Wednesday, 31 December 2014

चेहरे पर जो अपने दोहरी नकाब रखता है खुदा उसकी चलाखीयोंका हीसाब रखता है।

चेहरे पर जो अपने दोहरी नकाब रखता है
खुदा उसकी चलाखीयोंका हीसाब रखता है।

जमानेकी नजर में जो चुप चुप सा रहता है
अक्सर वही सीनेमे जलता सैलाब रखता है।

पींजरे में ही कैद होगई है जिंदगी जीसकी
वो पंछी भी एकदीन उडने का ख्वाब रखता है।

काटों से मोहब्बत करने की हीम्मत जीसमे हो
वही अपने हाथों में गुलाब रखता है।

दहशत पैदा करने का तरीका जीसे आगया
वो शेर ही सर पर बादशाही का खीताब रखता है।

जो बोलनेके हुनर से लोगों का दील जीतले
वो बीना सवाल जानेही होंठो पर जवाब रखता है।
- अनामिका

Sunday, 28 December 2014

लकीरो मे छुपी है या महनत में दबी है? कीस्मत को मुट्ठी के दम पर आजमाना है।













ना शोहरत ना रुत्बा ना महलों में ठीकाना है।
ये मुफलीस की झोपड़ी बस सपनों का आशियाना है।

जबान से मीठा और जायके से कडवा है
हर शक्स अंदरसे बडा कातीलाना है।

ये अदावते ये तेवर कीसको दीखाए?
कंबख्त ईस दील की हरकते बचकाना है।

लकीरो मे छुपी है या महनत में दबी है?
कीस्मत को मुट्ठी के दम पर आजमाना है।

जो सीधे सीधे बयान हो वो दर्द ही क्या है
मुझसे सीखो, मेरा अंदाज कुछ शायराना है।
- अनामिका

मुफलीस- गरीब
जायका- Taste

Saturday, 27 December 2014

दर्द


मोहब्बत के ईस खेल में आजमाईश क्यु है?
जब बेपनाह ईश्क है तब रंजीश क्यु है?

लफ्ज ही लफ्जो के मायने ना समझे
अरमानों की दीलमे बंदीश क्यु है?

दील जलाने के यहाँ मनसुबे बनते है
अपनों के लीये ही ये साजीश क्यु है?

तवज्जो भी दे और तवक्को ना रखे
ईस ईश्क मे ऐसी गुजारिश क्यु है?

जख्म तो जैसे विरासत में मीले है
यहाँ अनगीनत अश्कों की बारिश क्यु है?
- अनामिका

रंजीश- anger
मनसुबे- planning
तवज्जो- here d meaning of dis. word is care
तवक्को- expectation
अश्क- tears

मीलनेकी फुरसत कीसके पास है यहाँ? हर कोई आजकल जल्दी में है।

मीलनेकी फुरसत कीसके पास है यहाँ?
हर कोई आजकल जल्दी में है।

तकदीर का कारोबार तो खुदा ही जाने
कीस्मत की दुकान भी मंदी मे है।

घर पे मीले जख्मों को अंदर ही निपटादे
ऐसा मलहम उस हल्दी में है।

माँ से झगडकर जो बच्चा रूठ जाएँ
उसे मनाने का सबब बस दादी में है।

बाप के खातिर जो मोहब्बत कुर्बान करे
ये हुनर हींदुस्तान की हर बंदी मे है।

हुकुमत में जीये तो क्या खाक जीये
असली मजा तो आजादी में है।
- अनामिका

Friday, 26 December 2014

ईश्कबाजी


























जब मन में आए तब लुत्फ उठा लेते हो
ये दील है, कश्मीर का शीकारा नही।

तेरी ख्वाहीशो के लीये कब तक यु टुटता रहू
इंसान हु, आसमान का सीतारा नहीं।

बेवफाई के ईल्जाम भी मुझपर ही लगते रहे है
आशीक हु, गली का आवारा नही।

मोहब्बत निभानी है तो शीद्दत से निभाओ
ये चार दीन की ईश्कबाजी मुझे गवारा नही।

आसानीसे ईस दील पे तेरी हुकुमत चल गई
वर्ना ये बादशाह कभी हारा नही।

जो तुने छोड़ दीया तो और भी कई मिलेंगे
मै कोई कीस्मत का मारा नही।
- अनामिका

लुत्फ - enjoy
शिकारा - boat, जहाज

Wednesday, 24 December 2014

मुफलीसी ही मुकद्दर मे आनी है तो आए ठीकाना बस अपना हो, फीर झोपडी ही क्यु ना हो।

मुफलीसी ही मुकद्दर मे आनी है तो आए
ठीकाना बस अपना हो, फीर झोपडी ही क्यु ना हो।

जो पुरी ना हो तो आख भर आती है
जिंदगी से कुछ ख्वाहीशे थोडी क्यु ना हो।

चुभने का दर्द कोई उस विधवा से पुछे
वो टुटने वाली काँच की चुडी क्यु ना हो।

सुरज ढलतेही घर लौट आना चाहीये
दुनिया में हर तरफ जंग छीडी क्यु ना हो ।

औलाद को नजरे झुकाए रखनी चाहीये
चाहे वो बाप के सामने खडी क्यु ना हो ।

बेटी को मनाने का हुनर हर बाप रखा करे
चाहे वो लाख जीद पे अडी क्यु ना हो।

जिंदगी के सफर तो तजुर्बो से कटते है
घर में फीर लाखो की गाडी क्यु ना हो।

दील मे दबाए रखी है तो बोल देनी चाहीये
चाहे फीर वो बात बडी क्यु ना हो।

मोहब्बत करने वाले हद से गुजर ही जाते है
पैरो मे समाज की बेडी क्यु ना हो।

- अनामिका

Tuesday, 23 December 2014

मोहब्बत.........

जरूरत में वो आती है बस मीलती है ईक जख्म की तरह
सीनेसे उसे लगाता हूँ, सोचता उसे मरहम की तरह।

उसे मुझसे मोहब्बत है या मैं उसका हमदर्द हूँ?
जहन में बस वो रहती है ईक वहम की तरह।

मन मे आए तो बोलती है, वर्ना चूप चूप सी रहती है
पल भर मे वो बदलती है कीसी मौसम की तरह।

ईक मै ही नही आंशिक उसका, और भी कोई होगा
कभी मुझे वो लगती है उस झेलम की तरह।

दुखता है दील पर कंबख्त बाज नही आता
सहता उसे मैं रहता हूँ, कीसी जुर्म की तरह।

- अनामिका
झेलम is a name of river which flows in India as well as
in pakistan.

Sunday, 21 December 2014

अधूरे उन सपनों से कुछ ऐसी चाहत थी.........

अधूरे उन सपनों से कुछ ऐसी चाहत थी,
अंजान ईक सहरा में जैसे पानी की तलब थी।

भीड़ भरी महफिल में मेरी ऐसी हालत थी,
महफिल में दबी मेरी तनहाई भी गजब थी।

बेवफा ऊस शक्स से कुछ ऐसी मोहब्बत थी,
जो हुआ सो हुआ। जुदाई मेरी नसीब में थी।

वो अमीर साहब बनगया, मैं फकीर गुलाम रहगया,
बाप का चेहरा कभी देखा नहीं, और माँ बोहोत गरीब थी।

बुढे जिंदा रह गए और जवान हादसेमे मर गए,
उनको फौरन बचा सके, ऐसी दवा कीसी मतब में थी।

- अनामिका

सहरा- रेगिस्तान
तलब- प्यास
मतब- अस्पताल

सुकून और अमन का यहाँ एक ही मकान है मुफ्त का बसेरा है जहाँ, वो शमशान है।

सुकून और अमन का यहाँ एक ही मकान है
मुफ्त का बसेरा है जहाँ, वो शमशान है।

ना दोस्त, ना दुश्मन, ना मेहबूब का दामन
भीड़ मे फसी तनहाईयोंका ये कबरिस्तान है।

ताऊम्र अना को, वो गिरवी रखते आया है
बस औलाद की खातिर ये बाप के लिये आसान है।

आज भरे बुढ़ापे मे बेटा बाप को न पुछे,
बाप की तमाम कुरबानीयोंका, ये कैसा सम्मान है?

