चंद शेर....
खुशबू के लिए खुद का किरदार भी साफ रखना पड़ता हैं
सिर्फ लोबान के जलने से तो भीतर मे महक नहीं आती।
पढ़ें लिखे शायर को भी दर्द की तालीम लेनी पड़ती हैं
ऐसे वैसे तो कलम में किसी के भी चमक नहीं आती।
महज चूडीयों से क्या होगा? पहनाने वाला भी तो हो
यूँ ही अपने आप तो चूडीयों में खनक नहीं आती।
शहर की इन गलियों से कभी कभार मुड़ भी जाया करो
तरक्की के सफर में चलते हुए गाँवो की सड़क नही आती।
~ अनामिका
खुशबू के लिए खुद का किरदार भी साफ रखना पड़ता हैं
सिर्फ लोबान के जलने से तो भीतर मे महक नहीं आती।
पढ़ें लिखे शायर को भी दर्द की तालीम लेनी पड़ती हैं
ऐसे वैसे तो कलम में किसी के भी चमक नहीं आती।
महज चूडीयों से क्या होगा? पहनाने वाला भी तो हो
यूँ ही अपने आप तो चूडीयों में खनक नहीं आती।
शहर की इन गलियों से कभी कभार मुड़ भी जाया करो
तरक्की के सफर में चलते हुए गाँवो की सड़क नही आती।
~ अनामिका
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