Sunday 29 March 2015

मेरी हैसियत से ज्यादा मेरे थाली में तूने परोसा है तु लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक, मुझे तुझपे भरोसा है।

मेरी हैसियत से ज्यादा मेरे थाली में तूने परोसा है

 तु लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक, मुझे तुझपे भरोसा है।
 ~ अनामिका

Thursday 26 March 2015

रिफ्यूजी

जो दिल कि बस्ती कोई एक बार लूटले... तो फिर कहीं ठिकाना नहीं मिलता.... के अपने हि जीस्म में अपना दिल अब रिफ्यूजी कि तरह लगने लगा है।
~ अनामिका

Tuesday 24 March 2015

जान गईं है कलियाँ भी अब भँवरो कि फितरत मोहब्बत में कोई खुशबू अब बिमार नजर नही आती।

शहद होकर भी चींटीयों कि कतार नजर नहीं आती
मिलावट के जमाने मे असलियत कि बहार नजर नहीं आती।

खानदानी लोग होकर भी काँच कि चमक रखते है
रिश्तों में भी प्यार भरी तकरार नजर नहीं आती।

सीख गए है दरख्त-ए-शाख भी खुद्दारी से जीना
परिंदा अगर उड़ भी जाएँ तो पुकार नजर नहीं आती।

जान गईं है कलियाँ भी अब भँवरो कि फितरत
मोहब्बत में कोई खुशबू अब बिमार नजर नही आती।

जब बीक जाता है चंद पैसों में ईमान और जमीर यहाँ
तो शेर कि गुर्राहट भी पिंजरे मे खुंखार नजर नहीं आती।

इस कदर दहशत फैलाई है कुछ इंसानी दरिंदो ने
अब सरे आम पायलों कि झंकार नजर नहीं आती।
~ अनामिका

Saturday 21 March 2015

अक्सर जो हँसकर कहता है जिंदगी कितनी खूबसूरत है उसकी आँखो में देखा है, उसे पल पल मरते हुए।

अक्सर जो हँसकर कहता है जिंदगी कितनी खूबसूरत है
उसकी आँखो में देखा है, उसे पल पल मरते हुए।

उजालों कि चकाचौंध में जो नीडर होकर घूमता है
उसे अंधेरों में देखा है अपनी तनहाई से डरते हुए।

शोहरत, रुत्बा, हैसियत जिसे मुकद्दर से  मिलगई
उसे दरबदर भटकते देखा है सुकून ढूढते हुए।

यारों, दोस्तों कि महफिल में जो जिंदादिल कहलाता है
अक्सर उसे देखा है खुद हि खुद से लड़ते हुए।
~ अनामिका

Friday 20 March 2015

वो इक गुलाब से नजरें फेर लेता है अक्सर इस विरानी में आखिर ऐसी क्या बात है उस रात भर कि रातरानी मै?


वो इक गुलाब से नजरें फेर लेता है अक्सर इस विरानी में
आखिर ऐसी क्या बात है उस रात भर कि रातरानी मै?

जो बरसों पहले घायल हुआ था कुछ तेवर और अदावतों से
आज दरिया बनकर बह रहा है किसी नादान कि नादानी में।

अंगारों पर चलने वाला जो जाँबाज हुआ करता था कभी
नजाने क्यों अब डूबना चाहता है उन *चश्म-ए-तर के पानी में।

जो एक मुकम्मल किताब हुआ करती थी जहन के किसी कोने में
आज सिलावटे उसकी उधेड रही है, कैसा मोड़ आ रहा है कहानी में।

धीमी धीमी धड़कनो में कब *खलल पड़ जाएँ किसे पता?
यही हाल होता हैं इस चार दिन कि जवानी में।
~ अनामिका

चश्म-ए-तर= wet eyes
खलल= disturbance

Thursday 19 March 2015

तेज धूप या आँधी में उड़ने वाले पतंग से रहते है इस दुनिया में कुछ सरफीरे है जो मलंग से रहते है।

तेज धूप या आँधी में उडने वाले पतंग से रहते है
इस दुनिया में कुछ सरफीरे है जो मलंग से रहते है।

ढोंगी दुनिया कि चकाचौंध में इनकी चमक नजर नहीं आती
झूठे रंगोके झूठे लोगों में ये बेरंग से रहते है।

ये रास्ते और ये हवाएँ क्या इन्हे खाक मंजिल दिखाएँगे
अपने दम पे ठिकाना ढूँढकर ये सुरंग से रहते है।
~ अनामिका

वो बाप कहलाता है....