ना खाने को निवाला, ना शरीर मे जान है
गरीब की जिंदगी मे बस थकान और तुफान है।

फकीर के लिये एक और दुश्वार दीन,
बस अमीरों का ही त्योहार और अमीरों का ही रमजान है।

सिर्फ धर्म के बात में यहाँ सबकी आन है
ना गीता जानते है, ना पढ़ा कुरान है।

बस नाम का है खुदा, और नाम का ही भगवान है
यहाँ बस्ती मे गालीगलोच, और मस्जिद मे आझान है।

- अनामिका

जिंदगी के सफर मे एक लमहा जब मै ठहर गया..........

जिंदगी के सफर मे एक लमहा जब मै ठहर गया
होश आया तो देखा जैसे सदियोंका वक्त गुजर गया।

वक्त के आगे निकलना था जाने कैसे हार गया
वक्त की ऊस रफ्तार से तब मै बोहोत डर गया।

जवानीका मोड था,  चेहरे पे कीसी के मर गया
ईश्क पे जोर चलता नही, जो ना करना था करगया।

आशिकी मे हारना था, हारकर ही सवर गया
बेवफा ऊस शक्स का अब चेहरा दील से उतर गया।

चंद पैसों के खातिर गाँव से जब मै शहर गया
खुद का ठीकाना था नही, तो कीसी दोस्त के घर गया।

मुझे देखकर दोस्त बोला ये तु कहा आगया?
मुसीबत की ऊस घड़ी मे दोस्त भी मुकर गया।

आखिर मै जब लाचार होके खुदा के कीसी दर पर गया
बाहर बैठे फकीर की दुआओसे दामन भर गया।

अकेला हु, अकेला ही जाऊँगा ये सबक तब मै जानगया
रहनुमा बस खुदा है, ईस बात को आज मानगया।

- अनामिका

रहनुमा - Guide

सीयासतों मे कीसीकी कीमत आज घटगई घटी थी कल जीसकी, उसकी आज बढगई।

सीयासतों मे कीसीकी कीमत आज घटगई
घटी थी कल जीसकी, उसकी आज बढगई।

फरेब और ऐब में जो खेलते रहे कल तक,
मुल्ख मे उनकी धज्जियाँ आज उडगई।

जालीम कुछ दरींदो ने नोच लीया जीसे
ऊस बाप से पुछो, गुडीया जीसकी मरगई।

सरहद पर देश की इज्जत बचाई उसने
यहाँ भरी जवानी में चुडीयाँ कीसीकी टूट गई।

कहीं जमीन है बंजर तो मिट्टी भी सुखगई
कही बेमौसम बरसात से पत्तीयाँ कुछ झडगई।

गरीबों की बस्ती मे मातम सा छागया
कीसानों के खुदखुशी की चिठ्ठीयाँ जब मीलगई।

घर मे जीसके बेटा हुआ, खुशीयाँ उन्हें मीलगई
तो कीसी माँ के कोख मे ही बिटिया उसकी मरगई।

आधुनिक भारत के ऐ आधुनिक सोच वाले
तेरी घटीया सोच पे शरम से नजरे झुकगई।

दोस्ती की परीभाषा आज दुश्मनी मे बदलगई
नफरत और जंग मे ही दुनिया आज भीडगई।

फुर्सत के कुछ लम्हों मे यु ही खयाल आता है,
समय के ईस रफ्तार मे इंसानियत कहा छुटगई?

- अनामिका

जिक्र तेरा जमानेसे जब जब मै करता हूँ जीतली ये जिंदगी कहकर जीतना भुल जाता हूँ।

जिक्र तेरा जमानेसे जब जब मै करता हूँ
जीतली ये जिंदगी कहकर जीतना भुल जाता हूँ।

हसरत तुझे हसानेकी दील मे जब मै रखता हूँ
हसता तुझे देखता हु और हसना भुल जाता हूँ।

तुझे मै जानता हु, ये खुदसे जब मै कहता हूँ
सच कहता हु जान, मै जीना भुल जाता हूँ।

जब जब तुम सजती हो सोच मे पड जाता हूँ
सवरता तुम्हे देखकर साँस लेना भुल जाता हूँ।

खुदा से तुझे मांगनेकी ख्वाहीश जब मै करता हूँ
तुझे खोनेके खौफ से, खुद को भुल जाता हूँ।

- अनामिका

तनहाई की ईस रात मे कुछ दर्द खंगाले जाते है


आखो से गीरते गीरते कुछ अश्क संभाले जाते है।

पैसा जीनका बोलता है, बोलबाला उनका होता है
वो बेमतलब कुछ बोले तो भी मतलब नीकाले जाते है।

राजनीति का दौर है, दोस्ती बरकरार रखनी चाहीये
ईसी तरह आस्तीनो मे साँप पाले जाते है।

हया और इज्जत तो तवायफो मे भी होती है
जो मजबूरी और लाचारी के साचे मे ढाले जाते है।

जबान जीनकी खामोश हो, वो नीगाहो से बोलते है
ईसी तरह दील के कुछ राज खोले जाते है।

मोहोब्बत मे दील ही नही, जान भी जीन्होने हारी है
आजकल वही मोहोब्बत के मसीहा बोले जाते है।

फरेब और मक्कारी से जो खेले वही खिलाड़ी है
ऐसेही बाजारों मे खोटे सीक्के तोले जाते है।

- अनामिका

पहली ही नजर मे जो चीर गया दीलको सोचताहु उसका नाम क्या होगा?






पहली ही नजर मे जो चीर गया दीलको
सोचताहु उसका नाम क्या होगा?

अजनबी वो चेहरा जो छपगया जहन मे
आसानीसे ईस दीलसे गुमनाम क्या होगा?

जैसे कतल कीया हो उसने और खरोच तक ना आयी
जब आगाज ये है, तो अंजाम क्या होगा?

माना उनके हुस्न के चर्चे बोहोत है
जो थामले मेरा हाथ वो, तो बदनाम क्या होगा?

छुप छुप कर ही कागजो पे वो नाम लीखा करते है
ये वो वाकीया है, जो सरेआम क्या होगा?

कभी दील-ए-राज जो बयान करू लफ्जो मे,
सोचता हूँ फीर हसके वो पैगाम क्या होगा?

इकरार-ए-मोहब्बत मे तो फना हो जाउंगा
इनकार अगर वो कहे, तो इंतकाम क्या होगा?

- अनामिका

दुनिया मे लगे जब लोगो के मेले थे हम तो कहीनाकही फीर भी अकेले थे।



















दुनिया मे लगे जब लोगो के मेले थे
हम तो कहीनाकही फीर भी अकेले थे।

रह रह के दरवाजे पे दस्तक दीया करते है
दुख जैसे कतार मे गीनगीनके झेले थे।

वो रीश्तेदारी वो दुनियादारी कभी रास ना आई
कुछ खेल जो अपनों ने मीलके खेले थे।

ईश्कबाजी, बेवफाई क्या क्या बयान करे?
दील के कीसी कोने मे सेकडो झमेले थे।

मुसीबत में दूरदूर तक कोई नजर ना आया
यु तो मेरे पीछे कीतने काफीले थे।

कहने पे आऊ तोरात कम पडजाये
जिंदगी मे नजाने और कौनसे मसले थे?

- अनामिका

Sunday, 30 November 2014

नसीब के आगे कीसीकी चल नहीं सकती.....

जिंदगी की सच्चाई कभी बदल नहीं सकती
नसीब के आगे कीसीकी चल नहीं सकती
लाख गुरूर करे वो समंदर भी खुद पर
प्यास उससे कीसी की बुझ नहीं सकती.

