Friday, 20 February 2015

इक गुमनाम शायर...

इक गुमनाम शायर  <3

मेरे मालिक तूने मुझे ये कैसी बिमारी दे दी
राज-ए-दिल जो बयान करूँ कुछ ऐसी फनकारी दे दी।

सपनों की इस दुनिया का इक गुमनाम सा शायर हूँ
खानाबदोशी जस्बातों को इक सच्ची शायरी दे दी।

गमों का ये खजाना खुशनसिबी से हासिल होता है
शिद्दत से हिफाजत कर सकूँ कुछ ऐसी नौकरी दे दी।

मै सुखनवर हूँ, रोजे खामोशी के रखता हूँ
रहम है मेरे इलाही का, जिसने लफ्जों की इफ्तारी दे दी।
~ अनामिका

खानाबदोश- मुसाफीर, vagrant
सुखनवर- शायर, कवि
इलाही- ईश्वर

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