Monday 26 January 2015

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था
पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

दील के कुछ गहरे राज अंदर ही दफन करदीये
यु होठ सीलके मुस्कुराना खामखा भी नही था।

मनमानी और बगावत तो आदत है ईस दील की
जिद्दी है ये दील लेकिन बेहया भी नही था।

दीलो का ये खेल कोई समझदारी से थोड़ी खेलता है
मिजाज से दोनों नवाब थे कोई बेचारा भी नहीं था।

खुन मे जवानी दौडती है और ईसका कोई ईलाज नही
खेल मे वैसे दील लगानेका तो मेरा भी ईरादा नही था।

कीस्मत की ये बात है कुछ दीन बाद समझ आएगी
वर्ना हम दोनों में कोई गलत भी तो नही था।

ना दील मे कोई मलाल है ना लबो पे कोई बद्दुआ
कल वक्त कैसा आएगा ईसका अंदाजा भी तो नही था।

भुलना ईतना आसान नही पर मजबूरीयाँ भी होती है
ईस तरह कीसीको भुलनेवाला मै अकेला भी तो नही था।

ये उपरवालेका खेल है अपने समझ में नही आएगा
जो भी करेगा ठीक ही करेगा वो पराया भी तो नही था।

दील तो वैसाही है पर अब दीमाग बोलने लगा है
यु मतलबी बनने के अलावा और कोई चारा भी तो नही था।

कुछ ही दीनों का खेल है फीर मंजील अपनी अलग है
वर्ना दील के खेल में अबतक मैं भी हारा नही था।
- अनामिका

खबर होके भी जो बेखबर नजर आता है कीसीकी नफरत का अब असर नजर आता है।











खबर होके भी जो बेखबर नजर आता है
कीसीकी नफरत का अब असर नजर आता है।

खुशियों का खजाना जो मुफ्त बाँटा करता था
अब उसका भी बेवजह इक तेवर नजर आता है।

एक लमहे की दूरी जीसे बेसबर करती थी
अब उसमें ही मुद्दतो से इक सबर नजर आता है।

आँखों मे मीठास और लफ्जो मे खुशबू थी
अब उसके ही जायके में इक जहर नजर आता है।

हीज्र से फकत ये तोहफा मीला है
दफनायी मोहब्बत का कब्र नजर आता है।

ठुकरा दीया तनहाइ मे रोनेका सीलसीला
अब उसमें भी जीनेका हुनर नजर आता है।

मुसलसल अना को जीसने दाँव पे लगा दीया
उसीमे उसका जमीर अब मयस्सर नजर आता है।
- अनामिका

Tuesday 20 January 2015

तो क्या हुआ की ऊपर वाले की आज मुझपे रहमत नही जहाँ अंधेरा हटकर उजाला ना हो ऐसी कोई कुदरत नही।











तो क्या हुआ की ऊपर वाले की आज मुझपे रहमत नही
जहाँ अंधेरा हटकर उजाला ना हो ऐसी कोई कुदरत नही।

बडे बड़े तुफान आएं पर आज भी डट के खडा हु
देखले मुझे जिंदगी, अब मुझमे तेरी दहशत नही।

जिंदादीली से हसता हु तो आज भी लोग फसते है
अपने अश्को का इश्तिहार करू ऐसी मेरी आदत नही।

नादान है वो शक्स जीसने हरा दीया था मोहब्बत मे
आज बेईज्जत उसे करदू ऐसी मेरी फीतरत नही।

जवानी का तो आगाज है उम्र अभी लंबी है
मुंतजीर हु मौत का जैसे जीनेकी मुझे हसरत नही।

कीसीने दील की गहराई से मुझे बद्दुआओसे नवाजा होगा
लगता है अब दुआओकी मेरी तकदीर में बरकत नही।

जख्मोका सैलाब उबलता है तो कलम से लहू बहता है
राज-ए-दील जो बोलके रखदू अब इतनी मुझे फुरसत नही।
- अनामिका

दहशत -डर
अश्क- आँसू
फीतरत- स्वभाव
मुंतजीर- इंतजार करने वाला
हसरत- इच्छा

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

बिछड गया जो मुझसे वो बेवफा तो नही था
पर मेरा उस्से जुदा होना बेवजह भी नही था।

दील के कुछ गहरे राज अंदर ही दफन करदीये
यु होठ सीलके मुस्कुराना खामखा भी नही था।

मनमानी और बगावत तो आदत है ईस दील की
जिद्दी है ये दील लेकिन बेहया भी नही था।

दीलो का ये खेल कोई समझदारी से थोड़ी खेलता है
मिजाज से दोनों नवाब थे कोई बेचारा भी नहीं था।

खुन मे जवानी दौडती है और ईसका कोई ईलाज नही
खेल मे वैसे दील लगानेका तो मेरा भी ईरादा नही था।