सीयासतो में सीटे कीसीकी टीक नही सकती
ये राजनीति है, कीसीकी हो नही सकती
बडी तवज्जो से पढा था ऊस दीन जो अखबार
आज उसकी खबरें फीर से बिक नही सकती.

माजी की गलतीयाँ कभी मीट नही सकती
तसव्वूर मे जिंदगी कट नही सकती
रास्ते जहाँ लेजाए वहा चलते रहना सीखो
यु रूकनेसे मंजिल मील नही सकती.

वक्त की ये रफ्तार कभी रूक नही सकती
बढती उम्र से क्या डरना, वो थम नहीं सकती
ईस जवानी में थोड़ा सा जी लेते है यारों
ये जिंदगी दोबारा मील नहीं सकती.

अकड और ईबादत एक हो नही सकती
लाख पैसों से मन्नत पुरी हो नही सकती
सजदे मे झुकना है तो दील से झुकों
यु खुदा की रहमत तुम पे हो नही सकती.

- अनामिका

तवज्जो= ध्यान
माजी= अतिथ
तसव्वुर = कल्पना

Saturday, 22 November 2014

एका घरी असते एक सुंदर परी
दीसायला नाजुक आणि रंगाने गोरी.

आठ वर्षांची बाहुली ती खूपच गोड
तीच्या गोडीची असते सगळ्यांनाच ओढ.

ताप येऊन जेव्हा ती पडते आजारी
निराश होतात आई-बाबा, आणि सोबतच शेजारी.

परी सोबत खेळतात माऊ आणि बोका
सोबतच शेजारचे चंदू काका.

चंदू काका असतो जेव्हा एकटाच घरी
परीला नेण्यास तो येतो तीच्या दारी.

परी साठी आणतो तो नवनवा खाऊ
बाबांसाठी असतो तो सख्यासारखा भाऊ.

चंदू काका एकदा तीला घरी झेऊन जातो
Bed वर बसऊन तीला, दार लाऊन घेतो.

परी गेली चंदूकडे, बाबा जेव्हा ऐकतात
घरच्यासारखा माणूस म्हणून ते ही बिंदास होतात.

काका म्हणून चंदूकडे खेळायला येते ती निरागस
कडी लावताच चंदू मधला जागा होतो राक्षस.

काही न कळून अचानक ती होते कावरीबावरी
हात पाय झटकून म्हणते, मला जाउदे काका घरी.

तोंड दाबताच परीचा आवाज घुमायचा थांबतो
काका सारख्या पवित्र नात्यातला, अर्थ ही कुठेतरी हरवतो.

परीला परत नेण्यास जेव्हा दार ठोठावते आई
दार उघडून चंदू म्हणतो, घेऊन जा तीला ताई.

घरी जाताच परीचं, बोलणं कमी होतं
नेमकं काय झालं हे तीलाही कळलेलं नसतं.

नेहमीपेक्षा बाबांना ती हरवल्या सारखी भासते
Homework केला नसेल हो तीने, म्हणून आई ही मग हसते.

आपल्यापैकी कीत्येकांकडे अशीच असते परी
लाड जीचे करत असतात नातेवाईक आणि शेजारी.

आपल्या प्रत्येक शेजार्यात अमानूषपण नसतं
पण दाराआड घडणारं आपल्यालाही माहीत नसतं.

आपल्या नाजूक परीला आपण जिवापाड जपतो
त्याच परीची हेळसांड एक राक्षस करू शकतो.

अश्या राक्षसांपासून आपण सतर्क रहायला हवं
विश्वास ठेवण्याआधी त्यांना परखून बघायला हवं.

- अनामिका

Friday, 14 November 2014

भलेही दुनीयेच्या नजरेत आपल्यात काही खास नाय.


जिन्दगी की कश्मकश मे क्यु ना थोड़ा जीया जाए.......

जिन्दगी की कश्मकश मे क्यु ना थोड़ा जीया जाए
दुख की इन कम्बलो को, मीलके आज सीया जाए।

टुटे हुए रीश्तो पे क्यु ना थोड़ा रोया जाए
प्यार का एक बीज उनमे, मीलके आज बोया जाए।

बचपन की उन यादों मे क्यु ना थोड़ा खोया जाए
आखोसे छलकते आसुओं को, बारिश मे आज भीगोया जाए।

अपनेपन के जाल में क्यु ना दुश्मनो को फसाया जाए
पुरानी नफरते भुलाकर, उनको भी आज हसाया जाए।

पचतावे की आग मे क्यु ना थोड़ा नहाया जाए
अहंकार और घमंड को, मीलके आज बहाया जाए।

एक कतरा जिंदगी का क्यु ना थोड़ा पीया जाए
जिंदगी की कश्मकश मे, मीलके आज जीया जाए।

- अनामिका

Wednesday, 12 November 2014

'तो', 'ती' आणि 'तो दुसराच'.

