ना सफारी में नजर आईं ना फरारी में नजर आईं
जो खुशियाँ बचपन के सायकल की सवारी में नजर आईं।
बारिशों से बचकर कभी जो मोहब्बत खफा सी रहती थी
वो दो सर को ढकने वाली एक छत्री में नजर आईं।
महलों में और बंगलों में वो इंसानियत नहीं दिखी
जो नुक्कड़ वाली चाय की एक टपरी में नजर आईं।
मन के तार छेड़ सकें ऐसी धुन अब कहाँ मिलती हैं?
जो बरसों पहले उस किशन की बाँसुरी में नजर आईं।
~ अनामिका
जो खुशियाँ बचपन के सायकल की सवारी में नजर आईं।
बारिशों से बचकर कभी जो मोहब्बत खफा सी रहती थी
वो दो सर को ढकने वाली एक छत्री में नजर आईं।
महलों में और बंगलों में वो इंसानियत नहीं दिखी
जो नुक्कड़ वाली चाय की एक टपरी में नजर आईं।
मन के तार छेड़ सकें ऐसी धुन अब कहाँ मिलती हैं?
जो बरसों पहले उस किशन की बाँसुरी में नजर आईं।
~ अनामिका
No comments:
Post a Comment