Sunday, 21 June 2015

जन्नत

फीके पड जाते हैं दुनिया भर के तमाम नजारे उस वक्त... दर पे तेरे झुकता हूँ तो मुझे जन्नत नजर आती हैं....
~ अनामिका

Friday, 19 June 2015

तनहाई

इस तनहाई में महफिलों की कमी जरूर खलती हैं
शुक्र हैं मेरा हाथ थामे कलम और स्याही चलती हैं।
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उजालों में छुप जाती हैं दिल की तमाम विरानीयाँ
अंधेरों में अक्सर मेरी असलियत मुझसे मिलती हैं।
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दुनिया भर की बद्दुआएँ तब बेअसर होने लगती हैं
जब मेरे माँ के सजदे में मेरे नाम से दुआएँ पलती हैं
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बुरा हो या अच्छा, तुझसे यकीन नहीं उठता मालिक
तेरे नाम से जहर भी लूँ तो सारी बलाएँ टलती हैं।
~ अनामिका

Thursday, 18 June 2015

खुद्दारी

बगावत में दिल की बाजी खेली नहीं गईं मुझसे... जो मेरी खुद्दारी को समझते तो हुकूमत करते....
~ अनामिका

Wednesday, 17 June 2015

जुदाई

किसी और के नाम से जब मेरी विदाई होगी
लगता हैं तब जा के तेरी यादों से रिहाई होगी।
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नाम मेरे नाम से किसी और का जब जुड़ेगा
सही मायने में अपनी मुकम्मल जुदाई होगी।
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तुझसे दूर होकर, अब मैं भी यही सोचती हूँ
मेरे बिना एक घड़ी भी तूने कैसे बिताई होगी।
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दस्तूर हैं इस दुनिया का, निभाना ही पड़ता हैं
किसी और की तूने भी अब माँग सजाई होगी।
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ये साथ तेरा मेरा तो कुछ पल के लिए ही था
इन हाथों की ये लकीरें उसने कैसी बनाई होगी।
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कीस्मत में जो लिखा था, वो तूने कर दिया मालिक
ऐसा कर के तेरी भी जरूर आँख भर आई होगी।
~ अनामिका

कीस्मत

हारने वाले को कोई जुर्म इस तरह सहना पड़ता हैं
किस्मत की कुछ गलतियों को अपना कहना पड़ता हैं
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राजा हो या रंक हो कोई, किस्मत सब पें भारी हैं
राजमहल को त्याग, किसी को वन में रहना पड़ता हैं।
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कुर्बानी का जज्बा कोई नदीयों से ही सीख ले
अपना वजूद खो कर उन्हें समुंदर में बहना पड़ता हैं।
~ अनामिका

Sunday, 14 June 2015

यादें

जब तक मेरे सीने में ये धड़कन धड़कती रहेंगी
तब तक तेरे यादों की इक आग भड़कती रहेंगी।
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जुदाई का वो मौसम जब ख्यालो में जाग उठेगा
बरसने लगेगी बरखा और बिजली कडकती रहेंगी।
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निशानी तेरी आखिरी, कभी दि थी तूने तोहफे में
आखिरी दम तक वो चूँडी, मेरे हाथ में खडकती रहेंगी।
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तेरी ही खैरीयत का खयाल मेरे दिल को चीर देगा
जब जब बेचैनी में मेरी आँख फडकती रहेंगी।
~ अनामिका

Saturday, 13 June 2015

माँ

बहुत मीन्नते करता रहा ऐ मालिक तुझसे लेकिन सारी फिजूल हो गई
कल माँ के चेहरे पर एक मुस्कान क्या लाई, मेरी दुआ कुबूल हो गई।
~ अनामिका

Tuesday, 9 June 2015

सूखे फूल...

फूल ही सूखे हुए थे शायद... वर्ना धागा पक्का होकर भी यूँ माला से ना निकल पड़ते....
~ अनामिका

Sunday, 7 June 2015

मत अकड ऐ बारिश तेरे इंतजार में कौन रुकता हैं? जहाँ प्यास बूझ जाएँ, वहीं प्यासा झुकता हैं।

मत अकड ऐ बारिश तेरे इंतजार में कौन रुकता हैं?
जहाँ प्यास बूझ जाएँ, वहीं प्यासा झुकता हैं।
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चंद लम्हो की चमक से चौकन्ना रहे तो बेहतर हैं
गफलत में तो पीतल भी सोने जैसा दिखता हैं।
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कीमत और वक्त तो जैसे सिक्के के दो पहलू हैं
कभी कल का सस्ता आज में दुगुने दाम बिकता हैं।
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सोच और सच्चाई को जैसे देखो वैसी दिखती हैं
पानी में तो चाँद भी अपने पास लगता हैं।
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सुकून कोई अमीर किसी फकीर से ही सीख ले
जो जमीन के बिछौने पर आसमान से सर ढकता हैं।
~ अनामिका