            प्रेमात सालं असंच असतं. 'तीचं' 'त्याच्यावर'
जीवापाड प्रेम असतं, पण तीच्यावर
जीव ओतणारा 'दुसराच'
कोणीतरी असतो. ती त्याच्या
I  LOVE YOU च्या reply साठी तासनतास वाट बघते, पण
तीच्या एका Hii च्या sms साठी दुसराच
कोणीतरी झुरत असतो. तीला फोन
करायला त्याच्याकडे अजिबात वेळ नसतो, पण तीचा फक्त एक
आवाज
ऐकण्यासाठी कोणीतरी दुसराच
तरफडत असतो. तीने दीलेल्या Gift ला 'तो'
Thanku ही म्हणत नाही, पण
तीच्या एका साध्या Birthday wish वर 'दुसरच'
कोणीतरी गहीवरून येतं.
             प्रेमाचा साला हा भलताच लोचा असतो. 'तो', 'ती'
आणि 'तो दुसरा'. या love story मध्ये 'तो' आणि 'ती' हे
hero heroine. आणि 'तो दुसरा' मात्र Side hero.
'तो दुसरा' कोणीतरी बिचारा प्रेमवेडा.
'ती' आपली होणार नाही हे
माहीत असुनही तीच्यावर
जीव ओतणारा. शब्दांमध्ये
मैत्री आणि डोळ्यांमध्ये प्रेम लपवणारा. ओठांवर
शांतता आणि मनात
तीची काळजी वाटून घेणारा.
तीच्या साठी तो फक्त मीत्र, पण
तीला तो आपलं जीवन मानणारा.
           ईकडे 'तो' आणि 'ती' ची मात्र
वेगळी Love Story. ती त्याच्यावर
जीवापाड प्रेम करणारी, तो मात्र
तीला वेळ न देणारा. ती त्याला आपलं आयुष्य
मानणारी, तो मात्र चारचौघात
तीला मैत्रीण म्हणून फीरवणारा.
ती लग्नाचं स्वप्न सजवणारी, तो मात्र साधं
वचन ही देण्यास धजणारा.
असे हे 'तो', 'ती' आणि 'तो दुसराच'.
          ईकडे ती त्याला भेटण्यासाठी तासनतास वाट बघते.
तो मात्र कामाचं कारण पुढे करून वारंवार तीला टाळतो.
एकदा त्याची वाट बघत असतांना 'तो' येत नाही,
पण तीला 'तो दुसराच' अचानक मीळतो. अचानक
तीला समोर बघून त्या दुसर्याचही भान हरवतं.
'तीच्या' आणि 'त्या दुसर्याच्या' गप्पा होतात.
गोष्टी होतात.
त्या दुसर्याशी बोलतांना अचानक
तीचे अश्रू ओघळतात.
तीला हसवण्यासाठी मग 'तो दुसराच' खटाटोप
करतो. कशीबशी ती हसते.
तो दुसराही भानावर येतो.
तीलाही त्या दुसर्याशी बोलून बरं
वाटतं. 'त्यानेही' कधी ईतक्या प्रेमाने
तीचे अश्रू पुसले नसतात, जीतकं 'तो दुसराच'
नकळत पुसून चाल्ला जातो.
       काही दिवसांनी 'तो' अचानक
कामासाठी बाहेरगावी निघून जातो.
तीने त्याला फोन करताच, जातांना तुला सांगून जायला वेळच
मीळाला नसल्याचं कारण पूढे करतो.
ती जरा चिडताच सध्या कामात आहे म्हणून फोन कट करतो.
मग अचानक 'त्या दुसर्याचा' फोन तीला येतो.
तीचा mood आता कसा आहे अशी विचारपुस
'तो दुसरा' करतो. आता ती मात्र रडायचं टाळते.
तीच्या प्रेमाची 'त्याची'
लायकीच नाही म्हणून 'त्या दुसर्याला' सांगते.
मी माझा वेळ, feelings, प्रेम हे एका मूर्ख माणसावर
वाया घालवल्याचा पश्चाताप त्या 'दुसर्याजवळ' करते.
तो दुसरा तीला शांत करतो. प्रेमात चालतच असतं
अशी समजूत तीची काढतो.
ती मात्र 'त्याला' कायमचं विसरायचं ठरवते. ईकडे 'तो दुसरा'
एक मित्राच्या नात्याने रोज
तीची काळजी घेतो.
तीचा mood खराब असल्यास
तीला हसवण्याचा प्रयत्न करतो. आजपर्यंत जे 'तो'
नाही करू शकला, 'हा दुसराच' करून जातो.
आता तीलाही विचार पडायला लागतो. प्रेमासारखं
प्रेम हरलं पण मैत्री जींकल्याचं आश्चर्य
वाटायला लागतं. हे ती 'त्या दुसर्यापूढे' हसतहसत बोलून
देते.या वेळेस 'तो दुसरा' मात्र शांत न
राहता तीला मनातली हकीकत
सांगून देतो. आयुष्यभर काळजी करण्याचं आश्वासन
तीला देतो. ती म्हणेल तेव्हा लग्न करण्याचं
वचन तीला देतो.तीही आनंदाने
भारावून जाते. तीला जवळ घेऊन 'तो दुसरा' तीचे
अश्रू पुसतो. मी असल्यावर आता रडायचं
नाही म्हणून तीला हसत रागावतो.
       ईकडे काही दिवसात 'तो' परत येतो. 'तीला'
आणि 'त्या दुसर्याला' सोबत बघून तीच्यावर खवळतो.
धोका देतांना लाज
कशी नाही वाटली म्हणून
तीला जाब विचारतो. ती मात्र फक्त हसते. एक
शब्द ही न बोलता तीथून निघून जाते.
दिवसामागून दिवसं जातात. 'तो' ईकडे कामात Busy होतो. कळत-नकळत
त्याचा राग वाढलेला असतो. चिडचिड वाढलेली असते. आयुष्य
उदास वाटायला लागतं. पण त्याचं कारण मात्र
अजूनही कळलेलं नसतं.
काहीतरी हरवल्याची चूणचूण
त्याला भासते. नकळतच तीची आठवण येते.
अलगद डोळे पाणावतात. आयुष्यातून दुसरं
कोणी नाही तर तीच
हरवल्याची जाणीव होते. पण आता वेळ निघून
गेलेली असते. त्याच्याकडे फक्त पश्चाताप उरलेला असतो.

- अनामिका

 LIKE MY FB PAGE
 https://m.facebook.com/profile.php?id=1500709300183536

Monday, 10 November 2014

आनंद महत्वाचा की समाधान????

आनंद आणि समाधान या एकाच नाण्याच्या दोन बाजू आहेत. ज्याप्रमाणे नाणं हवेत फेकल्यावर कुठलीतरी एकच बाजू जींकते, त्याप्रमाणे एकदा निर्णय घेतल्यावर एकतर समाधान मीळतं कींवा आनंद मीळतो.
                         माणसाच्या गरजा खूप क्षुल्लक आणि साध्या आहेत. ज्या पूर्ण करून तो समाधानी राहू शकतो. पण आनंद? त्याचं काय? मग आनंदी राहण्याच्या नादात, माणसाच्या गरजा वाढतात. श्रम वाढतात. सुरुवात होते ती आपल्या आई-वडीलांपासून. प्रत्येक पालकांना वाटतं की आपल्या मुलांनी खूप शीकावं, उच्च शिक्षण घ्यावं, मोठ्या पगाराची नौकरी करावी. आणि असं वाटून घेण्यात काही चूकीचही नाही आहे.
                         मग हे पालकांचे so called मोठे स्वप्न साकार करण्याच्या नादात चालू होते स्पर्धा. खूप अभ्यास करून घेणं, परिक्षेत चांगले गूण
मीळवण्यासाठी मुलांना सतत pressurised करणं यामागचा हेतू जरी चांगला असला, तरी चूकीचं आहे ते आपल्या ईच्छा,
आपली स्वप्नही बळजबरीने दुसर्यांवर थोपणं.13-14 वर्षांच्या मुलांमध्ये
तीतकी maturity पण नसते. या वयामध्ये आई-वडील जो मार्ग दाखवतील
तीकडेच मुलं जातात पण problem तेव्हा येतो,
म जेव्हा ही मुलं हळूहळू kids पासुन teenager
आणि teenager पासुन adult होत जातात. जेव्हा त्यांच्यात स्वतंत्र विचार
करण्याची क्षमता येते. त्यांना त्यांच्या आवडीनिवडी कळू लागतात.
मुलगा अभ्यासात खूप हुशार आहे, नेहमी चांगल्या मार्कांनी पास होतो; याचा अर्थ असा नाही की त्याला Doctor कींवा Engineer च व्हायचं असतं.
कींबहूना Doctor आणि Engineer च्या पलीकडे ही भरपूर career options असतात.
                 भरपूर मुलं आई-वडीलांच्या इच्छेसाठी,
त्यांच्या स्वप्नांसाठी आपल्या विचारांना मनातच मारून टाकतात. आणि जीकडे आयुष्य नेईल तसं जगत असतात. कारण असं केल्यामुळे त्यांच्या आई-वडीलांच्या चेहर्यावर एक विलक्षण असा आनंद झळकत असतो. आणि पर्यायाने आई- वडीलांना आनंदी बघून
मुलंही आनंदी असतात. असं करून आनंद तर मीळतो, पैसे ही भरपूर
मीळतात. पण "समाधान"? त्याचं काय? ते तर कधीच हरवलं असतं!!! अश्याच अनेक समस्या आयुष्यात पूढेही येत असतात.
                           माणूस जर समाधानी नसेल, तर आयुष्यातील
तणाव वाढत जातो. तणाव वाढत गल्याने माणसाच्या सवयी बदलत जातात. पर्यायाने Depression, दारू व्यसन यांच्या आहारी माणूस जायला लागतो.
                    कधी विचार करून बघा, आपण आयुष्यात दोन पैसे
कमी कमवले तर? multinational company मध्ये काम न करता मनाला आवडेल तसं छोट्या पगाराचं काम केलं तर? तर? बिघडेल का काही? हरवेल का काही? आज आपल्याला आपल्या जीवाचाच भरवसा नाही आहे. कधी काय होईल? कधी प्राणाला मुकावं लागेल? कधी आयुष्य गमवावं लागेल? हे कोणालाच माहित नाही. मग असं असतांना,
आपण थोडं मनापासुन जगायचं ठरवलं तर? दुसर्याला मीळालेलं यश बघून त्याचा हेवा न करता, त्याच्या आनंदात
आनंदी व्हायचं ठरवलं तर? आपापसातले मतभेद वीसरून एक नवीन सुरुवात
करायची ठरवली तर?
                        मीत्रांनो आयुष्य खूप छोटं आहे. जीवंतपणे
मरण्यापेक्षा, थोडं जगून बघा. कधी कोणावर मनापासुन प्रेम करून बघा. प्रेमात धोका मीळाला असेल तल त्याला माफ करून बघा.कधी कोणाशी भांडण झालं असेल तर त्या भांडणाचा शेवट करून नवीन सुरुवात करून बघा.
पश्चात्तापाच्या आगेत जळून झालं असेल तल स्वतःला एक chance देऊन
बघा. थोडं जगून बघा. "आनंदी"राहण्याची मजा लुटून
झालीच तर "समाधानाची"गोडी चाखून
बघा.

