Thursday, 30 April 2015

जिसकी यारी हैं मौत से, उसे तकदीर क्या डराएँगी।

बिखरती इन हवाओं को कोई जंजीर क्या डराएँगी
जिसकी यारी हैं मौत से, उसे तकदीर क्या डराएँगी।

जलजला जो आएगा, जहाँ मर्जी दफन हो जाएंगे
होंगी किसी के भी बाप की वो जागीर क्या डराएँगी।

वाकीफ हूँ मैं वक्त की इस बदलती फितरत से
ये धूप-छाँव सी जिंदगी की तस्वीर क्या डराएँगी।

लाख कहाँ हकीकत सें मेरे ख्वाबों को डराएँ
जो मेरे ही खिलाफ थी, मेरे खातिर क्या डराएँगी।
~ अनामिका

जलजला- earthquake
जागीर- property, estate

Monday, 27 April 2015

लगता हैं अब फिर वो रंगीन जमाना नहीं आएगा....


बेखौफ होकर जीने का दौर पुराना नहीं आएगा
लगता हैं अब फिर वो रंगीन जमाना नहीं आएगा।

बचपन की उन चोरीयों में भी गजब की अमिरी थी
जवानी में वो मजा अब कभी कमाना नहीं आएगा।

उम्र की यें रफ्तार भी इस कदर तेज हो चुकी हैं
माँ का आँचल पकड़ कर अब वो रोना नहीं आएगा।

मोहब्बत को खोकर ही मोहब्बत समझ आईं हैं
लगता हैं अब किसी सें दिल लगाना नहीं आएगा।

जब था, तब तूने उसकी कद्र हीं नहीं की ऐ दिल
लौटकर अब कभी वो तेरा दीवाना नहीं आएगा।

छोटे-मोटे झूठ से बहुत परेशान किया करता था उसे
आज फिर से मिल ए जान, अब कोई बहाना नहीं आएगा।
~ अनामिका

Saturday, 25 April 2015

मजबूरी का नाम जिंदगी।

ए जिंदगी मुझपे तेरी चंद साँसें क्या उधार हो गईं
तू इम्तिहान लेने के लिए तो मेरे सर पें सवार हो गईं।

जिंदगी जीने का नाम हैं या जीने को जंग कहते हैं?
अब तक तजुर्बे इतने दिए की मेरी उम्र शर्मसार हो गईं।
~ अनामिका

Tuesday, 21 April 2015

इक चाँदनी क्या जरासी चमक गईं, सूरज भी शब में खिला हैं।


वो जो आवारा हुआ करता था, आज किसी से अदब से मिला हैं
इक चाँदनी क्या जरासी चमक गईं, सूरज भी शब में खिला हैं।

ऊपर वाले के रहम-ओ-करम की जो मिसाले  दिए घूमता था
जरा सी वक्त ने क्या करवट ली, अब उसे ही रब से गीला हैं।

ना नियत सें  ना सिरत सें ना ईमान सें और ना ही सुरत सें
यहाँ कदम कदम पर सब इंसानों को बस मजहब से तोला हैं।

मसरूफ सी इस दुनिया में अब फुरसत के पल किस के पास हैं
यहाँ मिलने वाला तो अक्सर किसी ना किसी सबब से मिला हैं।
~ अनामिका

Monday, 20 April 2015

यहाँ दुनिया वालों ने जिसको पहले आम समझा हैं थोड़ा वक्त बदलते ही उसका सही दाम समझा हैं।

यहाँ दुनिया वालों ने जिसको पहले आम समझा हैं
थोड़ा वक्त बदलते ही उसका सही दाम समझा हैं।

मुफलिसी मेरी किस्मत हैं तो खुद्दारी मेरी फितरत
मुझे खैरात में जो भी मिला उसे हराम समझा हैं।

रफिकों का रंग हैं ऐसा कि रकीब फिके पड़ जाएँ
आँखो में रंज लेकर भी मिले, तो दुआ सलाम समझा हैं।

खुशियों कि मेहमान नवाजी जब तनहाई से होती हैं
तब भीड़ भरी दुनिया में खुद को नाकाम समझा हैं।

जिंदगी के सफर में मंजिल गुमशूदा सी लगती हैं
जहाँ चैन-ओ-सुकून मिले वो आखिरी मुकाम समझा हैं।
~ अनामिका

