एक घर में रहती हैं एक सुंदर सी परी
दिखने में नाजुक, और रंग से गोरी।
8 साल कि वो गुड़िया रहती है बहुत हि होशियार
नन्ही गुड़िया से करते हैं सब जी भर के प्यार।
बुखार होकर परी को जब जब आती हैं खाँसी
निराश होते हैं मम्मी-पापा, साथ में सारे पड़ोसी।
जो परी को प्यार से कहता हैं, मेरी रानी मेरा बच्चा
वो होता हैं पडोस वाला एक चंदू चाचा।
चंदू चाचा जब घर में अकेला ही रहता हैं
तब परी को लेने वो अक्सर उसके घर पे आता हैं।
परी के लिए लाता हैं वो चाॅकलेट और मिठाई
पापा उसे मानते हैं सगे जैसा भाई।
चंदू चाचा परी को इक दिन घर ले जाता हैं
bed पर उसे बिठाकर दरवाजा लगा लेता हैं।
परी गईं चंदू के घर, ये पापा जब सुनते हैं
वो तो अपने घर का है सोचकर वो भी बिंदास रहते हैं।
चाचा कहकर चंदू के यहाँ खेलने आती हैं वो गुड़िया
दरवाजा लगते ही चंदू के अंदर का जाग जाता हैं भेडीयाँ।
एकदम से ही परी को कुछ समझ में नहीं आता
हाथ-पैर झटक कर कहती हैं मुझे घर जाने दो चाचा।
मुँह बंद होते ही परी का आवाज बंद हो जाता हैं
चाचा जैसे पवित्र रिश्ते का मतलब कहीं खो जाता हैं।
परी को घर लेजाने जब मम्मी bell बजाती हैं
तब हँसकर चंदू कहता हैं परी तो बिलकुल नहीं सताती हैं।
घर जाते ही परी का बोलना कम हो जाता है
उसके साथ क्या हुआ ये उसे भी समझ नहीं आता हैं।
हमारे यहाँ भी अक्सर ऐसी गुड़िया होती हैं प्यारी सी
प्यार जिस्से करते हैं सब रिश्तेदार और पड़ोसी।
हँसती खेलती परी, पापा को गुमसूम नजर आती हैं
उसने homework नहीं किया होगा ये मम्मी हँस के कहती हैं।
हमारा हरेक पड़ोसी जानवर तो नही होता।
पर दरवाजे के पिछे क्या होता हैं हमें पता भी नहीं होता।
अपनी नाजुक परी को हम जान से ज्यादा चाहते है
उसी परी के साथ ऐसे कुछ जानवर खेल सकते हैं।
ऐसे जानवरों से सबको सावधान होना चाहिए
भरोसा करने से पहले सब को परख लेना चाहिए।
~ अनामिका