- अनामिका

'तो', 'ती' आणि 'तो दुसराच'.

प्रेमात सालं असंच असतं. 'तीचं' 'त्याच्यावर'
जीवापाड प्रेम असतं, पण तीच्यावर
जीव ओतणारा 'दुसराच'
कोणीतरी असतो. ती त्याच्या
I  LOVE YOU च्या reply साठी तासनतास वाट बघते, पण
तीच्या एका Hii च्या sms साठी दुसराच
कोणीतरी झुरत असतो. तीला फोन
करायला त्याच्याकडे अजिबात वेळ नसतो, पण तीचा फक्त एक
आवाज
ऐकण्यासाठी कोणीतरी दुसराच
तरफडत असतो. तीने दीलेल्या Gift ला 'तो'
Thanku ही म्हणत नाही, पण
तीच्या एका साध्या Birthday wish वर 'दुसरच'
कोणीतरी गहीवरून येतं.
             प्रेमाचा साला हा भलताच लोचा असतो. 'तो', 'ती'
आणि 'तो दुसरा'. या love story मध्ये 'तो' आणि 'ती' हे
hero heroine. आणि 'तो दुसरा' मात्र Side hero.
'तो दुसरा' कोणीतरी बिचारा प्रेमवेडा.
'ती' आपली होणार नाही हे
माहीत असुनही तीच्यावर
जीव ओतणारा. शब्दांमध्ये
मैत्री आणि डोळ्यांमध्ये प्रेम लपवणारा. ओठांवर
शांतता आणि मनात
तीची काळजी वाटून घेणारा.
तीच्या साठी तो फक्त मीत्र, पण
तीला तो आपलं जीवन मानणारा.
           ईकडे 'तो' आणि 'ती' ची मात्र
वेगळी Love Story. ती त्याच्यावर
जीवापाड प्रेम करणारी, तो मात्र
तीला वेळ न देणारा. ती त्याला आपलं आयुष्य
मानणारी, तो मात्र चारचौघात
तीला मैत्रीण म्हणून फीरवणारा.
ती लग्नाचं स्वप्न सजवणारी, तो मात्र साधं
वचन ही देण्यास धजणारा.
असे हे 'तो', 'ती' आणि 'तो दुसराच'.
          ईकडे ती त्याला भेटण्यासाठी तासनतास वाट बघते.
तो मात्र कामाचं कारण पुढे करून वारंवार तीला टाळतो.
एकदा त्याची वाट बघत असतांना 'तो' येत नाही,
पण तीला 'तो दुसराच' अचानक मीळतो. अचानक
तीला समोर बघून त्या दुसर्याचही भान हरवतं.
'तीच्या' आणि 'त्या दुसर्याच्या' गप्पा होतात.
गोष्टी होतात.
त्या दुसर्याशी बोलतांना अचानक
तीचे अश्रू ओघळतात.
तीला हसवण्यासाठी मग 'तो दुसराच' खटाटोप
करतो. कशीबशी ती हसते.
तो दुसराही भानावर येतो.
तीलाही त्या दुसर्याशी बोलून बरं
वाटतं. 'त्यानेही' कधी ईतक्या प्रेमाने
तीचे अश्रू पुसले नसतात, जीतकं 'तो दुसराच'
नकळत पुसून चाल्ला जातो.
       काही दिवसांनी 'तो' अचानक
कामासाठी बाहेरगावी निघून जातो.
तीने त्याला फोन करताच, जातांना तुला सांगून जायला वेळच
मीळाला नसल्याचं कारण पूढे करतो.
ती जरा चिडताच सध्या कामात आहे म्हणून फोन कट करतो.
मग अचानक 'त्या दुसर्याचा' फोन तीला येतो.
तीचा mood आता कसा आहे अशी विचारपुस
'तो दुसरा' करतो. आता ती मात्र रडायचं टाळते.
तीच्या प्रेमाची 'त्याची'
लायकीच नाही म्हणून 'त्या दुसर्याला' सांगते.
मी माझा वेळ, feelings, प्रेम हे एका मूर्ख माणसावर
वाया घालवल्याचा पश्चाताप त्या 'दुसर्याजवळ' करते.
तो दुसरा तीला शांत करतो. प्रेमात चालतच असतं
अशी समजूत तीची काढतो.
ती मात्र 'त्याला' कायमचं विसरायचं ठरवते. ईकडे 'तो दुसरा'
एक मित्राच्या नात्याने रोज
तीची काळजी घेतो.
तीचा mood खराब असल्यास
तीला हसवण्याचा प्रयत्न करतो. आजपर्यंत जे 'तो'
नाही करू शकला, 'हा दुसराच' करून जातो.
आता तीलाही विचार पडायला लागतो. प्रेमासारखं
प्रेम हरलं पण मैत्री जींकल्याचं आश्चर्य
वाटायला लागतं. हे ती 'त्या दुसर्यापूढे' हसतहसत बोलून
देते.या वेळेस 'तो दुसरा' मात्र शांत न
राहता तीला मनातली हकीकत
सांगून देतो. आयुष्यभर काळजी करण्याचं आश्वासन
तीला देतो. ती म्हणेल तेव्हा लग्न करण्याचं
वचन तीला देतो.तीही आनंदाने
भारावून जाते. तीला जवळ घेऊन 'तो दुसरा' तीचे
अश्रू पुसतो. मी असल्यावर आता रडायचं
नाही म्हणून तीला हसत रागावतो.
       ईकडे काही दिवसात 'तो' परत येतो. 'तीला'
आणि 'त्या दुसर्याला' सोबत बघून तीच्यावर खवळतो.
धोका देतांना लाज
कशी नाही वाटली म्हणून
तीला जाब विचारतो. ती मात्र फक्त हसते. एक
शब्द ही न बोलता तीथून निघून जाते.
दिवसामागून दिवसं जातात. 'तो' ईकडे कामात Busy होतो. कळत-नकळत
त्याचा राग वाढलेला असतो. चिडचिड वाढलेली असते. आयुष्य
उदास वाटायला लागतं. पण त्याचं कारण मात्र
अजूनही कळलेलं नसतं.
काहीतरी हरवल्याची चूणचूण
त्याला भासते. नकळतच तीची आठवण येते.
अलगद डोळे पाणावतात. आयुष्यातून दुसरं
कोणी नाही तर तीच
हरवल्याची जाणीव होते. पण आता वेळ निघून
गेलेली असते. त्याच्याकडे फक्त पश्चाताप उरलेला असतो.

