Monday, 6 April 2015

बरगद और पीपल जैसे विशाल तो हम नही पर गमलों में उगने वाली तुलसी भी किसी से कम नही।

बरगद और पीपल जैसे विशाल तो हम नही
पर गमलों में उगने वाली तुलसी भी किसी से कम नही।

छुपेरुस्तम होते है ये मोहब्बतों के काफिर
अक्सर हसके कहते है, मेरी आँखे नम नही।

मैंने मेरे खुदा को भी झूठ बोलते देखा है
जब माँ मुझे कहती है उसके दिल में गम नहीं।

भरी बस्ती में भी लूट जाती है किसी बेचारी कि इज्जत
और वो दरवाजे बंद करके छिपते है, जिनके जिगर में दम नहीं।

धर्म के नाम पर कभी-कभी इंसान जानवर हो जाते है
और भूल जाते है कि जानवरों का तो कोई धर्म नही।
~ अनामिका

2 comments:

  1. bahut badhiya..... one of your nicest ghazals.. loved it :)

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