Monday, 20 April 2015

यहाँ दुनिया वालों ने जिसको पहले आम समझा हैं थोड़ा वक्त बदलते ही उसका सही दाम समझा हैं।

यहाँ दुनिया वालों ने जिसको पहले आम समझा हैं
थोड़ा वक्त बदलते ही उसका सही दाम समझा हैं।

मुफलिसी मेरी किस्मत हैं तो खुद्दारी मेरी फितरत
मुझे खैरात में जो भी मिला उसे हराम समझा हैं।

रफिकों का रंग हैं ऐसा कि रकीब फिके पड़ जाएँ
आँखो में रंज लेकर भी मिले, तो दुआ सलाम समझा हैं।

खुशियों कि मेहमान नवाजी जब तनहाई से होती हैं
तब भीड़ भरी दुनिया में खुद को नाकाम समझा हैं।

जिंदगी के सफर में मंजिल गुमशूदा सी लगती हैं
जहाँ चैन-ओ-सुकून मिले वो आखिरी मुकाम समझा हैं।
~ अनामिका

सर्वाधिकार सुरक्षित।

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