सर्वाधिकार सुरक्षित।

Saturday, 18 April 2015

सत्य परिस्थिति।

एक घर में रहती हैं एक सुंदर सी परी
दिखने में नाजुक, और रंग से गोरी।

8 साल कि वो गुड़िया रहती है बहुत हि होशियार
नन्ही गुड़िया से करते हैं सब जी भर के प्यार।

बुखार होकर परी को  जब जब आती हैं खाँसी
निराश होते हैं मम्मी-पापा, साथ में सारे पड़ोसी।

जो परी को प्यार से कहता हैं, मेरी रानी मेरा बच्चा
वो होता हैं पडोस वाला एक चंदू चाचा।

चंदू चाचा जब घर में अकेला ही रहता हैं
तब परी को लेने वो अक्सर उसके घर पे आता हैं।

परी के लिए लाता हैं वो चाॅकलेट और मिठाई
पापा उसे मानते हैं सगे जैसा भाई।

चंदू चाचा परी को इक दिन घर ले जाता हैं
bed पर उसे बिठाकर दरवाजा लगा लेता हैं।

परी गईं चंदू के घर, ये पापा जब सुनते हैं
वो तो अपने घर का है सोचकर वो भी बिंदास रहते हैं।

चाचा कहकर चंदू के यहाँ खेलने आती हैं वो गुड़िया
दरवाजा लगते ही चंदू के अंदर का जाग जाता हैं भेडीयाँ।

एकदम से ही परी को कुछ समझ में नहीं आता
हाथ-पैर झटक कर कहती हैं मुझे घर जाने दो चाचा।

मुँह बंद होते ही परी का आवाज बंद हो जाता हैं
चाचा जैसे पवित्र रिश्ते का मतलब कहीं खो जाता हैं।

परी को घर लेजाने जब मम्मी bell बजाती हैं
तब हँसकर चंदू कहता हैं परी तो बिलकुल नहीं सताती हैं।

घर जाते ही परी का बोलना कम हो जाता है
उसके साथ क्या हुआ ये उसे भी समझ नहीं आता हैं।

हमारे यहाँ भी अक्सर ऐसी गुड़िया होती हैं प्यारी सी
प्यार जिस्से करते हैं सब रिश्तेदार और पड़ोसी।

हँसती खेलती परी, पापा को गुमसूम नजर आती हैं
उसने homework नहीं किया होगा ये मम्मी हँस के कहती हैं।

हमारा हरेक पड़ोसी जानवर तो नही होता।
पर दरवाजे के पिछे क्या होता हैं हमें पता भी नहीं होता।

अपनी नाजुक परी को हम जान से ज्यादा चाहते है
उसी परी के साथ ऐसे कुछ जानवर खेल सकते हैं।

ऐसे जानवरों से सबको सावधान होना चाहिए
भरोसा करने से पहले सब को परख लेना चाहिए।
~ अनामिका

Friday, 17 April 2015

माना सबकी नजरों में मैं खलता रहता हूँ। फिर भी झुकता नहीं हूँ मै, चलता रहता हूँ।

माना सबकी नजरों में मैं खलता रहता हूँ।
फिर भी झुकता नहीं हूँ मै, चलता रहता हूँ।

बुरा हो या अच्छा,कुछ  कहता नहीं रब को
उसकी बंदगी में लौ सा जलता रहता हूँ।

भूखा रह लेता हूँ, गद्दारी नहीं करता
खुद्दारी पे कई दिन तक पल ता रहता हूँ।

घाव हैं कुछ पुराने जो कभी भरते ही नहीं है
उन जख्मो पर अश्कों को मलता रहता हूँ।

चाहे तोड़ दो डाली से या खुशबू लूट लो
मेरी फितरत हैं फूल सी, मैं खिलता रहता हूँ।
~ अनामिका

Saturday, 11 April 2015

वो नहीं पास मेरे, पर मैं तो उसके पास हूँ यही सोचकर मैं अपना बुरा हश्र नही करता।

बस चुपके से देखता है कभी जिक्र नहीं करता
तो मैं ये कैसे कहदू कि वो मेरी फिक्र नहीं करता।

