माना सबकी नजरों में मैं खलता रहता हूँ।
फिर भी झुकता नहीं हूँ मै, चलता रहता हूँ।
बुरा हो या अच्छा,कुछ कहता नहीं रब को
उसकी बंदगी में लौ सा जलता रहता हूँ।
भूखा रह लेता हूँ, गद्दारी नहीं करता
खुद्दारी पे कई दिन तक पल ता रहता हूँ।
घाव हैं कुछ पुराने जो कभी भरते ही नहीं है
उन जख्मो पर अश्कों को मलता रहता हूँ।
चाहे तोड़ दो डाली से या खुशबू लूट लो
मेरी फितरत हैं फूल सी, मैं खिलता रहता हूँ।
~ अनामिका
फिर भी झुकता नहीं हूँ मै, चलता रहता हूँ।
बुरा हो या अच्छा,कुछ कहता नहीं रब को
उसकी बंदगी में लौ सा जलता रहता हूँ।
भूखा रह लेता हूँ, गद्दारी नहीं करता
खुद्दारी पे कई दिन तक पल ता रहता हूँ।
घाव हैं कुछ पुराने जो कभी भरते ही नहीं है
उन जख्मो पर अश्कों को मलता रहता हूँ।
चाहे तोड़ दो डाली से या खुशबू लूट लो
मेरी फितरत हैं फूल सी, मैं खिलता रहता हूँ।
~ अनामिका
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