Wednesday, 19 April 2017

सबब-ए-गुफ़्तगू

महफ़िल में तुझे मुझे देख कर, "आप" कहने लगे हैं
तेरे यार भी अपने रिश्ते को, साफ़ साफ़ कहने लगे हैं।

फ़कत अपनी ही नज़रें हैं जो गवारा नहीं करती, वर्ना
जो हमने कुबुला हि नहीं उसके खिलाफ कहने लगे हैं।

दरमियान जो ख़ामोशी हैं, इक वहीं हैं सबब-ए-गुफ़्तगू
और लोग हैं की तेरी मेरी बातें, बेहिसाब कहने लगे हैं।

सामना हो तो दोस्त भी, बेवजह मुस्कूराने लग जाते हैं
सवाल तो किए हि नहीं हमने, वो जवाब कहने लगे हैं।

अब तक हिचकिचाहट पर ही, कायम रहें हैं हम तुम
पर सब तो अपने रिश्ते पर, साफ़ साफ़ कहने लगे हैं।
~ श्रद्धा

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