खामोश सी िजंदगी है, अरमान बोहोत है....
भीड सी बस्ती मे चलतेहे, अंजान बोहोत है.....
ईम्तीहानोका चलताहे सीलसीला, मंजीलोका नीशान मीलता नही....
ख्वाहीशोका घुटताहे गला न जाने उस खुदा को कैसे दीखता नही...
ए खुदा..... मत कर गुरुर अपनी हस्ती पर, एक दीन मेरा भी आएगा....
खुदकी हस्ती पर नाज करने वाले, तु खुद इस
बंदी को दुनीयासे मीलाएगा....
कीस्मत भी झुकेगी मेरे आगे, माथे की लकीर भी बदलेगी...
कल जे हसते थे मुझपे, आज उनकी नीयत बदलेगी.
रंगीन सी दुनीया है, फीरभी बेरंग लगती है...
चांदनी तो चांद का हीस्सा है, फीरभी अलग
सी लगती है....
दीखावे की मुस्कान है...
तनहाई मे डुबी हर एक शाम है...
बीखरा है कई टुकडो मे ये दील...
मगर "िजंदादीली" इस दील की पेहेचान है....
भीड सी बस्ती मे चलतेहे, अंजान बोहोत है.....
ईम्तीहानोका चलताहे सीलसीला, मंजीलोका नीशान मीलता नही....
ख्वाहीशोका घुटताहे गला न जाने उस खुदा को कैसे दीखता नही...
ए खुदा..... मत कर गुरुर अपनी हस्ती पर, एक दीन मेरा भी आएगा....
खुदकी हस्ती पर नाज करने वाले, तु खुद इस
बंदी को दुनीयासे मीलाएगा....
कीस्मत भी झुकेगी मेरे आगे, माथे की लकीर भी बदलेगी...
कल जे हसते थे मुझपे, आज उनकी नीयत बदलेगी.
रंगीन सी दुनीया है, फीरभी बेरंग लगती है...
चांदनी तो चांद का हीस्सा है, फीरभी अलग
सी लगती है....
दीखावे की मुस्कान है...
तनहाई मे डुबी हर एक शाम है...
बीखरा है कई टुकडो मे ये दील...
मगर "िजंदादीली" इस दील की पेहेचान है....
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