ ऐसी नौकरी दे दी।

मै सुखनवर हूँ, रोजे खामोशी के रखता हूँ
रहम है मेरे इलाही का, जिसने लफ्जों की इफ्तारी दे दी।
~ अनामिका

खानाबदोश- मुसाफीर, vagrant
सुखनवर- शायर, कवि
इलाही- ईश्वर

Thursday 19 February 2015

टूटे इस दिल की आज हिफाजत करले तू आकर मेरे जख्मों की मरम्मत करले।

टूटे इस दिल की आज हिफाजत करले
तू आकर मेरे जख्मों की मरम्मत करले।

इक तेरीही तलब है जो बुझी नहीं अबतक
आज शराफत से पिलानेकी तू हिमाकत करले।

तेरे दिल पें घाव कुछ मैंने भी दिए होंगे
आज आकर मुझसे मेरीही शिकायत करले।

हक है तुझे अपनी मनमानी का जानम
तू आकर मेरी सल्तनत में बगावत करले।

तुझे पानेकी चाह में खुदा से लड़ बैठा हूँ
आज आकर मेरे हवाले से तू इबादत करले।

हिज्र की आग में इस कदर जल रहा हूँ
तू आकर आज मुझसे फीर मोहब्बत करले।
~ अनामिका

हिज्र- जुदाई

Tuesday 17 February 2015

सालों बाद वो नजर आया कुछ इस अंदाज से जैसे नजरें उसकी मिलगई हो किसी अंजान से।

सालों बाद वो नजर आया कुछ इस अंदाज से
जैसे नजरें उसकी मिलगई हो किसी अंजान से।

देखकर उसका यू मुड़जाना इक तसल्लि देगया यारों
रिश्ता तो आज भी गहरा है उसका, इस नादान से।

कुछ कसमें, कुछ वादों के जो गवाह हुआ करते थे
वो ठिकाने अब नजर आते है कुछ विरान से।

जुदा होना हि मुकद्दर है, तो इक फरियाद सुनले मालिक
उसे तमाम खुशियाँ हासिल हो इस जहान से।
~ अनामिका

Monday 16 February 2015

♡♡♡♡♡

जो नफरत उसको दिखाई थी कुछ यु बेकार होगई
जबान मेरे बस में रही, और आँखे गद्दार होगई।
~ अनामिका

Sunday 15 February 2015

जैसा मुझसे हुआ वैसा तुझसे गुनाह होता मुझे पाने के खातिर काश तू भी फनाह होता।

जैसा मुझसे हुआ वैसा तुझसे गुनाह होता
मुझे पाने के खातिर काश तू भी फनाह होता।

कैद लगने लगी थी जो मेरे दिल की सलाखें
मुझे खबर होते ही तू कबका रिहा होता।

जमाना जो पुंछता तो देख लेते मेरी तरफ
बेवफाइ का ईल्जाम भी बखूबी सहा होता।

ख्वाहिश अपने दिल कि जो जाहिर करते जानम
बस तेरे खातिर जान, मैं हसकर तबाह होता।
~ अनामिका

Saturday 14 February 2015

तकदीर

कभी ना कभी तो ऐसी तस्वीर दिखेगी.... जब ये
तकदीर मेरे कदमों मे झुकेगी। - अनामिका

मेरे तसव्वूर मे छुपा है, वो ऐसा चेहरा होगा जो ख्वाब में ही नही हकीकत मे मेरा होगा।

मेरे तसव्वूर मे छुपा है, वो ऐसा चेहरा होगा
जो ख्वाब में ही नही हकीकत मे मेरा होगा।

अपनी बादशाही छोड़कर उसे ये गुलामी अजिज लगेगी
जब मेरे दिल की सल्तनत पर उसका पेहरा होगा।

उसकी चलती धड़कनो में इक खलल सा पड जाएगा
जब अश्कों का इक कतरा मेरी आँखो मे ठहरा होगा।

कभी जुदा ना होनेकी कसम जब वो खाएगा
तब मोहब्बत का ये सिलसिला और भी गहरा होगा।

अपनी चाहत का सबूत कुछ इस तरह देगा वो
मेहंदी लगेगी इन हाथोमे, उस के सर पर सहरा होगा।
- अनामिका

