Wednesday, 24 December 2014

मुफलीसी ही मुकद्दर मे आनी है तो आए ठीकाना बस अपना हो, फीर झोपडी ही क्यु ना हो।

मुफलीसी ही मुकद्दर मे आनी है तो आए
ठीकाना बस अपना हो, फीर झोपडी ही क्यु ना हो।

जो पुरी ना हो तो आख भर आती है
जिंदगी से कुछ ख्वाहीशे थोडी क्यु ना हो।

चुभने का दर्द कोई उस विधवा से पुछे
वो टुटने वाली काँच की चुडी क्यु ना हो।

सुरज ढलतेही घर लौट आना चाहीये
दुनिया में हर तरफ जंग छीडी क्यु ना हो ।

औलाद को नजरे झुकाए रखनी चाहीये
चाहे वो बाप के सामने खडी क्यु ना हो ।

बेटी को मनाने का हुनर हर बाप रखा करे
चाहे वो लाख जीद पे अडी क्यु ना हो।

जिंदगी के सफर तो तजुर्बो से कटते है
घर में फीर लाखो की गाडी क्यु ना हो।

दील मे दबाए रखी है तो बोल देनी चाहीये
चाहे फीर वो बात बडी क्यु ना हो।

मोहब्बत करने वाले हद से गुजर ही जाते है
पैरो मे समाज की बेडी क्यु ना हो।

- अनामिका

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