वो इक गुलाब से नजरें फेर लेता है अक्सर इस विरानी में
आखिर ऐसी क्या बात है उस रात भर कि रातरानी मै?
जो बरसों पहले घायल हुआ था कुछ तेवर और अदावतों से
आज दरिया बनकर बह रहा है किसी नादान कि नादानी में।
अंगारों पर चलने वाला जो जाँबाज हुआ करता था कभी
नजाने क्यों अब डूबना चाहता है उन *चश्म-ए-तर के पानी में।
जो एक मुकम्मल किताब हुआ करती थी जहन के किसी कोने में
आज सिलावटे उसकी उधेड रही है, कैसा मोड़ आ रहा है कहानी में।
धीमी धीमी धड़कनो में कब *खलल पड़ जाएँ किसे पता?
यही हाल होता हैं इस चार दिन कि जवानी में।
~ अनामिका
चश्म-ए-तर= wet eyes
खलल= disturbance
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