Thursday, 21 May 2015

जिंदगी के रंगो में मेरे जीने का रंग फीका हैं आँसूओंको छुपाकर मैंने मुस्कूराना सीखा हैं।

जिंदगी के रंगो में मेरे जीने का रंग फीका हैं
आँसूओंको छुपाकर मैंने मुस्कूराना सीखा हैं।

गुजरती नहीं मजबूरी मे, गुजारी जाती हैं अक्सर
न जीने का कोई बहाना हैं न मरने का तरीका हैं।

हुनर खामोश होकर जब तकदीर बोलने लगती हैं
तब अना और जमीर मेरा कौडी कें दाम बिका है।

हवाओं की रफ्तार सें भागने में लगे हैं सब यहाँ
राह पे रुके पत्थर को तो सबने पैरों सें फेंका हैं

शिकायत करने से अच्छा उसकी इबादत कर लिया करो
आने वाला जाएगा ही, कौन यहाँ पर टीका हैं।
~ अनामिका

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