कीस्मत की ये बात है कुछ दीन बाद समझ आएगी
वर्ना हम दोनों में कोई गलत भी तो नही था।

ना दील मे कोई मलाल है ना लबो पे कोई बद्दुआ
कल वक्त कैसा आएगा ईसका अंदाजा भी तो नही था।

भुलना ईतना आसान नही पर मजबूरीयाँ भी होती है
ईस तरह कीसीको भुलनेवाला मै अकेला भी तो नही था।

ये उपरवालेका खेल है अपने समझ में नही आएगा
जो भी करेगा ठीक ही करेगा वो पराया भी तो नही था।

दील तो वैसाही है पर अब दीमाग बोलने लगा है
यु मतलबी बनने के अलावा और कोई चारा भी तो नही था।

कुछ ही दीनों का खेल है फीर मंजील अपनी अलग है
वर्ना दील के खेल में अबतक मैं भी हारा नही था।
- अनेमिका

Wednesday 14 January 2015

जो ईनसानीयत का त्योहार मनाए, कोई ऐसा मजहब है?

ईनसान बोहोत है पर एक महबूब की तलब है
जो ईश्क का बुखार उतारे, कही ऐसा मतब है?

दीवाली, रमजान, क्रीसमस आजतक बोहोत मनालीये
जो ईनसानीयत का त्योहार मनाए, कोई ऐसा मजहब है?

मुकद्दर से बादशाही तो नवाबों को भी मीलती है
कोई फकीर को शहंशाह बनादे, कही ऐसा अदब है?

यु टुटकर मेरी ख्वाहीश, ईक आशिक भी पुरी करता था
क्या दूर उन सितारों में कोई वैसा गजब है?

मुंतजीर हु अब तो बस उस आखिरी पल के लिये
ईस रूह को मालिक से मीलादू, कोई ऐसा सबब है?
- अनामिका

तलब-प्यास, मतब-अस्पताल
अदब- respect
सबब-पुण्य
मुंतजीर- इंतजार करने वाला

Monday 12 January 2015

रात के ईस अंधेरे में कभी चूप चूप के रोलीया करो पर सुबह होते ही दुनिया केसामने खुल के जीया करो

अपनी कमजोरियों को यु ना ईश्तीहार बनाया करो
निकम्मो को गुफ्तगु का यु ना कारोबार दीया करो।

ईश्क है तो ईश्क का इजहार ना कीया करो
मरनेकाही शौक है तो जहर पीलीया करो।

कीसी अपने की मदत करके यु ना सबको बताया करो
शर्मींदा करके एहसानो को यु ना बार बार जताया करो।

काम के नाम पर फरेब से यु ना लोगों को फसाया करो
फीर पाप धोनेके नाम पर यु ना गंगा नहाया करो।

रूठ जानेपर बीवी को भलेही गलेसे लगाया करो
पर कीसी रोज माँ-बाप के पैर भी छुलीया करो।

जन्मदीन और सालगीरह के खूब जश्न मनाया करो
पर कीसी शाम गरीबों को खाना भी खीलाया करो।

रात के ईस अंधेरे में कभी चूप चूप के रोलीया करो
पर सुबह होते ही दुनिया केसामने खुल के जीया करो
- अनामिका

Sunday 11 January 2015

मेरी ईस शायरी की वाह वाह कबतक होगी?

लोगों के दीलों मे मेरी पनाह कबतक होगी?
मेरे ईन लफ्जों पर वो निगाह कबतक होगी?
वक्त बदलता है तो फनकार भी बदलते है दोस्त
मेरी ईस शायरी की वाह वाह कबतक होगी?
- अनामिका

हम आज भी यहाँ मोहब्बत चोरी से करते है।

कीरदार तो अक्सर नकाब में ही रहता है
लोग ईनसान की पेहचान उसकी अदाकारी से करते है।

मजबूरी में खुद्दारी जब जवाब देने लगे
वो अना की निलामी बारी बारी से करते है।

कुछ आस्तिन के साँपो का जहर भी मीठा लगता है,
जो बेईमानी भी बड़ी ईमानदारी से करते है।

ईस सीयासत में कुछ नेता ऐसे भी होंगे
जो मुल्क की सेवा वफादारी से करते है।

जो शायर है, उनका मीजाज अलग है
वो दर्द-ए-दील बयान अपनी शायरी से करते है।

हम हींदुस्तानी है। अपनी तहजीब नही छोडते
हम आज भी यहाँ मोहब्बत चोरी से करते है।
- अनामिका

Saturday 10 January 2015

क्या करे जनाब अपनी कीस्मत बडी कमिनी है।

हर बंदे के जबान पर अब यही एक कहानी है
क्या करे जनाब अपनी कीस्मत बडी कमिनी है।

धोखा दीया सपनों ने, इन आँखो में बस पानी है
साये की तरह चीपकी ये फुटी तकदीर अपनी दीवानी है।

गरीब बच्चा जो भूल करे तो जान पर उसके बन आनी है
अमीर शहजादा कतल भी करे तो ये उसकी नादानी है।

पैसा कमाने का जरीया यहा बस बेईमानी है
वफादारी से नौकरी अब कीसको यहाँ निभानी है?

