Friday, 23 March 2018

Ptangbaazi

संक्रांति आने वाली हैं??? cool!!! इस बार तुमको भी पतंगबाज़ी करने का शौक हो रहा हैं??? ओह!!! अच्छी बात हैं!! होगा भी क्यूँ ना??? सारी दुनिया को होता हैं!!
लेकिन एक बात सुनलो!! ये पतंगबाज़ी हैं बाबू!! मेरी मानो तो पहले जीन जीन लोगों ने की हैं ये पतंगबाज़ी, उन से इस के उसूल सींख लो!! कुछ यार-दोस्तों से!! कुछ बड़े-बुजुर्गों से!! हा पता हैं पता हैं!! तुम्हारी पतंग हैं!! तुमको ही उड़ानी हैं! लेकिन फिर भी एक दफा पुंछ लो ना याररर!!! क्या फर्क पड़ जाएगा?? मतलब कैसे होती हैं ये पतंगबाज़ी?? किस-किस तरह के होते हैं पतंग!!  कैसा मांजा इस्तेमाल किया जाता हैं वगैरह वगैरह!!
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पर तुम तो तुम हो!! तुम कहाँ किसी से कुछ पुंछोगे? सीधा लेकर आओगे अपनी पतंग को हवा में उड़ाने!! चलो ठिक हैं!! ले आएं अपनी पतंग?? हमममम!! हवा भी सही चल रहीं हैं!! आसमान में और भी कई पतंगे उड रहीं हैं!! जीन को देखकर तुम भी जोश में आ गए हो!!
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क्या हुआ??? पतंग उड नहीं रही हवा में??? अरे???? हवा तो सही चल रही हैं!! बाकी लोगों की पतंग भी शान से आसमान में उड रहीं हैं!! और तुम्हारी अब तक हाथ में ही टिकी हैं?? कहा था ना किसी तजुर्बेकार से पुंछ लो?? हा पता हैं!! पैसे खर्च किये हैं तुमने!! अच्छी से अच्छी पतंग लाने की कोशिश की हैं! और जहाँ से पतंग खरीदी हैं, उस दुकानदार को गालियाँ भी दे दी अबतक की तुम्हें ही खराब पतंग थमा दी उसने!!! ऐसा नहीं होता बेटा!! उसने सभी ग्राहकों को एक जैसी ही पतंग थमाई हैं!!
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ये क्या यार??? ठीक से कन्नी देनी तो आती नहीं तुमको!! और चले पतंग उड़ाने!! क्या हुआ?? इतना क्यूँ हडबडा रहे हो??? पतंग फटने का डर लग रहा है??? lol!!! ऐसे नहीं होता भाई!! सलीका होता हैं हर चीज़ का!!  अगर ढंग से करोगे, तो ना तुम्हारी पतंग टूटेगी!! और न फटेगी!!
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Finally उड़ गईं पतंग तुमहारी???? चलो शुक्र हैं!!! अरे ये क्या कर रहें हो???? अबे पागल हो गए हो क्या???? इतनी ढील क्यूँ दे रहें हो????? अरे बस करो!!!  अभी अभी तो उडी हैं पतंग तुम्हारी!! थोड़ी तो पकड़ जमाए रखो उसपे??? इतनी ढील मत दो यार!!!!!!!
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हा ठिक हैं!! बड़े खुश हो रहें हो अपनी पतंग को बुलंदी पे देख के!!! अरे अब ये क्या??????? अरे फिर पगला रहे हो तुम!!! अरे इस तरह से क्यूँ खेंच रहे हो पतंग को?? अरे जरा आहिस्ता याररररर!!!! थोड़ा तो रहम खाओ!!! जाहिर सी बात हैं!! बुलंदी पे थी पतंग तुम्हारी!! किसी और पतंग से पेंच लड़ना लाज़मी था!! अरे अब लड़ने दो ना यारररर अपनी पतंग को!!!! इसी तरह से होती हैं पतंगबाज़ी!!! अब वक्त से पहले हद से ज़्यादा ढील दी हैं, तो लड़ने दो उसे!! इस तरह उसे खेंचोगे, तो वो खुद तो बेआबरू होकर नीचे आएगी ही, साथ मे तुम्हारे हाथ भी जख्मी होंगे!! देखो यार... पतंग किसी तजुर्बेगार की हो, या किसी नौसिखीयें की!! किसी न किसी एक पतंग को तो पेंच में हारना पड़ता हैं!! इसी लिये तुमसे कहा था कि एक दफा पतंगबाजी के किस्से जरा experienced लोगों से सुनलो!! इसलिए नहीं... की तुम कोई दाँवपेंच सीख सको!! बल्कि इसलिए... की वो तजुर्बेकार लोग तुमको अपने तजुर्बे से ये बता पाएँ, की इस पतंगबाजी के अंत में... किसी न किसी की हार, या किसी न किसी की जीत निश्चित हैं!! लाख कोशिशों के बावजूद, अपनी पतंग कहाँ तक जाएगी... ये हर किसी का अपना अपना मुकद्दर हैं!! अगर तुम इस बात को पहले सुन लेते,  तो ये जो तुम शुरुआत से लेकर अंत तक हडबडा रहे थे... वक्त-बेवक्त अपनी पतंग को खेंच रहे थे या ढील दे रहें थे, ये ग़लतियाँ तुमसे नहीं होती!! और तुम भी हार जीत का न सोच कर... सूझबूझ के साथ... सलीके से अपनी पतंग को हवा मे उडाते!! पतंगबाज़ी का मज़ा भी लेते!! अपनी पतंग को पेंच भी लड़ाने देते... और ख़ुदा न ख़ास्ता अगर वो हार भी जाती... तो सुकून और अदब के साथ बचे हुए मांजे को नीचे उतारते!!! खैर....
~ Shraddha R. Chandangir