- अनामिका

Wednesday, 5 November 2014

क्या करें जनाब ये मोहोब्बत का सुरूर हैं

क्या करें जनाब ये मोहोब्बत का सुरूर हैं
कमबख्त मेरे बस मे नहीं, ये दील तो मजबूर है।
मैखानो के जाम भी फीके पडने लगते हैं,
उन नशीली आखो मे नजाने क्या नूर है।

मन्नत है कीसीकी, या जन्नत की हूर है
बेशकीमती हैं वो, जैसे कोहिनूर है।
कीसको इल्जाम दे? आखिर किसका कसूर है?
आशिक है हम, माशूक तो मगरूर है।

हम वफाओ के शौकीन, उन पे हुस्न का गुरूर है
बेवफा के नाम से, वो सरेआम मशहूर हैं।
ईश्क और अश्क तो सीक्के के दो पहलू है,
ईश्कबाजी का आखिर यही दस्तूर है।

म्रुगजळ

काळोखात पसरलेलं तू लख्ख चांदण्यांचं वादळ
मी मात्र क्षितीजापल्याळ एकांतातलं म्रुगजळ

खंत

पापणी आड तुला कैद करून दूर झाला माझा एकांत
आसवांपरी तु ओघळून गेलास उरली बस हीच खंत

ऋणानुबंध

ऋणानुबंध हे जन्मांतरीचे म्हणून ही आपली ओळख
रेशीमगाठी या मनाच्या अश्याच  नाही जुळत

स्वप्नात

स्वप्नात माझ्या येऊन जेव्हा तु
मला धूंडाळतो
सुकलेल्या माझ्या गजरयाचा हा मोगरा ही गंधाळतो

प्रेमवेडे

भविष्याला गाफील राहून प्रेमात रंगले ते वेडे
बाजी शेवटी नशीब च का जींकतं? न उलगडले
आजवर हे कोडे


कीती गं हळवं

कीती गं हळवं हे तुझं माझं प्रेम
तु वार फुलांचा, मी तुझा न चूकलेला नेम

दूर असलो तरी

दूर असलो तरीही आपल्या शाईत स्पंदने
भासतात
दुनियादारीशी विरक्त, शब्दांना कुठे बंधने
असतात.

परत तुला बघून

आज परत तुला बघून उजाळा आला आठवणींना
एक हुंदका मी जपला, साथ मिळाली अश्रूंना.

- अनामिका

ढोंगी या जगामध्ये

ढोंगी या जगामध्ये त्याला कोणाचीच
खात्री नसते. ....
अबोल या लेखकाची फक्त
शब्दांशी मैत्री असते.
- अनामिका

नफरतों के बाजार में

नफरतों के बाजार में जीनेका अलग
ही मजा है....
लोग मुझे "रूलाना" नहीं छोडते.....
और मै "हसना" नहीं छोडती....

अनामिका

खामोश रेहने वालों की एक खासीयत
होती है....
कभी फुरसत मीले तो गौर से सूनीयेगा......
सन्नाटे को चीरती चीख सूनाई देगी.....

- अनामिका

अब तो चाहतो में सिर्फ दील टूटा करते हैं।

टूटकर चाहने वालों का सीलसीला अब नजर
नही आता......
अब तो चाहतो में सिर्फ दील टूटा करते हैं।
- अनामिका

विरहाचं विष

विरहाचं विष पिऊन ते हिमतीनं थुंकायचं असतं
प्रेमात मरण्यापेक्शा, स्वतःला जींकायचंअसतं.
- अनामिका

कौन केहेता है की सीर्फ मुर्दे को आग लगती है??

कौन केहेता है की सीर्फ मुर्दे को आग
लगती है..... मैंने अक्सर कुछ
जींदा लोगों को कीसीकी कामयाबी पे
जलते देखा है....
- अनामिका

बर्बादी का जश्न

मेरी कामयाबी को देखकर मेरे आबाद
रेहनेकी दुआ करते थे कभी..... आज
उन्हीको इस नाकामी मे
अपनी बर्बादी का जश्न मानते देखा है।
- अनामिका

मी

जालिम ही दुनीया म्हणे माझ्यामुळे त्रस्त असते
पण मनमौजी जगणारी मी, आपल्या धुंदीत मस्त असते.  

कायदे आणि वायदे म्हणे जगण्याची शिस्त असते
माझ्या मर्जीची मालकीण, मी बिनधास्त बेशिस्त असते.

नात्यांपूढे पैसा मोठा, हे पैसेवाल्यांचे वैशिष्ट्य असते
फकीर मी मज मागून बघा, माझी मैत्री एकदम स्वस्त असते.

त्या मालकीणीची मी मोलकरीण, पण मी ही करत कष्ट असते
नशीबात आलं तसं जगावं, शेवटी नशीबा नशीबा ची गोष्ट असते.

खोटे आश्वासन देणारे, राजकारण्यांचे राजकारण भ्रष्ट असते
मरूदे तीकडे जगाला, मी आपल्या स्वाभिमानाशी एकनिष्ठ असते.

"नजर" नही कभी "नजरिया" बदल के देखो.

हमेशा जरूरी नही की आखे
जो देखे और कान जो सुने वही सच हो.
जीस तरह एक आम ईनसान सोना और
पीतल मे पेहेचान नही कर सकता,
ठीक उसी तरह वो झूट और
गलतफहमी की पेहेचान
भी नही कर सकता. "नजर"
नही कभी "नजरिया" बदल के देखो.
- अनामिका
https://m.facebook.com/profile.php?id=1500709300183536

आनंद महत्वाचा की समाधान????

आनंद आणि समाधान या एकाच नाण्याच्या दोन बाजू आहेत. ज्याप्रमाणे नाणं हवेत फेकल्यावर कुठलीतरी एकच बाजू जींकते, त्याप्रमाणे एकदा निर्णय घेतल्यावर एकतर समाधान मीळतं कींवा आनंद मीळतो.
                         माणसाच्या गरजा खूप क्षुल्लक आणि साध्या आहेत. ज्या पूर्ण करून तो समाधानी राहू शकतो. पण आनंद? त्याचं काय? मग आनंदी राहण्याच्या नादात, माणसाच्या गरजा वाढतात. श्रम वाढतात. सुरुवात होते ती आपल्या आई-वडीलांपासून. प्रत्येक पालकांना वाटतं की आपल्या मुलांनी खूप शीकावं, उच्च शिक्षण घ्यावं, मोठ्या पगाराची नौकरी करावी. आणि असं वाटून घेण्यात काही चूकीचही नाही आहे.
                         मग हे पालकांचे so called मोठे स्वप्न साकार करण्याच्या नादात चालू होते स्पर्धा. खूप अभ्यास करून घेणं, परिक्षेत चांगले गूण
मीळवण्यासाठी मुलांना सतत pressurised करणं यामागचा हेतू जरी चांगला असला, तरी चूकीचं आहे ते आपल्या ईच्छा,
आपली स्वप्नही बळजबरीने दुसर्यांवर थोपणं.13-14 वर्षांच्या मुलांमध्ये
तीतकी maturity पण नसते. या वयामध्ये आई-वडील जो मार्ग दाखवतील
तीकडेच मुलं जातात पण problem तेव्हा येतो,
म जेव्हा ही मुलं हळूहळू kids पासुन teenager
आणि teenager पासुन adult होत जातात. जेव्हा त्यांच्यात स्वतंत्र विचार
करण्याची क्षमता येते. त्यांना त्यांच्या आवडीनिवडी कळू लागतात.
मुलगा अभ्यासात खूप हुशार आहे, नेहमी चांगल्या मार्कांनी पास होतो; याचा अर्थ असा नाही की त्याला Doctor कींवा Engineer च व्हायचं असतं.
कींबहूना Doctor आणि Engineer च्या पलीकडे ही भरपूर career options असतात.
                 भरपूर मुलं आई-वडीलांच्या इच्छेसाठी,
त्यांच्या स्वप्नांसाठी आपल्या विचारांना मनातच मारून टाकतात. आणि जीकडे आयुष्य नेईल तसं जगत असतात. कारण असं केल्यामुळे त्यांच्या आई-वडीलांच्या चेहर्यावर एक विलक्षण असा आनंद झळकत असतो. आणि पर्यायाने आई- वडीलांना आनंदी बघून
मुलंही आनंदी असतात. असं करून आनंद तर मीळतो, पैसे ही भरपूर
मीळतात. पण "समाधान"? त्याचं काय? ते तर कधीच हरवलं असतं!!! अश्याच अनेक समस्या आयुष्यात पूढेही येत असतात.
                           माणूस जर समाधानी नसेल, तर आयुष्यातील
तणाव वाढत जातो. तणाव वाढत गल्याने माणसाच्या सवयी बदलत जातात. पर्यायाने Depression, दारू व्यसन यांच्या आहारी माणूस जायला लागतो.
                    कधी विचार करून बघा, आपण आयुष्यात दोन पैसे
कमी कमवले तर? multinational company मध्ये काम न करता मनाला आवडेल तसं छोट्या पगाराचं काम केलं तर? तर? बिघडेल का काही? हरवेल का काही? आज आपल्याला आपल्या जीवाचाच भरवसा नाही आहे. कधी काय होईल? कधी प्राणाला मुकावं लागेल? कधी आयुष्य गमवावं लागेल? हे कोणालाच माहित नाही. मग असं असतांना,
आपण थोडं मनापासुन जगायचं ठरवलं तर? दुसर्याला मीळालेलं यश बघून त्याचा हेवा न करता, त्याच्या आनंदात
आनंदी व्हायचं ठरवलं तर? आपापसातले मतभेद वीसरून एक नवीन सुरुवात
करायची ठरवली तर?
                        मीत्रांनो आयुष्य खूप छोटं आहे. जीवंतपणे
मरण्यापेक्षा, थोडं जगून बघा. कधी कोणावर मनापासुन प्रेम करून बघा. प्रेमात धोका मीळाला असेल तल त्याला माफ करून बघा.कधी कोणाशी भांडण झालं असेल तर त्या भांडणाचा शेवट करून नवीन सुरुवात करून बघा.
पश्चात्तापाच्या आगेत जळून झालं असेल तल स्वतःला एक chance देऊन
बघा. थोडं जगून बघा. "आनंदी"राहण्याची मजा लुटून
झालीच तर "समाधानाची"गोडी चाखून
बघा.