काम की बात हो तो सबको रंजीशे भुलानी है
मतलब खत्म हो तो यहाँ दोस्ती में भी दुश्मनी है।

पढा लीखा होकर सबको परदेस से रोटी कमानी है
कहते है अपने देश मे अब कहा जिंदगी गवानी है।

बीवी के खातिर सबको यहाँ महँगी चीजे लानी है
बुढी माँ की तकलीफे तो जानकर भी अंजानी है।

हर फकीर को यहाँ जिंदगी ऐसे बीतानी है
पापी पेट का सवाल है तो करेले में भी चिनी है।

सबके अपने झमेले और सबकी अलग कहानी है
फीर भी सब कहते है अपनी कीस्मत बडी कमीनी है।
- अनामिका

Wednesday 7 January 2015

भुलाने पर आते तो कबका भुला देते जो बीना रूह के बस वो एक मीट्टी का जीस्म होता।

कागजों के पन्नों जैसी ये मोहब्बत कहाँ है
जैसे आग मे फेंक दीया और ये कीस्सा भस्म होता।

भुलाने पर आते तो कबका भुला देते
जो बीना रूह के बस वो एक मीट्टी का जीस्म होता।

सरेआम बेझीझक बखूबी से निभाया होता
जो बिना ईश्क बस वो एक मंगनी की रस्म होता।

जिंदगी की अकेली ख्वाहीश मे उसेही मांगलेता
मेरे पास जो कुदरत का जादुई तीलीस्म होता।

साँस लेना भुलजाता पर उसे कभी भुलता नही
जो मेरे रगो मे बसा वो कोई गजल या नज्म होता।

मैने उसे छोडदीया या वो मुझे भुलगया
बुरे कीसी सपने की तरह बस ये भ्रम होता।

जैसा हम करते है, वैसाही हम भरते है
काश पीछले जन्मों का मेराभी अच्छा कर्म होता।
- अनामिका

Monday 5 January 2015

माँ के हाथों का निवाला तो जन्नत से भी बढकर है.....

बुरे वक्त की आजमाईशों में जब जब मै फसता था
अपनों के उस खोकले प्यार पर मन ही मन मे हसता था।

ईबादत में मांगा हो और हकीकत में पालीया
वो ईनसान तो नही होगा, जरूर कोई फरीश्ता था।

खुशबू लेकर चले गए और पलटकर जीसे देखा तक नही
अकेले कीसी कोने मे पडा वो मेरे दील का गुलदस्ता था।

हसते हसते कंधो पर जो बोझ उठाया करते थे
गुजरे हुए बचपन का वो तो स्कुल का बस्ता था।

माँ के हाथों का निवाला तो जन्नत से भी बढकर है
हजारों रुपयो से खरीदा हुआ वो खाना बडा सस्ता था।

भीड़ बरी मेहफीलें भी काटों की तरह चुभती है
ईस तनहाई से, ईस वीरानी से आखिर कैसा रीश्ता था।

मोहब्बत जब जब हुई तो गजब की हुईं यारो
मै तो जैसे मुंगफल्ली, और वो महंगा पीस्ता था।
- अनामिका

जब जब जिंदगी में आजमाईशों का मेला आगया माँ ने हसके देखा और लडनेका हौसला आगया।

जब जब जिंदगी में आजमाईशों का मेला आगया
माँ ने हसके देखा और लडनेका हौसला आगया।

मेरे जीतने की खुशी पर जलके राख होगए लोग
जरासी हार क्या मीली हसने मोहल्ला आगया।

बेईमानी और ईमानदारी की जंग छीडी हुई थी कही
हार मीलगई गरीब को, जीतकर पैसेवाला आगया।

जींदा था जो कलतक उसे हालचाल कीसीने पुछा नही
मगरमछके आंसु बहाने आज काफिला आगया।

शोहरत और दौलत पर जो गुरूर करके जीता रहा
आखिरी साँस टुटतेही दुनिया से अकेला आगया।

ईस दौर की तकनीक से कुदरत को हराने चले थे बेवकुफ
धज्जीया उडगई सबकी जब त्सुनामि, जलजला आगया।

पडोसी मुल्क उजडा था तब चैन की नींद सो रहे थे जो
आज उनके ही घर पर आतंकवाद का हल्ला आगया।
- अनामिका