Monday, 13 November 2017

कभी सोचा न था, हम इतने कमज़र्फ़ निकलेंगे।

ज़रा सा  दिल दुख़ेगा, और हर्फ़  हर्फ़ निकलेंगे
कभी सोचा न था, हम इतने  कमज़र्फ़ निकलेंगे।

ध्यान रहे कि सडकों से ही, तफ़तीश की जाएगी
क्या रास्ता दिख़ाया हमें हम जिस तरफ़ निकलेंगे।

ज़रुरत होगी गरमाहट कि, वक्त ठंडा  पड़ने पर
आग उगलने वाले लोग ही, सख़्त बरफ निकलेंगे।

माना कि सूख़े दरख़्तों से, फल मिला नही करते
कल छाँव देने के लिए मगर, यही ज़र्फ़ निकलेंगे।
~ श्रद्धा

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