Wednesday, 14 January 2015

जो ईनसानीयत का त्योहार मनाए, कोई ऐसा मजहब है?

ईनसान बोहोत है पर एक महबूब की तलब है
जो ईश्क का बुखार उतारे, कही ऐसा मतब है?

दीवाली, रमजान, क्रीसमस आजतक बोहोत मनालीये
जो ईनसानीयत का त्योहार मनाए, कोई ऐसा मजहब है?

मुकद्दर से बादशाही तो नवाबों को भी मीलती है
कोई फकीर को शहंशाह बनादे, कही ऐसा अदब है?

यु टुटकर मेरी ख्वाहीश, ईक आशिक भी पुरी करता था
क्या दूर उन सितारों में कोई वैसा गजब है?

मुंतजीर हु अब तो बस उस आखिरी पल के लिये
ईस रूह को मालिक से मीलादू, कोई ऐसा सबब है?
- अनामिका

तलब-प्यास, मतब-अस्पताल
अदब- respect
सबब-पुण्य
मुंतजीर- इंतजार करने वाला

No comments:

Post a Comment