ठहरा हुआ हूँ, इक ज़माने से मैं
हटता क्यों नहीं तेरे निशाने से मैं।
सातों सूर मिल के, धुन छेड़ देते हैं
तिलमिलाता हूँ इक, तराने से मैं।
रूठ कर टूटने का शौक़ अब ख़त्म
मान जाता हूँ बस, मनाने से मैं।
खुद को खो देने का, डर नहीं रहा
फायदे मे हूँ अब, तुझे गवाने से मैं।
~ Shraddha
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