- अनामिका

Friday, 24 October 2014

सुकलेला गजरा

स्वप्नात माझ्या येऊन जेव्हा तु
मला धूंडाळतो
सुकलेल्या माझ्या गजरयाचा हा मोगरा ही गंधाळतो
Modify message

Wednesday, 22 October 2014

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?
पैसेवाला वफादार, तो गरीब मक्कार है।
भर भर के सोना वो पत्थरो पे चढाते है,
सडको पे बैठा ये फकीर लाचार है।।

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?
धर्म के नाम पे खडी ईक दिवार है।
इनसानीयत बीकती है यहा चंद सीक्को मे,
एक तरफ बंदूक, दूसरी तरफ तलवार है।।

वाह रे मालीक तेरा कैसा कारोबार है?
चांद मे दाग तो सूरज मे अंगार है।
सजदे मे तेरे झूकते है रेहेम के खातीर,
तेरे खौफ से अंजान, सब घमंड मे सवार है।।

कीती गं हळवं हे तुझं माझं प्रेम.....

कीती गं हळवं हे तुझं माझं प्रेम
तु वार फुलांचा, मी तुझा न चुकलेला नेम.....

आजही आठवते ती तुझी पहीली अदा
नजर चूकवून तु लाजली, आिण मी झालो फीदा....

हवेच्या झुळकेने रेशमी केस तुझे वीखुरले
ठोका चुकला काळजाचा, पण मी ही मज सावरले.....

आताही जेव्हा ऐकतो तुझ्या पैंजणांंची रूणझूण
कसं गं सांगु सोनु, क्षणात जातो मी हरपून....

गर्व करत असेल आज तो दरपणही स्वत:वर
त्याला बघून तु लाजतेस, मी हसतो माझ्यावर....

तुला भेट देण्यास एक गुलाब वीकत घेतो
पण ते तुझ्यावर जळेल म्हणुन स्वत:च लपऊन देतो.....

कीती गं प्रेम हे व्यक्त करु, शब्द अपुरे आहेत.....
तुझ्यावीना राणी माझं जीवन अधुरं आहे.....

हातात तुझा हात घेऊन करेल या जगावर मात
वचन देतो आज, मी देईल जन्मभर साथ....

माझी आजी

होती माझी एक मैत्रीण....
बाबांनी रागावताच
मला पदराखाली घालणारी...
आईने ओरडताच तीच्यावर
रागावणारी....
माझ्यावर जीवापाड प्रेम
करणारी....

आईचे दीलखुलास गार्हाणे करण्यात
दुपार आमची रंगायची....
आईने ऐकताच तीला बहाणे
सांगण्यात मग
फजीती आमची व्हायची....

पिरक्षेत कमी मार्क मीळुन
जेव्हा व्हायची मी उदास.....
माझ्या नकळतच
कुठेतरी तीलाही व्हायचा त्रास....

जवळ मला घेऊन मग अश्रु माझे
आवरायची.....
नवीन उमेद आिण जोश देत अलगद
मला सावरायची....

लग्नापर्यंत तुझ्या मी असेल का? असं
नेहमी ती म्हणायची....
का गं आजी असं म्हणते? म्हणुन
मी ही मग चीडायची....

प्रेम आिण जीव्हाळ्याने तीच्या,
नकळतच मी मोठी झाली....
वाटा दुभंगून आपल्या, मग
मी स्वप्नांच्या दीशेने झेपावली.....

काळजी घे ग पोरी,
मी जातांना ती म्हणाली.....
तीच््या आठवणींचं गाठोडं बांधून मग
मी ही हसत नीघाली.....

दीवसांमागुन दीवस गेले,
सरल्या जुन्या आठवणी....
वीरह तीचा सहन न होता, हळूच
तरंगायचं डोळ्यात पाणी.....

संध्याकाळी त्या अचानक
बाबांचा फोन आला..
तीु आमच्यातून
कायमची हरवल्याचा मजकूर
मला मीळाला....

देवासमोर हात
जोडतांना आजही सतत वाटतं...
आपल्या माणसांना हीराऊन
देवाला तरी काय मीळतं??

शेवटी आपल्या वाटेला आलेलं दु:ख
आपणच सहन करायचं असतं.....
जगण्याची रीतंच अशी, हसून
स्वीकारायचं असतं.....

मरणे सोपे होते, जगण्याने छळले......



मरणे सोपे होते, जगण्याने छळले
निरंतर जपलेल्या एकांताला हेच माझे उत्तर आहे.....

मग ढोंगी या जगापुढे हे ढोंग तरी कसले?
माझ्या या प्रश्नाला मीच निरुत्तर आहे.....

त्यांच्या साठी जो झटला त्याला लाथांनी तुडवले
हा सडलेला राजकारणी आज समाजासाठी अत्तर आहे....

लाख पैसा कमवून त्याला गमावण्याचीच भीती असते
फाटक्या झोळीत समाधानी, हा भिकारी तरी बेहेत्तर आहे......
Modify message

अश्रु माझे लपवण्यास, मेघ सावळे झाले......

क्षण गेले निसटून 
मन गहीवरून आले
अश्रु माझे लपवण्यास,
 मेघ सावळे झाले.

ओरबाडले त्या फुलास
कत्तल त्यास केले
गंध हिरावला त्याचा
अन् काटेही कोवळे झाले.

चर्चा केली त्यांनी
सांत्वन देण्यास आले
ढोंग सारे रचण्यात
मग लोकही हळवे झाले.

वनवास झाला रामाला
भाग्य त्याचे बुडाले
नाते हरले सगळे
पण त्याचेही सोहळे झाले.

गुन्हा  केला त्यांनी
आरोपी मज ठरवले
दोष आपला नाकारण्यास
मग ते ही भोळे झाले

म्रुगजळ

ती दुनीयाच न्यारी होती. . . . . 
फक्त तुझी आिण माझी . . . . . 

शब्दांशिवायच होणारा संवाद . 
जडला होता एक अनोखा नाद. 
नुकतीच लागलेली प्रीतीची चाहूल
आिण क्षणोक्षणी होणारा आल्हाद. 

हऴुच लपुन बघणं आिण मनातच खुदकन हसणं 
स्वप्नांच्या दुनीयेत मग न कऴत हरऊन बसणं. 