तसव्वूर- imagination
खलल- disturbance

Friday 6 February 2015

मुकद्दर का आफताब जबसे ढलने लगा है ख्वाहीशों का नशा तो और भी चढ़ने लगा है।

मुकद्दर का आफताब जबसे ढलने लगा है
ख्वाहीशों का नशा तो और भी चढ़ने लगा है।

दगाबाजों के दरीया मे रहनुमा जब खुदा है
नाखुदा बनकर मेरा हौसला बढने लगा है।

इस दोस्ती मे इन रीश्तो मे अब खुशबू नही आती
जबसे इक गुलाब इस दीलमे पलने लगा है।

बेमोल पानी का इक कतरा सीपी मे क्या कैद हुआ
अनमोल मोती बनकर अब दुनिया मे खुलने लगा है।

भटकते मन के पंछी पे ऐतबार मत करना
आवारा वो पंछी अब हवा मे उडने लगा है।

चमकते उन रास्तों को पानी समझता है बेवकूफ
प्यासा वो अहू भी जमके दौडने लगा है।

रात की इस तनहाई मे उस चाँद को क्या "दोस्त" कहा
अमावस की काली रात मे वो भी छीपने लगा है।

जबसे मै पढने लगी हू उस "मीर" की गजले
मेरी बेजान आँखोमे नूर दीखने लगा है।
- अनामिका

आफताब- सुरज
रहनूमा- मार्गदर्षक
नाखुदा- नाव चलाने वाला
अहू- हीरन

छुट्टी लेकर फुरसत से जब तुझे बनाया होगा खुद की इस कारागिरी पर खुदा भी खूब इतराया होगा।

छुट्टी लेकर फुरसत से जब तुझे बनाया होगा
खुद की इस कारागिरी पर खुदा भी खूब
इतराया होगा।
- अनामिका

मेहफीलो मे हुकूमत तो हर कोई करता है.... तनहाइयों पर राज करनेका हुनर सबको नही आता....

मेहफीलो मे हुकूमत तो हर कोई करता है....
तनहाइयों पर राज करनेका हुनर
सबको नही आता.... - अनामिका

Dedicated to Rahat Indori Sir.... My most favorite Shayar.....


Dedicated to Rahat Indori Sir.... My most favorite
Shayar.....

राहत तेरी गजलों का कुछ ऐसा नशा होजाता है
शराब की भी धज्जिया उडे कुछ ऐसा वाकीया होजाता है।

तनहाइ मे भी विरानी से इस कदर प्यार होजाता है
तेरी नशीली गजलों का जब दीलपर वार होजाता है।

दर्द महसूस करना हो तो जख्म होना जरूरी नही
तेरे लफ्जो को पढ़कर भी उस दर्द का इल्म होजाता है।

फनकारी का ये हुनर खुदा सबको नही देता
तेरे जैसा शायर तो कभी कबार ही होजाता है।
- अनामिका

खुदा से तुझे पाने की गुजारीश मै करता हु उसके दर पे जाता हु और तेरी परस्तिश करता हु।

खुदा से तुझे पाने की गुजारीश मै करता हु
उसके दर पे जाता हु और तेरी परस्तिश करता हु।

इस जन्म मे ना सही, अगले जन्म मे तो हासिल हो
यही उम्मीद लेकर उससे रोज सीफारीश करता हु।

रास्ते जुदा होगए अपने, मंजील भी अब अलग है
पर तेरी गली से जो गुजरे कुछ ऐसी रविश करता हु।

नजर तुजसे मीलती है तो खुलके हस लेता हु
दील पे अपने पथ्थर रख के ऐसी साजिश करता हु।

जीसके नसीब मे तु लीखी है उसके नसीब को सलाम मेरा
मेरे नसीब पे मातम मनाके अश्कों की बारिश करता हु।

तुझे मेरी याद ना आए कोइ ऐसा हमसफर मीले तुझे
इस दील की गहराई से यही ख्वाहीश करता हु।
- अनामिका

