Sunday, 21 December 2014

सीयासतों मे कीसीकी कीमत आज घटगई घटी थी कल जीसकी, उसकी आज बढगई।

सीयासतों मे कीसीकी कीमत आज घटगई
घटी थी कल जीसकी, उसकी आज बढगई।

फरेब और ऐब में जो खेलते रहे कल तक,
मुल्ख मे उनकी धज्जियाँ आज उडगई।

जालीम कुछ दरींदो ने नोच लीया जीसे
ऊस बाप से पुछो, गुडीया जीसकी मरगई।

सरहद पर देश की इज्जत बचाई उसने
यहाँ भरी जवानी में चुडीयाँ कीसीकी टूट गई।

कहीं जमीन है बंजर तो मिट्टी भी सुखगई
कही बेमौसम बरसात से पत्तीयाँ कुछ झडगई।

गरीबों की बस्ती मे मातम सा छागया
कीसानों के खुदखुशी की चिठ्ठीयाँ जब मीलगई।

घर मे जीसके बेटा हुआ, खुशीयाँ उन्हें मीलगई
तो कीसी माँ के कोख मे ही बिटिया उसकी मरगई।

आधुनिक भारत के ऐ आधुनिक सोच वाले
तेरी घटीया सोच पे शरम से नजरे झुकगई।

दोस्ती की परीभाषा आज दुश्मनी मे बदलगई
नफरत और जंग मे ही दुनिया आज भीडगई।

फुर्सत के कुछ लम्हों मे यु ही खयाल आता है,
समय के ईस रफ्तार मे इंसानियत कहा छुटगई?

- अनामिका

No comments:

Post a Comment