Thursday, 26 February 2015

ये खुदगर्जी नही,मेरी मर्जी है।

अपने मन की करता हूँ तो कहते है ये खुदगर्जी है
अपने उसुलों का बादशाह हूँ, ये खुदगर्जी नही मेरी मर्जी है।

सब को खुश रख सकूँ ये तो मेरे बस में नहीं
झूठी तारीफ, झूठा दिखावा ये सब तो आखिर फर्जी है।

जब जब जख्म मिलते है तो बखूबी सिल लेता हूँ
कारागिरी मेरी गौर से देखना, मुझमें भी इक दर्जी है।

इस खुद्दारी और जमीर के वास्ते, कितनोसे रिश्ते तोड़े है
रिश्ते कम हो पर सच्चे हो, खुदा से यही अर्जी है।
~ अनामिका

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