ये जो मेरी मोहब्बत में वो मगरूर होता हैं
इतराता वो है, और खुद पे गुरूर होता हैं।
.
लाजिम हैं उसका भी, अमह मेरी चाहत में
बेशकिमती मेरा भी इश्क-ए-फितूर होता हैं।
.
बेरूखी भी उसकी, सिर आँखो पर रहती हैं
इस गुनाह में थोड़ी न किसी का कुसूर होता हैं
.
झुक कर ही दिलों कि बुलंदी हासिल होती हैं
सच्ची मोहब्बतों का तो, यही दस्तूर होता हैं।
~ अनामिका
इतराता वो है, और खुद पे गुरूर होता हैं।
.
लाजिम हैं उसका भी, अमह मेरी चाहत में
बेशकिमती मेरा भी इश्क-ए-फितूर होता हैं।
.
बेरूखी भी उसकी, सिर आँखो पर रहती हैं
इस गुनाह में थोड़ी न किसी का कुसूर होता हैं
.
झुक कर ही दिलों कि बुलंदी हासिल होती हैं
सच्ची मोहब्बतों का तो, यही दस्तूर होता हैं।
~ अनामिका
No comments:
Post a Comment