Sunday, 22 October 2017

ज़रासा मैं फ़िसला था, तो हुआ तजुर्बा ऐसा।

रात तो मेरी होगी, मग़र ढल तुम  जाओगे
कभी सोचा न था इतनें बदल तुम जाओगे।

ज़रासा मैं फ़िसला था, तो हुआ तजुर्बा ऐसा
क्या ख़बर थी मुझको, संभल  तुम जाओगे।

ज़िन्दगी उतर आएगी, लतीफ़े सुनाने तुमको
कैसी कैसी हँसी को भी, निगल तुम जाओगे।

ख़ुश्क ज़िन्दगी यार, आँखो को हरा करती है
पानी मे तरबतर हो के भी जल तुम जाओगे।
~ श्रद्धा

Saturday, 21 October 2017

मै कहूँगा दफ़ा हो जाओ, पर तुम जाया न करो।

कपट मन का ख़ुद ब ख़ुद सामने लाया न करो
दाद देते देते जनाब, तुम हिचकिचाया न करो।

मन का कालापन, रंग उड़ा ही देता हैं चेहरे का
झूठी मुस्कान से ख़ामख़ा, जगमगाया न करो।

डर होता हैं अक़्सर, ख़्वाहिशों के बह जाने का
कंबख्त आँखे तुम बे वक़्त, भर आया न करो।

फक़त वो लमहे हसीन थे, जब वो ये कहता था
मै कहूँगा दफ़ा हो जाओ, पर तुम जाया न करो।
~ Shraddha

Friday, 20 October 2017

हम हैं की चेहरों को, पढ़ के चलते हैं।

अपने तजुर्बों को पकड़़ के चलते हैं
लोग समझते हैं, अकड़ के चलते हैं।
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रिहा किया हैं, चंद लफ्जों ने दिलों से
तभी ख़ामोशी में जकड़ के चलते हैं।
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इम्तहान रिश्तों के पार होंगे भी कैसे?
हम हैं की चेहरों को, पढ़ के चलते हैं।
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वो लोग जो किसी के झमेलो में न रहें
शायद ख़ुद से ही, झगड़ के चलते हैं।
~ श्रद्धा

Thursday, 5 October 2017

नज़रे 'उठाकर' चलना..

ज़रा सा क्या सीख लिया
नज़रे 'उठाकर' चलना हमने

इस हुजूम ने तोहमते लगाकर,
'गिरी' हुई हरकत कर दी!
~ Shraddha