नुमाइश के दौर में ये हूनर भी, मेज़बान रख़ते हैं
थाली मे निवाले कम, महँगा दस्तरख़ान रख़ते हैं।
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गाँव में गाँव वालों सें भी, पिछड़े तो वो लगते हैं
सफ़ेद हादसे पर भी जो, फ़िरंगी ज़बान रख़ते हैं।
थाली मे निवाले कम, महँगा दस्तरख़ान रख़ते हैं।
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गाँव में गाँव वालों सें भी, पिछड़े तो वो लगते हैं
सफ़ेद हादसे पर भी जो, फ़िरंगी ज़बान रख़ते हैं।
~ श्रद्धा
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