Monday, 18 May 2015

बस खुद्दारी ही मेरी दौलत हैं जो मेरी हस्ती में रहती है

बस खुद्दारी ही मेरी दौलत हैं जो मेरी हस्ती में रहती है
बाकी जिंदगी तो फकीरी हैं वो अपनी मस्ती मे रहती हैं।

कल की परवाह छोड़ो जनाब कभी आज में जी कर देखो
खानाबदोशी उम्र हैं, वो तो दरिया-ए-कष्ती में रहती हैं।

मुसीबत में जो काम आए ऐसे हकीम और ताबीज तो नहीं
बस इंसानों की इंसानियत हैं, जो मेरी बस्ती में रहती हैं।

बेचैनी जब जब जहन में हो वहम पनपने लग जाता हैं
ऐसे हालात में सोच भी अपनी फीरकापरस्ती में रहती हैं।
~ अनामिका

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