Friday, 17 October 2014

अपना भी अक्सर यही हाल रेहेता है....

अपना भी अक्सर यही हाल रेहेता है
हाल क्या कहे, बेहाल ही रेहेता है.....
जवाब तो मीलजाते है दीनके उजालो मे
अंधेरो मे नजाने क्यु ये सवाल रेहेता है?

सल्तनत तो होती है बादशाहो की मुट्ठी मे
हर शक्स के मन मे यही खयाल रेहेता है
आज मीलजाए इस फकीर को हुकूमत
क्या ऐसा भी कोई महाल रेहेता है?

बटजाते है दुनिया वाले धर्म के नाम से
पर खून तो सबका लाल ही रेहेता है
फीर क्यु मचा है ये कोहराम ईनसानो मे?
दील मे दबा अब यही मलाल रेहेता है......

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