परस्तिश- पुजा
रविश- छोटा रास्ता
मेरा दील बस इतना जानता है... की उस दील
को अपनी जान मानता है.... - अनामिका

Dedicated to all the "गली के टपोरी's"

Dedicated to all the "गली के टपोरी's"

शक्ल सुरत देखी नही
ना देखा कभी आईना
जब भी गली से गुजरता है
कहता है मै हु ना। :D

ना भाव देती है चंद्रमुखी
ना घास डालती है पारो
फीर भी style मे कहता है
जानम समझा करो। :D

सडकछाप jeans पहनके
मुँह मे चबाता है chewing gum
हरकते है टपोरी जैसी
पर खुदको समझता है सिंघम। :P

आँख मारके बोलता है
रानी कुछ कुछ होता है
भैया से मार पडी तो
पैर पकड़ के रोता है। :D

हवा मे उडाके Bike
कहता है धूम मचाले
अरे आवारा लड़के
पहले फुटी कौडी कमाले।

वाह रे गली के आंशिक
तुझे तो इसीमे मजा है
पर तेरी गंदी हरकते
हर लड़की के लिए सजा है। :(

लड़की पर गंदी बाते
ये मस्ती नही होती
कीसी भी लड़की की ईज्जत
इतनी सस्ती नही होती। :(

एक बार सोचके देख
बदल के देख ये रवैया
कीसी छोटीसी बहन का तो
तु भी होगा भैया।

अब तक चाहे गलत था
अब तो कुछ सीखले
मुश्किल नही है कुछ भी
खुद को बदल के देखले।

औरत की इज्जत करके देख
तुझे इज्जत मील जाएगी
जन्नत जानेकी सीडी
तेरे सामने खुल जाएगी। :)
- आनामिका

यु ही नही आता ये शेर-ओ-शायरी का हुनर... कुछ खुशियाँ गिरवी रखकर जिंदगी से दर्द खरीदा है। - अनामिका

यु ही नही आता ये शेर-ओ-शायरी का हुनर... कुछ
खुशियाँ गिरवी रखकर जिंदगी से दर्द खरीदा है।
- अनामिका

Monday 26 January 2015

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था
पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

दील के कुछ गहरे राज अंदर ही दफन करदीये
यु होठ सीलके मुस्कुराना खामखा भी नही था।

मनमानी और बगावत तो आदत है ईस दील की
जिद्दी है ये दील लेकिन बेहया भी नही था।

दीलो का ये खेल कोई समझदारी से थोड़ी खेलता है
मिजाज से दोनों नवाब थे कोई बेचारा भी नहीं था।

खुन मे जवानी दौडती है और ईसका कोई ईलाज नही
खेल मे वैसे दील लगानेका तो मेरा भी ईरादा नही था।

कीस्मत की ये बात है कुछ दीन बाद समझ आएगी
वर्ना हम दोनों में कोई गलत भी तो नही था।

ना दील मे कोई मलाल है ना लबो पे कोई बद्दुआ
कल वक्त कैसा आएगा ईसका अंदाजा भी तो नही था।

भुलना ईतना आसान नही पर मजबूरीयाँ भी होती है
ईस तरह कीसीको भुलनेवाला मै अकेला भी तो नही था।

ये उपरवालेका खेल है अपने समझ में नही आएगा
जो भी करेगा ठीक ही करेगा वो पराया भी तो नही था।

दील तो वैसाही है पर अब दीमाग बोलने लगा है
यु मतलबी बनने के अलावा और कोई चारा भी तो नही था।

कुछ ही दीनों का खेल है फीर मंजील अपनी अलग है
वर्ना दील के खेल में अबतक मैं भी हारा नही था।
- अनामिका