दुनियादारी मे वफादारी वो कुछ इस तरह निभाया करता है
अपनी आँगन का फूल किसी और बगीचे में सजाया करता है।

उचाईयों कि ख्वाहिश लिए जब जिद करता है परिंदा उसका
तीनका तीनका गिरवी रखकर खुदकी भुख दबाया करता है।

हालात चाहे हरादे उसे पर लड़ना नहीं छोडता हैं
वो मेहनत हथेली पर रखकर अपना नसीब आजमाया करता है।

जरूरतों और जिम्मेदारीयों के नाम पर कतल करता है अरमान अपने
झूठी मुस्कान के आड़े अपना गम छुपाया करता है।
~ अनामिका

Wednesday 18 March 2015

लहरों कि जुंबिश देखकर तूफान कि गहराई नांपनेसे क्या फायदा? खुदा को मानते है तो नाखुदा बनकर दरिया में उतरना होगा।

लहरों कि जुंबिश देखकर तूफान कि गहराई नांपनेसे क्या फायदा? खुदा को
मानते है तो नाखुदा बनकर दरिया में उतरना होगा।
~ अनामिका

दौलत से मै कंगाल हूँ, पर ऊसुलों का सोनार हूँ लोहे, पितल के सिक्के फेंक कर यु ना समझ मै बदल जाऊँगा।

और गिरा मुझे जिंदगी, मै गिरते गिरते संभल हि जाऊँगा
कोई गली का शराबी नहीं, जो फीसला तो फिसल हि जाऊँगा।

कोई समझाए इन दुखो को, मुझे रीहा करे अपने *आगोश से
मै कोई छुट्टी वाला इतवार नहीं, जो हाथ से निकल जाऊँगा।

मैं पत्थर हूँ, पर घाव सहकर हीरे कि तरह चमकुंगा
कोई *मग्रिब का *आफताब नही, जो धीरे धीरे ढल जाऊँगा।

दौलत से मै कंगाल हूँ, पर ऊसुलों का सोनार हूँ
लोहे, पितल के सिक्के फेंक कर यु ना समझ मै बदल जाऊँगा।

कट हि रहीं है जिंदगी, तो हसते हसते गुजारी जाए
मौत तो वैसे खड़ी है सामने, फिर आज नहीं तो कल जाऊँगा।
~ अनामिका

आगोश से- बाहो से
मग्रिब- सुर्यास्त का समय
आफताब- सुरज

Friday 13 March 2015

दिल के अंदर जरा झांककर देखू, कोई तनाव है क्या?

दिल के अंदर जरा झांककर देखू, कोई तनाव है क्या?
दिमाग से सलाह-मश्वरा करूँ, इस पर सुझाव है क्या?

सच बोलने पर अक्सर जुबान लडखडाने लगी है
अपनी खुद्दारी से पुछू कोई दबाव है क्या?

नींद मे भी ख्वाब आनेसे पहले इजाजत माँगने लगे है
अपने अतीत से जरा पुंछू, कोई घाव है क्या?

तनहाइयों कि बारिश से भीड़ कि धूप अच्छी है
खुद को जरा खो कर देखू, कोई छाँव है क्या?

एक जगह रुकने से सबसे पैरों तले कूचला जाऊँगा
अपनी मजबूरीयों से पुंछू, कोई बहाव है क्या?

आम इंसान हूँ, कहीं तो गिना जाऊँगा
अखबारो, इश्तिहारों मे देखू, कोई चुनाव है क्या?
~ अनामिका

जिसको जो कहना है कहने दो, अपना क्या जाता है?

जिसको जो कहना है कहने दो, अपना क्या जाता है?
ये वक्त वक्त कि बात है साहब, सबका वक्त आता है।

उचाईयों का शौक रखो तो जमीन का भी खौफ रखो
जो फल जीतना ज्यादा पके उतनी हि जल्दी पेड़ से गिर जाता है।

तजुर्बा कहता है, किस्मत वफादार नहीं होती
जिस पर महादेव कि क्रिपा थी, वो राम के हाथों मारा जाता है।

औकात या हैसियत कि बात कभी किसी से ना करना
पानी कि एक बुंद जो ठानले तो सिपी में मोती बन जाता है।

उजालो से याराना रखो तो अंधेरो से भी यारी रखो
वहीं सच्चा दोस्त है जिंदगी का, जो बिन बुलाए चले आता है।
~ अनामिका

Monday 9 March 2015

खोटा सिक्का

जरूरत के दिनों में काम आएगा ये सोचकर दिल से
लगाया हुआ सिक्का जब खोटा निकले तब तकलीफ बहुत
होती है।
~ अनामिका

आँस्तिन का साँप

रफीकों मे रकीबों वाली अपनी जात ना कर
जो बात नहीं करनी तो बात ना कर
वाबस्ता हैं जिंदगी भर का, कोई तमाशा नही
किसी और को दिखानेके लिए मुझे याद ना कर।
~ अनामिका

रफीक- दोस्त
रकीब- दुश्मन

फितरत में फरेब और चेहरे पर संजिदगी रहती है दोहरी नकाब में छिपने वालों कि नियत मे गंदगी रहती है।

फितरत में फरेब और चेहरे पर संजिदगी रहती है
दोहरी नकाब में छिपने वालों कि नियत मे गंदगी रहती है।

जो हुक्म हो उस *ईलाही का तो सारे जुर्म हसके सहले
ऐसे कुछ फरीश्तों के खून में *बंदगी रहती है।

ताउम्र गुरूर और अहम में जो जीते रहें
आखिरी कुछ घड़ीयो में उन नजरों मे शर्मिंदगी रहती है।

