Wednesday, 22 October 2014

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?
पैसेवाला वफादार, तो गरीब मक्कार है।
भर भर के सोना वो पत्थरो पे चढाते है,
सडको पे बैठा ये फकीर लाचार है।।

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?
धर्म के नाम पे खडी ईक दिवार है।
इनसानीयत बीकती है यहा चंद सीक्को मे,
एक तरफ बंदूक, दूसरी तरफ तलवार है।।

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?
चांद मे दाग तो सूरज मे अंगार है।
सजदे मे तेरे झूकते है रेहेम के खातीर,
तेरे खौफ से अंजान, सब घमंड मे सवार है।।

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