खबर होके भी जो बेखबर नजर आता है कीसीकी नफरत का अब असर नजर आता है।











खबर होके भी जो बेखबर नजर आता है
कीसीकी नफरत का अब असर नजर आता है।

खुशियों का खजाना जो मुफ्त बाँटा करता था
अब उसका भी बेवजह इक तेवर नजर आता है।

एक लमहे की दूरी जीसे बेसबर करती थी
अब उसमें ही मुद्दतो से इक सबर नजर आता है।

आँखों मे मीठास और लफ्जो मे खुशबू थी
अब उसके ही जायके में इक जहर नजर आता है।

हीज्र से फकत ये तोहफा मीला है
दफनायी मोहब्बत का कब्र नजर आता है।

ठुकरा दीया तनहाइ मे रोनेका सीलसीला
अब उसमें भी जीनेका हुनर नजर आता है।

मुसलसल अना को जीसने दाँव पे लगा दीया
उसीमे उसका जमीर अब मयस्सर नजर आता है।
- अनामिका

Tuesday 20 January 2015

तो क्या हुआ की ऊपर वाले की आज मुझपे रहमत नही जहाँ अंधेरा हटकर उजाला ना हो ऐसी कोई कुदरत नही।











तो क्या हुआ की ऊपर वाले की आज मुझपे रहमत नही
जहाँ अंधेरा हटकर उजाला ना हो ऐसी कोई कुदरत नही।

बडे बड़े तुफान आएं पर आज भी डट के खडा हु
देखले मुझे जिंदगी, अब मुझमे तेरी दहशत नही।

जिंदादीली से हसता हु तो आज भी लोग फसते है
अपने अश्को का इश्तिहार करू ऐसी मेरी आदत नही।

नादान है वो शक्स जीसने हरा दीया था मोहब्बत मे
आज बेईज्जत उसे करदू ऐसी मेरी फीतरत नही।

जवानी का तो आगाज है उम्र अभी लंबी है
मुंतजीर हु मौत का जैसे जीनेकी मुझे हसरत नही।

कीसीने दील की गहराई से मुझे बद्दुआओसे नवाजा होगा
लगता है अब दुआओकी मेरी तकदीर में बरकत नही।

जख्मोका सैलाब उबलता है तो कलम से लहू बहता है
राज-ए-दील जो बोलके रखदू अब इतनी मुझे फुरसत नही।
- अनामिका

दहशत -डर
अश्क- आँसू
फीतरत- स्वभाव
मुंतजीर- इंतजार करने वाला
हसरत- इच्छा

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था
पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

दील के कुछ गहरे राज अंदर ही दफन करदीये
यु होठ सीलके मुस्कुराना खामखा भी नही था।

मनमानी और बगावत तो आदत है ईस दील की
जिद्दी है ये दील लेकिन बेहया भी नही था।

दीलो का ये खेल कोई समझदारी से थोड़ी खेलता है
मिजाज से दोनों नवाब थे कोई बेचारा भी नहीं था।

खुन मे जवानी दौडती है और ईसका कोई ईलाज नही
खेल मे वैसे दील लगानेका तो मेरा भी ईरादा नही था।

कीस्मत की ये बात है कुछ दीन बाद समझ आएगी
वर्ना हम दोनों में कोई गलत भी तो नही था।

ना दील मे कोई मलाल है ना लबो पे कोई बद्दुआ
कल वक्त कैसा आएगा ईसका अंदाजा भी तो नही था।

भुलना ईतना आसान नही पर मजबूरीयाँ भी होती है
ईस तरह कीसीको भुलनेवाला मै अकेला भी तो नही था।

ये उपरवालेका खेल है अपने समझ में नही आएगा
जो भी करेगा ठीक ही करेगा वो पराया भी तो नही था।

दील तो वैसाही है पर अब दीमाग बोलने लगा है
यु मतलबी बनने के अलावा और कोई चारा भी तो नही था।

कुछ ही दीनों का खेल है फीर मंजील अपनी अलग है
वर्ना दील के खेल में अबतक मैं भी हारा नही था।
- अनेमिका

Wednesday 14 January 2015

जो ईनसानीयत का त्योहार मनाए, कोई ऐसा मजहब है?

ईनसान बोहोत है पर एक महबूब की तलब है
जो ईश्क का बुखार उतारे, कही ऐसा मतब है?

दीवाली, रमजान, क्रीसमस आजतक बोहोत मनालीये
जो ईनसानीयत का त्योहार मनाए, कोई ऐसा मजहब है?

