आजकल कोई दिल्लगी का मरीज़ नहीं रहता
यार तो रखते हैं कई, कोई अज़ीज़ नहीं रहता।
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सलीक़े से हि नीभ जाते है जल्दबाजी में रिश्ते
जो हक़ से दखल दे, ऐसा बदतमीज़ नहीं रहता।
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इस खुदगर्जी भरे दौर में, चलने वाला हर शख्स
सहारा ले के चलता हैं, पर अपाहिज नहीं रहता।
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दिखावे के होते हैं सारे दिल के गुलिस्ताँ जिनमें
मोहब्बतों से बोया जाएँ, ऐसा बीज नहीं रहता।
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माॅडर्न लोगों में अदब के शायद, तरीके और होंगे
बिछड़ते वक्त होठों पर खुदा हाफिज नहीं रहता।
~ श्रद्धा
यार तो रखते हैं कई, कोई अज़ीज़ नहीं रहता।
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सलीक़े से हि नीभ जाते है जल्दबाजी में रिश्ते
जो हक़ से दखल दे, ऐसा बदतमीज़ नहीं रहता।
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इस खुदगर्जी भरे दौर में, चलने वाला हर शख्स
सहारा ले के चलता हैं, पर अपाहिज नहीं रहता।
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दिखावे के होते हैं सारे दिल के गुलिस्ताँ जिनमें
मोहब्बतों से बोया जाएँ, ऐसा बीज नहीं रहता।
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माॅडर्न लोगों में अदब के शायद, तरीके और होंगे
बिछड़ते वक्त होठों पर खुदा हाफिज नहीं रहता।
~ श्रद्धा
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