Tuesday, 20 March 2018

दिवानेपन की, और इंतहा क्या होगी!!

ख़ुद हि  को उससे,  जुदा किया था मैंने
इस तरह  उसको, संजीदा किया था मैंने।

मशगुल था आशिक़ी मे आवारगी कि तरह
जिससे 'मुहब्बत ' का इरादा किया था मैने।

दिवानेपन  की, और  इंतहा   क्या  होगी
पूछा हि नही मुझसे वो वादा किया था मैने।

ये भी सबब था उससे,  मुँह मोड़ लेने  का
इश्क़ भी उसी से, ज़ियादा किया  था मैंने।

नतीजा आख़िर कुफ़्र का, हिज्र हि होना था
मिट्टी के इंसाँ को जो, ख़ुदा  किया था  मैने!
~ Shraddha R. Chandangir

Tuesday, 23 January 2018

कैसे होते हैं लोग!

ज़रा देख़ना चार दिवारी में अटके हुए लोग
समझ जाओगे कैसे होते है, भटके हुए लोग।

ग़ुमान ऊँची  उड़ानों पर, कर रहे  है बेवकूफ़
समय की इक टहनी पर है जो, लटके हुए लोग।

वो अफसर है! पहचान उनकी मोहल्ले तक हैं
बेपढ़े टीवी पे है! अखाड़े मे पटके हुए लोग।

कहानियाँ सुनी है मैंने, कामयाब  इंसानों की
हम ही तो थे वो ज़माने को, ख़टके हुए लोग।
~ श्रद्धा

Wednesday, 27 December 2017

ये खेल तो वकील की दलील का हैं...

जो बात शोलों  की आग में होती हैं
वो हि  चिंगारी में, चराग़ मे होती हैं।
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कमाल यहाँ पर, रागिनी भी करती हैं
धुन क्या फ़क़त एक राग़ में होती हैं?
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ये खेल तो वकील की दलील का हैं
भले ही सच्चाई सुराग़ मे होती हैं।
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सफेद रंग से तो अंजाम होता हैं
आग़ाज-ए-ज़िन्दगी दाग़ में होती हैं।
~ श्रद्धा

Saturday, 23 December 2017

Mohabbat

माना कि  तेरे ख़यालों  में, ग़ुम नहीं हूँ  मैं
लेकिन तेरी मुहब्बत से, महरूम नहीं हूँ मैं।

मैं कहानी हूँ  मुक़म्मल, वजूद मिरा  तन्हा
तराने  को  ज़रूरी, वो  तरन्नुम  नहीं  हूँ मैं।

पाने खोने  का ये ख़ेल, रास हि नहीं आया
हिसाब करें उल्फत मे, वो हुजूम  नहीं हूँ मैं।

लाहासिल हूँ मैं मगर, तुम्हे कामिल कर दूंगा
आखिरकार  मैं मैं हूँ  जाना, तुम  नहीं हूँ मैं।
~ shraddha

Saturday, 2 December 2017

Gazal



ठहरा  हुआ हूँ, इक ज़माने  से मैं
हटता क्यों नहीं तेरे निशाने से मैं।

सातों सूर मिल के, धुन छेड़ देते हैं
तिलमिलाता  हूँ इक,  तराने से मैं।

रूठ कर टूटने का शौक़ अब ख़त्म
मान  जाता  हूँ बस, मनाने  से  मैं।

खुद को खो  देने का, डर नहीं रहा
फायदे मे हूँ अब, तुझे गवाने से  मैं।
~ Shraddha

Monday, 27 November 2017

नज़र तो तुम्हारी, अपने बस मे नहीं है...


ख़ामख़ा कि आदतों को पालते क्यूँ हो?
बात बात पें दिल से, निकालते क्यूँ हो?

महफिलों में मुझसे, किनारा करने वाले
मेरी शायरी मे ख़ुद को ख़ंगालते क्यूँ हो?

नज़र तो तुम्हारी, अपने बस मे नहीं  है
बात ज़ुबान तक आए तो टालते क्यूँ हो?

ख़ामोशी काफ़ी हैं तुम्हें बहकाने के लिए
तुम शराब से ख़ुद को, संभालते क्यूँ हो?

मुहब्बत से कहते हो,  मुहब्बत  नहीं हैं
तुम ख़ुद को हि धोख़े में, डालते क्यूँ हो?
~ Shraddha