Sunday, 21 December 2014

अधूरे उन सपनों से कुछ ऐसी चाहत थी.........

अधूरे उन सपनों से कुछ ऐसी चाहत थी,
अंजान ईक सहरा में जैसे पानी की तलब थी।

भीड़ भरी महफिल में मेरी ऐसी हालत थी,
महफिल में दबी मेरी तनहाई भी गजब थी।

बेवफा ऊस शक्स से कुछ ऐसी मोहब्बत थी,
जो हुआ सो हुआ। जुदाई मेरी नसीब में थी।

वो अमीर साहब बनगया, मैं फकीर गुलाम रहगया,
बाप का चेहरा कभी देखा नहीं, और माँ बोहोत गरीब थी।

बुढे जिंदा रह गए और जवान हादसेमे मर गए,
उनको फौरन बचा सके, ऐसी दवा कीसी मतब में थी।

- अनामिका

सहरा- रेगिस्तान
तलब- प्यास
मतब- अस्पताल

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