बस खुद्दारी ही मेरी दौलत हैं जो मेरी हस्ती में रहती है
बाकी जिंदगी तो फकीरी हैं वो अपनी मस्ती मे रहती हैं।
कल की परवाह छोड़ो जनाब कभी आज में जी कर देखो
खानाबदोशी उम्र हैं, वो तो दरिया-ए-कष्ती में रहती हैं।
मुसीबत में जो काम आए ऐसे हकीम और ताबीज तो नहीं
बस इंसानों की इंसानियत हैं, जो मेरी बस्ती में रहती हैं।
बेचैनी जब जब जहन में हो वहम पनपने लग जाता हैं
ऐसे हालात में सोच भी अपनी फीरकापरस्ती में रहती हैं।
~ अनामिका
बाकी जिंदगी तो फकीरी हैं वो अपनी मस्ती मे रहती हैं।
कल की परवाह छोड़ो जनाब कभी आज में जी कर देखो
खानाबदोशी उम्र हैं, वो तो दरिया-ए-कष्ती में रहती हैं।
मुसीबत में जो काम आए ऐसे हकीम और ताबीज तो नहीं
बस इंसानों की इंसानियत हैं, जो मेरी बस्ती में रहती हैं।
बेचैनी जब जब जहन में हो वहम पनपने लग जाता हैं
ऐसे हालात में सोच भी अपनी फीरकापरस्ती में रहती हैं।
~ अनामिका
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