विचारांमधला अलग़द होणारा स्पर्श. . . आिण अंगावर 
उठणारे शहारे. . . 
पहिल्या पहिल्या प्रीतीत आता जवऴ वाटु लागले होते 
कीनारे . . . . 

नुकतेच चढलेले प्रीतीचे हे रंग आसमंतात उधऴु लागले. 
मी न आता माझी उरली बस हेच भाव जाणउ लागले . . . . . 

मनाला लागला होता सख्या तुझाच ध्यास. 
आयुष्यातल्या एका सुंदर 
वळणावरचा चालला होता प्रवास . . . . 

दिवस आिण रात्र यांचा थांगपत्ता ही न लागता मी भान 
हरपून बसली 
हे विश्व हे जग यांची जराही तमा न बाळगता भावनेत 
सर्वस्व गमउन बसली. 

सांजवेऴ उलटुन गेलेली लक्ख अंधाराची निशा आिण संथ 
वाहणारे सागराचे पाणी अशी होती ती वेळ. . . . . 
आकाशातही जणू काही चालला होता चंद्र आिण 
चांदणीच्या प्रतीचा खेऴ . . . . . 
बंद मुट्ठीतुन वाऴु नीसटावी तशी नीसटु 
लागली होती वेऴ . . . . 
वास्तवाच्या भीषण चटक्याने जणू तुटत 
चालला होता मेऴ . . . 

पक्ष्यांच्या किलबीलाटात मग हऴुच सुर्य डोकाउ 
लागला . . . . 
स्वप्नात रमणे बरे नाही म्हणुन जणु माझ्यावरच हसू 
लागला . . . . 

गाढ झोपेतुन दचकुन जागे झाल्यागत काहीतरी झाले . . . 
स्वप्न आिण वास्तव यांच्यातले अस्पष्ट फरक आता स्पष्ट
जाणऊ लागले . . . . <3 

नजर

मनात ऊठले होते विचारांचे काहूर . . . . . सांगण्यास 
मी झाली होती अातुर . . . . . तीतक्यात 
कोणातरी दिसलं . . . . . . त्यास जरा सांगून बघाव 
म्हटलं . . . . .

अंतःकरणात दाटलेले ते शब्द ओठांवर आले. . . जणु 
काही धावपळीची पैज लागल्यापरी कानांवर जाऊन 
धडकले . . . . . 
मनानेही सोडला मग सुटकेचा श्वास. . . . 
कान आिण ओठांना  म्हणू लागला झालो रे 
आता मी बिनधास्त . . . . . .

नजर मात्र दचकली. . . . जरा घाबरली. . . 
घडलेले द्रुष्य परत चाचपून पहावे म्हणून डोऴ्यांस िवणवू 
लागली . . . . . 
डोळे ही स्मीत हास्याने नजरे कडे बघू लागले . . अगं वेडे 
घाबरतेस कशाला म्हणून तीला विचारु लागले. 

मनात विचार उठले . . ओठांनी ते व्यक्त केले, 
कानांनी ऐकले . . . आिण सगळ्यांचा साक्षीदार म्हणून 
डोळ्यांनी ते पाहीले . . . 
आपापली जबाबदारी पार पडली. . . . . आिण ज्याचे त्याचे 
कामही संपले . . . .

नजरे भोवती तरी फिरत होते शंकेचे वारे . . . . विनंती करून 
सवंगड्यांस म्हणत होती माझे ऐकुन तर घ्या सारे . . . . .

 
मुर्ख आहात रे तुम्ही तुमचे डोके आहे की खोके . 
न मला आजवर कोणी देऊ पाहीले सहजा-सहजी धोके

गैरसमजाच्या चक्रव्युहात फसले रे सारे 
हे ऐकुन जणु वाढत होते ह्रुदयाचेही ठोके 

नजर विचारी डोऴ्यांना कोण दिसले रे तुम्हाला जे 
तुम्ही देहभान हरपून बसले??? 
ओठांवर ही ओरडली, इतके स्वस्त होते का तुमचे शब्द जे
क्षणात देउन चुकले???

मग नजर फीरली मनाकडे आिण धरले त्याला धारेवर. 
भिती होती न तुला जनाची मग का सुटलास मोकाट 
वार्यावर??? 

कोण होता तो खास ज्यावर 
एकाएकी जडला तुझा विश्वास??? 
भिती नाही का तुला होशील ना एक दिवस उदास!!! 

भावनेच्या या राजनीतीत डावपेच रचले जातात... 
प्रामािणकतेला बोलीवर चढउन 
नाती विकली जातात..... 

म्हणूनच शांतता ओठांवर येते 
आपलीशी वाटणारी व्यिक्तही मग नजरअंदाज होते. 

नजर-नजरेचा चालतो असाच खेळ, 
नजर चुकली की तुटतो मेळ. 
सतत चारतात सारे का इतकी शांत असते? 
वरुन शांत असली तरी "नजर" बोलत असते. 

विरह

सांजवेऴी या रीमझीम सरी 
मंद वारा आठवणींचा पसारा 
अश्रू हे ओले, ओली ही लाट
क्षणोक्षणी बघे सख्या तुझीच वाट

अबोल हे शब्द, मनातला कहर
भावना ही आता झाल्या अनावर

परतीची तुझ्या नाही रे आस
ज़ाणुनी मन होई सतत उदास

आहे श्रावणमास
तरी वाटे भकास

मजुऴ ही किलबिल
ऐकण्यास झाली मुश्कील

विरहाने तुझ्या मीच मज रुसली
मदमस्त धुंदीत जगणारी मी . . . अडगळीत लपून बसली. 

अंतरंग

एकटा न भासु देई जीवाला, 
दीलासा देई मनाला, 
“आपल“े म्हणती तयाला. 

दु:ख येता घरी
सोडुनी िचंंता सारी
सोबतीला उभा असे दारी
तीच “मैत्री“ खरी.

गरजुवंत आज दीसला
न रक्ताचा न गोत्राचा भासला
मदतीस हात पुढे सरकावला
“माणुसकीचा“ धर्म पाळला.

शब्दांची ही श्रूंखला शब्दांपूर्तीच मर्यादीत राहीली,
काळाच्या आेघात नात्यांची परीभाषा ही बदलली.

ेेएकटेपण त्याचे कुठेतरी मज रुतले
पण दीलासा देण्यास मन हे खचले
नाते तर होते आपलेपणाचे,
पण वेळेच्या अभावी “आपलेपण“ ही चुकले...

“मीत्र“ होता जीवलग, दु:ख त्याचे सोसवेना...
सांत्वन त्याला देण्यास जीव मात्र होईना
दु:खापूढे त्याच्या स्वार्थाने मज छळले
कठोेर होते माझेच मन िवश्वासही बसेना.

गरज होती त्याला, मदतीची नजर उठली,
अहंकार होता मस्तकी नकळतच पाठ फीरवली
क्रोध असतो शत्रू म्हणे, मग का मी त्यास बळी पडली??
रक्तांची होती नाती, का होती जीवाभावाची??
शेवटी “माणुसकीही“ फोल ठरली. 

पाऊस

आज माझ्या दु:खाची चाहूल त्यास लागली, 
म्हणून डोळ्यातून नव्ह,े नभातून तो बरसला.... 

मनाची आर्त हाक मनातच मीटली, 
पण मनातून नव्हे तो ढगंातून गरजला.... 

शत्रूला झुंज देण्यास मीच माझी थकली, 
मग मला साथ देण्यासाठी तो वीजेतून कडाडला... 

एकटेपण सोबतीला होते, दूसरं नव्हतं कोणी... 
आडोशाला मज थांबऊन मग, माझ्याकडे बघून 
तो हसला.... 

एकटी समजू नकोस स्वत:ला, सोबतीस असेन 
मी.... 
नीरोप माझा घेतांना, हीतगूज तो करून गेला..... 

थंडगार सरींनी मज सूखाऊन मग, 
अलगत क्षीतीजाकडे झेपावला......