Sunday, 21 December 2014

तनहाई की ईस रात मे कुछ दर्द खंगाले जाते है


आखो से गीरते गीरते कुछ अश्क संभाले जाते है।

पैसा जीनका बोलता है, बोलबाला उनका होता है
वो बेमतलब कुछ बोले तो भी मतलब नीकाले जाते है।

राजनीति का दौर है, दोस्ती बरकरार रखनी चाहीये
ईसी तरह आस्तीनो मे साँप पाले जाते है।

हया और इज्जत तो तवायफो मे भी होती है
जो मजबूरी और लाचारी के साचे मे ढाले जाते है।

जबान जीनकी खामोश हो, वो नीगाहो से बोलते है
ईसी तरह दील के कुछ राज खोले जाते है।

मोहोब्बत मे दील ही नही, जान भी जीन्होने हारी है
आजकल वही मोहोब्बत के मसीहा बोले जाते है।

फरेब और मक्कारी से जो खेले वही खिलाड़ी है
ऐसेही बाजारों मे खोटे सीक्के तोले जाते है।

- अनामिका

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