ज़रा देख़ना चार दिवारी में अटके हुए लोग
समझ जाओगे कैसे होते है, भटके हुए लोग।
ग़ुमान ऊँची उड़ानों पर, कर रहे है बेवकूफ़
समय की इक टहनी पर है जो, लटके हुए लोग।
वो अफसर है! पहचान उनकी मोहल्ले तक हैं
बेपढ़े टीवी पे है! अखाड़े मे पटके हुए लोग।
कहानियाँ सुनी है मैंने, कामयाब इंसानों की
हम ही तो थे वो ज़माने को, ख़टके हुए लोग।
~ श्रद्धा
समझ जाओगे कैसे होते है, भटके हुए लोग।
ग़ुमान ऊँची उड़ानों पर, कर रहे है बेवकूफ़
समय की इक टहनी पर है जो, लटके हुए लोग।
वो अफसर है! पहचान उनकी मोहल्ले तक हैं
बेपढ़े टीवी पे है! अखाड़े मे पटके हुए लोग।
कहानियाँ सुनी है मैंने, कामयाब इंसानों की
हम ही तो थे वो ज़माने को, ख़टके हुए लोग।
~ श्रद्धा
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