अनदेखा कर देता है सरेआम इस अंदाज से
दिखाता है कि जैसे मेरी कद्र नहीं करता।

कोई मजबूरी हि होगी जो कभी जुबान तक ना आई
वर्ना कौन हैं जो मोहब्बत पर फक्र नहीं करता।

वो नहीं पास मेरे, पर मैं तो उसके पास हूँ
यही सोचकर मैं अपना बुरा हश्र नही करता।
~ आनामिका

Thursday, 9 April 2015

छह कमरों का 'मकान' देकर दो कमरों का "घर" छुडाती है आखिर यही रिवायत होती है इन अमीरों के शहरों की।


छह कमरों का 'मकान' देकर दो कमरों का "घर" छुडाती है
आखिर यही रिवायत होती है इन अमीरों के शहरों की।

हाथ पैर सलामत होकर भी ये मुकद्दर के अपाहीज बनते हैं
कुछ ऐसी ही फितरत होती है इन लकीरों के फकीरों की।

मिट्टी का घरौंदा तोड़कर मुझे सपनों से बखूबी जगाती है
बस ऐसी नजाकत होती है इन समुंदरों के लहरों की।

जोश और जज्बा होकर भी वो वजीर-ए-आलम नहीं बन सकते
अब यही किस्मत होती है इन बादशाहों के वजीरों की।

अगर सच्चाई खून में मिला दे, और खुद्दारी जिगर से लगादे
तो फिर किसे जरूरत होती है इन जोहरी के जेवरों की।
~ अनामिका

Monday, 6 April 2015

बरगद और पीपल जैसे विशाल तो हम नही पर गमलों में उगने वाली तुलसी भी किसी से कम नही।

बरगद और पीपल जैसे विशाल तो हम नही
पर गमलों में उगने वाली तुलसी भी किसी से कम नही।

छुपेरुस्तम होते है ये मोहब्बतों के काफिर
अक्सर हसके कहते है, मेरी आँखे नम नही।

मैंने मेरे खुदा को भी झूठ बोलते देखा है
जब माँ मुझे कहती है उसके दिल में गम नहीं।

भरी बस्ती में भी लूट जाती है किसी बेचारी कि इज्जत
और वो दरवाजे बंद करके छिपते है, जिनके जिगर में दम नहीं।

धर्म के नाम पर कभी-कभी इंसान जानवर हो जाते है
और भूल जाते है कि जानवरों का तो कोई धर्म नही।
~ अनामिका

Saturday, 4 April 2015

एक गजल.... यारों के... और उनकी यारी के नाम....

वो यारी फकत नाम कि है, जिसमें शर्म है या लिहाज है
किस्मत वालों को होती है ये बीमारी, इसका ना कोई इलाज है।

झगड़ा हो तो गाली देंगे, पर मुसीबत आएं तो जान दे देंगे
यारी में ऐसे कमीने यार तो होते ही जाँबाज है।

इश्क-मोहब्बत में जो लाख रोए, यार जो दिखे तो खुलके हसदे
यही ताकत है यारी कि, यही यारो के मिजाज है।

खून, मजहब अलग होकर भी रूह एक हो जाती है
यारी कि इस अलग दुनिया का यही एक रिवाज है।

एक नाजुक मोड़ है यारी का, जब अहम स्वयम पे हावी ना हो
यारी कि इस खुबसूरती का यही एक राज है।
~ अनामिका

Thursday, 2 April 2015

ना जीने कि कोई ख्वाहिश है, ना मरने का कोई बहाना है पनाह दी है सबको मैंने, पर ना मेरा कोई ठिकाना है।


ना जीने कि कोई ख्वाहिश है, ना मरने का कोई बहाना है
पनाह दी है सबको मैंने, पर ना मेरा कोई ठिकाना है।

दुनिया वालों के हिसाब-किताब मे कच्ची पड गईं गिनती मेरी
मैं जिनका अपना नहीं, उन सबको अपना बताना है।

मोहब्बत जिससे उधार ली थी,मिजाज से वो  साओकार निकला
सुकून रख दिया गिरवी अपना, अब किश्तो में कर्ज चुकाना है।

जिंदगी के इन गर्म अंगारों का एक हि इलाज आता है नजर
ठंडक देनी है दिल के छालो को, तो खुद हि अश्कों को बहाना है।
~ अनामिका