मोहब्बत में दिल हि नही, जान भी जिन्होने हारी हो
मोहब्बत के उन मसिहों की रूहों मे वाबस्तगी रहती है।

क्या गीला-शिकवा, क्या शोहरत-रूत्बा
आखिर कुछ वक्त की ही अपनी जिंदगी रहती है।
~ अनामिका

ईलाही- ईश्वर
बंदगी- सेवा
वाबस्तगी- attachment

Sunday 8 March 2015

इश्क

जबसे इस इश्क मे वफा कर बैठे है
लगता है मस्जिद में जफा कर बैठे है।
एक मुद्दत से खुदकी खबर हि नहीं ली
एक मुद्दत से खुदको खफा कर बैठे है।
~ अनामिका ( जफा- जुर्म)

Saturday 7 March 2015

दिल

अक्सर लोग कहते है
तेरी जुबान बहुत गरम है
कोई लफ्जो को पलट कर तो देखे
दिल अंदर से बहुत नर्म है।
~ अनामिका

Thursday 5 March 2015

बारिश...♡♡♡

बड़ा गुरूर था उस गुलाब को अपनी खुशबू पर... की जबसे बरस गईं है कुछ बारिश की बुंदे, ये सुखी मिट्टी भी  फिरसे महक उठी है....
- अनामिका

Tuesday 3 March 2015

जो नफरत उसको दिखाई थी कुछ यु बेकार होगई जबान मेरे बस में रहीं और आँखे गद्दार होगई।

जो नफरत उसको दिखाई थी कुछ यु बेकार होगई
जबान मेरे बस में रहीं और आँखे गद्दार होगई।

बद्दुआओसे नवाजा होगा शायद किसीने मुझे
इश्क होगया मुझसे और उसकी मन्नत साकार होगई।

मशहूर करदीया मुझे इस कदर तेरे इश्क ने
मेरी बर्बादी की सुर्खियाँ मेरे गली का अखबार होगई।

मोहताज नही है ये किसी ताबिज या हकीम की
इस दिल पर लगी चोट भी मेरी तरह खुद्दार होगई।

जहाँ अलविदा वो कहगया कुछ फूलोंको थमाकर
वो मिट्टी होंठो से चूमकर मेरे लिए मजार होगई।

सर पर खून सवार था इन सन्नाटो को चीरनेका
इसी जद्दोजहद मे मेरी कलम तलवार होगई।
~ अनामिका

Sunday 1 March 2015

तेव्हा आपल्या जवळ रडण्या पलीकडे काहीच उरलेलं नसतं.....

             असं वाटतं... की कधी एके
काळी या विशाल आकाशा ला खूप गर्व असेल स्वतः वर.
स्वतः च्या विशालतेवर. कदाचित तो विसरला असेल
की त्याच्या या विशालतेला सुंदर बनवण्याचं खरं कारण
म्हणजे त्या लुकलुकत्या चांदण्या आहेत. जर आकाशात
ह्या चांदण्या आणि तारे नसतील तर
त्या आकाशाची सुंदरता ही नसेल.
कदाचित तो आपल्या गर्वामध्ये इतका बुडाला असेल
की या चांदण्यांचा विचारही त्याचा मनात
आला नसेल. आणि कदाचित हेच कारण असेल,
की तेव्हा पासून रोज
कुठली ना कुठली चांदणी,
कुठला ना कुठला तारा त्याला सोडून चाल्ला जातो. कदाचित त्या तार्यांमध्ये खरं
प्रेम लपलं आहे, म्हणूनच जेव्हा एखादा तारा त्या आकाशाला सोडून जातो,
तेव्हा तो स्वतः ही तुटतो.
असंच रोज तार्यांचं आकाशाला सोडून जाणं
कधीतरी त्या आकाशाच्या लक्षात आलं
असेल.
उशिरा का होईना, पण तार्यांचा विरह
त्याला ही जाणवला असेल.
आणि कदाचित हेच कारण असेल,
की जेव्हा जेव्हा या तार्यांचा विरह त्याला सहन होत
नाही तेव्हा तो जोरात किंचाळतो. ओरडून ओरडून रडतो.
कदाचित
या पावसाच्या थेंबांमध्ये ही त्याचेच अश्रु
असतील.
             आपले खरे मित्र ही या तार्यांप्रमाणे
असतात. यांच्या असण्याने आपलंही जग सुंदर होतं. पण
कधी यशाच्या उंच शिखरावर
पोहोचलो की आपण
ही त्या आकाशाप्रमाणे होतो....
या तार्यांसारख्या मित्रांचा विचार
ही मनात येत नाही. आणि या तार्यांप्रमाणेच
हळू हळू सगळे आपल्या पासून दूर व्हायला लागतात. दूर होऊन ते
ही कुठे ना कुठे तुटतातच. आणि जेव्हा आपल्या लक्षात
येतं
तोपर्यंत सगळे तारे हळूहळू दूर होऊन तुटलेले असतात.
आणि तेव्हा आपल्या जवळ रडण्या पलीकडे
काहीच उरलेलं नसतं.....
~ अनामिका