अच्छी ख़ासी ज़िन्दगी में, ये इक काम गंदा कर लेते हैं
फ़क़त शायरी के वास्ते, रोज़ ग़म को ज़िन्दा कर लेते हैं।
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मोहब्बत में ख़ामोशी और इशारे भी जवाब देने लगे तो
बड़ी ही मायूसी से हम, ज़ुबान को शर्मिन्दा कर लेते हैं।
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ज़रूरत कहाँ हैं इन्हें, इस फ़र्जी दुनिया के चकाचौंध की
फ़नकार अपनी ख़लवत में, ख़ुद को ताबिंदा कर लेते हैं।
~ Shraddha
फ़क़त शायरी के वास्ते, रोज़ ग़म को ज़िन्दा कर लेते हैं।
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मोहब्बत में ख़ामोशी और इशारे भी जवाब देने लगे तो
बड़ी ही मायूसी से हम, ज़ुबान को शर्मिन्दा कर लेते हैं।
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ज़रूरत कहाँ हैं इन्हें, इस फ़र्जी दुनिया के चकाचौंध की
फ़नकार अपनी ख़लवत में, ख़ुद को ताबिंदा कर लेते हैं।
~ Shraddha
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