Tuesday, 21 April 2015

इक चाँदनी क्या जरासी चमक गईं, सूरज भी शब में खिला हैं।


वो जो आवारा हुआ करता था, आज किसी से अदब से मिला हैं
इक चाँदनी क्या जरासी चमक गईं, सूरज भी शब में खिला हैं।

ऊपर वाले के रहम-ओ-करम की जो मिसाले  दिए घूमता था
जरा सी वक्त ने क्या करवट ली, अब उसे ही रब से गीला हैं।

ना नियत सें  ना सिरत सें ना ईमान सें और ना ही सुरत सें
यहाँ कदम कदम पर सब इंसानों को बस मजहब से तोला हैं।

मसरूफ सी इस दुनिया में अब फुरसत के पल किस के पास हैं
यहाँ मिलने वाला तो अक्सर किसी ना किसी सबब से मिला हैं।
~ अनामिका

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