Friday, 1 September 2017

Tere tasavvur me jab shumar rehte hai!

तेरे तसव्वूर में, जब शुमार रहते हैं
फक़त उसी वक़्त ग़ुलज़ार, रहते हैं।
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दस से पाँच तक तो, काम रहता हैं
या सच कहे तो तभी बेक़ार रहते हैं।
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इक तुझसे वक़्त को नगद मे लेकर
कितने ही हैं जिन पे, उधार रहते हैं।
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जब से मिला हैं, 'दिल' को ठिकाना
'ज़हन' से न जाने, कहां यार रहते हैं।
~ श्रद्धा

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