मुकद्दर से बादशाही तो नवाबों को भी मीलती है
कोई फकीर को शहंशाह बनादे, कही ऐसा अदब है?

यु टुटकर मेरी ख्वाहीश, ईक आशिक भी पुरी करता था
क्या दूर उन सितारों में कोई वैसा गजब है?

मुंतजीर हु अब तो बस उस आखिरी पल के लिये
ईस रूह को मालिक से मीलादू, कोई ऐसा सबब है?
- अनामिका

तलब-प्यास, मतब-अस्पताल
अदब- respect
सबब-पुण्य
मुंतजीर- इंतजार करने वाला

Monday 12 January 2015

रात के ईस अंधेरे में कभी चूप चूप के रोलीया करो पर सुबह होते ही दुनिया केसामने खुल के जीया करो

अपनी कमजोरियों को यु ना ईश्तीहार बनाया करो
निकम्मो को गुफ्तगु का यु ना कारोबार दीया करो।

ईश्क है तो ईश्क का इजहार ना कीया करो
मरनेकाही शौक है तो जहर पीलीया करो।

कीसी अपने की मदत करके यु ना सबको बताया करो
शर्मींदा करके एहसानो को यु ना बार बार जताया करो।

काम के नाम पर फरेब से यु ना लोगों को फसाया करो
फीर पाप धोनेके नाम पर यु ना गंगा नहाया करो।

रूठ जानेपर बीवी को भलेही गलेसे लगाया करो
पर कीसी रोज माँ-बाप के पैर भी छुलीया करो।

जन्मदीन और सालगीरह के खूब जश्न मनाया करो
पर कीसी शाम गरीबों को खाना भी खीलाया करो।

रात के ईस अंधेरे में कभी चूप चूप के रोलीया करो
पर सुबह होते ही दुनिया केसामने खुल के जीया करो
- अनामिका

Sunday 11 January 2015

मेरी ईस शायरी की वाह वाह कबतक होगी?

लोगों के दीलों मे मेरी पनाह कबतक होगी?
मेरे ईन लफ्जों पर वो निगाह कबतक होगी?
वक्त बदलता है तो फनकार भी बदलते है दोस्त
मेरी ईस शायरी की वाह वाह कबतक होगी?
- अनामिका

हम आज भी यहाँ मोहब्बत चोरी से करते है।

कीरदार तो अक्सर नकाब में ही रहता है
लोग ईनसान की पेहचान उसकी अदाकारी से करते है।

मजबूरी में खुद्दारी जब जवाब देने लगे
वो अना की निलामी बारी बारी से करते है।

कुछ आस्तिन के साँपो का जहर भी मीठा लगता है,
जो बेईमानी भी बड़ी ईमानदारी से करते है।

ईस सीयासत में कुछ नेता ऐसे भी होंगे
जो मुल्क की सेवा वफादारी से करते है।

जो शायर है, उनका मीजाज अलग है
वो दर्द-ए-दील बयान अपनी शायरी से करते है।

हम हींदुस्तानी है। अपनी तहजीब नही छोडते
हम आज भी यहाँ मोहब्बत चोरी से करते है।
- अनामिका

Saturday 10 January 2015

क्या करे जनाब अपनी कीस्मत बडी कमिनी है।

हर बंदे के जबान पर अब यही एक कहानी है
क्या करे जनाब अपनी कीस्मत बडी कमिनी है।

धोखा दीया सपनों ने, इन आँखो में बस पानी है
साये की तरह चीपकी ये फुटी तकदीर अपनी दीवानी है।

गरीब बच्चा जो भूल करे तो जान पर उसके बन आनी है
अमीर शहजादा कतल भी करे तो ये उसकी नादानी है।

पैसा कमाने का जरीया यहा बस बेईमानी है
वफादारी से नौकरी अब कीसको यहाँ निभानी है?

