Monday, 11 May 2015

माथे की ये शिकन कभी मिटने नहीं देता।

गमों का ये खजाना किसी को लूटने नहीं देता
मैं शायर हूँ, अपने फन को छूटने नहीं देता।

मुकद्दर की रेखाएँ बिखरी हैं तो बिखरने दो
ऊपरवाले पर यकीन मेरा उठने नहीं देता।

सुकून मेरे चेहरे पर अक्सर खलता हैं लोगों को
तो माथे की ये शिकन कभी मिटने नहीं देता।

दोहरी शक्लों की दुनिया में जज्बात परदे में रखता हूँ
बड़ा शातिर हूँ, लफ्जों मे इनको बँटने नहीं देता।
~ अनामिका

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