काम की बात हो तो सबको रंजीशे भुलानी है
मतलब खत्म हो तो यहाँ दोस्ती में भी दुश्मनी है।

पढा लीखा होकर सबको परदेस से रोटी कमानी है
कहते है अपने देश मे अब कहा जिंदगी गवानी है।

बीवी के खातिर सबको यहाँ महँगी चीजे लानी है
बुढी माँ की तकलीफे तो जानकर भी अंजानी है।

हर फकीर को यहाँ जिंदगी ऐसे बीतानी है
पापी पेट का सवाल है तो करेले में भी चिनी है।

सबके अपने झमेले और सबकी अलग कहानी है
फीर भी सब कहते है अपनी कीस्मत बडी कमीनी है।
- अनामिका

Wednesday 7 January 2015

भुलाने पर आते तो कबका भुला देते जो बीना रूह के बस वो एक मीट्टी का जीस्म होता।

कागजों के पन्नों जैसी ये मोहब्बत कहाँ है
जैसे आग मे फेंक दीया और ये कीस्सा भस्म होता।

भुलाने पर आते तो कबका भुला देते
जो बीना रूह के बस वो एक मीट्टी का जीस्म होता।

सरेआम बेझीझक बखूबी से निभाया होता
जो बिना ईश्क बस वो एक मंगनी की रस्म होता।

जिंदगी की अकेली ख्वाहीश मे उसेही मांगलेता
मेरे पास जो कुदरत का जादुई तीलीस्म होता।

साँस लेना भुलजाता पर उसे कभी भुलता नही
जो मेरे रगो मे बसा वो कोई गजल या नज्म होता।

मैने उसे छोडदीया या वो मुझे भुलगया
बुरे कीसी सपने की तरह बस ये भ्रम होता।

जैसा हम करते है, वैसाही हम भरते है
काश पीछले जन्मों का मेराभी अच्छा कर्म होता।
- अनामिका

Monday 5 January 2015

माँ के हाथों का निवाला तो जन्नत से भी बढकर है.....

बुरे वक्त की आजमाईशों में जब जब मै फसता था
अपनों के उस खोकले प्यार पर मन ही मन मे हसता था।

ईबादत में मांगा हो और हकीकत में पालीया
वो ईनसान तो नही होगा, जरूर कोई फरीश्ता था।

खुशबू लेकर चले गए और पलटकर जीसे देखा तक नही
अकेले कीसी कोने मे पडा वो मेरे दील का गुलदस्ता था।

हसते हसते कंधो पर जो बोझ उठाया करते थे
गुजरे हुए बचपन का वो तो स्कुल का बस्ता था।

माँ के हाथों का निवाला तो जन्नत से भी बढकर है
हजारों रुपयो से खरीदा हुआ वो खाना बडा सस्ता था।

भीड़ बरी मेहफीलें भी काटों की तरह चुभती है
ईस तनहाई से, ईस वीरानी से आखिर कैसा रीश्ता था।

मोहब्बत जब जब हुई तो गजब की हुईं यारो
मै तो जैसे मुंगफल्ली, और वो महंगा पीस्ता था।
- अनामिका

जब जब जिंदगी में आजमाईशों का मेला आगया माँ ने हसके देखा और लडनेका हौसला आगया।

जब जब जिंदगी में आजमाईशों का मेला आगया
माँ ने हसके देखा और लडनेका हौसला आगया।

मेरे जीतने की खुशी पर जलके राख होगए लोग
जरासी हार क्या मीली हसने मोहल्ला आगया।

बेईमानी और ईमानदारी की जंग छीडी हुई थी कही
हार मीलगई गरीब को, जीतकर पैसेवाला आगया।

जींदा था जो कलतक उसे हालचाल कीसीने पुछा नही
मगरमछके आंसु बहाने आज काफिला आगया।

शोहरत और दौलत पर जो गुरूर करके जीता रहा
आखिरी साँस टुटतेही दुनिया से अकेला आगया।

ईस दौर की तकनीक से कुदरत को हराने चले थे बेवकुफ
धज्जीया उडगई सबकी जब त्सुनामि, जलजला आगया।

पडोसी मुल्क उजडा था तब चैन की नींद सो रहे थे जो
आज उनके ही घर पर आतंकवाद का हल्ला आगया।
- अनामिका